10 जुलाई (July) को देव शयनी एकादशी है, इसी दिन से चातुर्मास भी प्रारम्भ हो रहे हैं। देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होकर चातुर्मास अपने नाम के अनुरूप चार मास पुरे करके कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को समाप्त होगा जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है ।
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मांगलिक कार्य रहते हैं वर्जित
सनातन धर्म की परम्परा के अनुसार चातुर्मास के दौरान मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत (जनेऊ संस्कार), विवाह, गृह प्रवेश आदि मांगलिक कार्य वर्जित बताए गए हैं। मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु चार माह की योग निद्रा में चले जाते हैं, अतएव इस बीच माँगलिक कार्यों की अनुमति सनातन धर्म में नहीं है।
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चातुर्मास से जुड़े धार्मिक नियम व परहेज
चातुर्मास मुख्यतः जप,तप, व मानसिक आराधना पूजन का समय होता है। इस दौरान साधु संत अपने स्थान पर ही रहकर जप, तप व ध्यान समाधी के माध्यम से परमपिता परमेश्वर की आराधना करते हैं। भ्रमण ,तीर्थाटन चातुर्मास के दौरान साधु संतों के द्वारा स्थगित रखे जाते हैं। चातुर्मास के दौरान आचार विचार की सात्विकता का भी बड़ा महत्व है। इस दौरान आहार भी सात्विक ग्रहण करने के निर्देश दिए गए हैं। चातुर्मास में लहसुन प्याज, पत्तेदार सब्जियां, दही, छाछ आदि खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।