कुछ समय पहले मेरा अपने एक मित्र के घर जाना हुआ वहाँ मैंने पाया की उनका 23 वर्षीय बेटा प्रतीक बहुत गुस्से से भरा अनमना सा बैठा भुनभुना रहा था, स्वाभाविक जिज्ञासा वश मै उससे पूछ बैठा प्रतीक बेटा क्या हुआ है इतने दुखी क्यो हो, किस पर इस कदर नाराज हो, हुआ क्या है ? प्रतीक बोला चाचाजी कल मेरे एक बहुत महत्वपूर्ण परीक्षा है और मैंने मेरे बचपन के मित्र अनिकेत से नोट्स मांगे और उसने देने से मना कर दिया, बाद में मुझे मालूम हुआ कि वो नोट्स उसने श्रेष्ठा को दे दिये, कितना कमीना है अनिकेत, मैंने उसके लिए क्या क्या नही किया, हम पिछले 17-18 सालों से मित्र है, हमेशा एक दूसरे का साथ निभाया है, लेकिन मै आज तक अंधेरे में था, आज उसने अपना असली चेहरा दिखा दिया है, अब मै कभी उससे बात नही करूंगा, हमारी दोस्ती सदा के लिए खत्म, अब मेरे जीवन में उसके लिए कोई जगह नहीं |
मैंने उससे पूछा क्या हमेशा तुमने ही उसकी मदद की उसने तुम्हारी कभी कोई मदद नही की ? प्रतीक बोला नही चाचाजी ऐसा नहीं है उसने हमेशा मेरा साथ दिया यहा तक की जब मम्मी बीमार थी तो उसने अपना खून तक दिया मम्मी को, वो बहुरत अच्छा इंसान था, मेरा सबसे घनिष्ठ मित्र था, ही वाज माय बेस्ट फ्रेंड, लेकिन आज जो उसने मेरे साथ किया है, उसके इस कमीनेपन की वजह से वो मेरे नजरों से गिर गया है, उसके इस काम के लिए मै उसे कभी माफ नही करूंगा |
इस वाकिये ने मुझे सोचने पर मजबूर किया और मैंने कई लोगों से इस विषय पर चढ़ा की और मैंने यह पाया कि हमारा कोई परिजन, कोई घनिष्ठ मित्र,कोई पुराना परिचित, कोई सहकर्मी या कोई रिश्तेदार गलती से भी हमारे प्रति कोई एक ऐसा कार्य कर बैठता है जो हमको अपने नजरिए से उचित नहीं लगता, अच्छा नही लगता, पसंद नही आता, हमारे पक्ष में नही लगता है तो हम बुरा मान जाते है, बहुत बुरा मान जाते है, इतना बुरा मान जाते है कि कल तक जो हमारा प्रिय था, हमारा अजीज था, हमारा यार था, हमारा भरोसेमंद साथी था, जिसके साथ हमने बहूत सारा अच्छा वक्त बिताया , जिसका साथ हमेशा मन को लुभाता था अचानक वो हमे खलनायक प्रतीत होने लगता है, हम उसकी लानत मलालत करने लग जाते है, सबको उसके बारे में बुरा-भला बोलने लग जाते है यहा तक कि उस शख्स की एक गलती को दिल पर लेकर उससे सम्बन्ध विच्छेद करने तक को उतारू हो जाते है ।
यदि हम अपने संस्कारो की बात करें, ग्रन्थों में और साहित्य में लिखी बातों पर गंभीरता से ध्यान दें तो हम पायेंगे कि ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें बचपन से यही सिखाया और समझाया गया है कि “अच्छाई की बुराई पर सदैव जीत होती है” परंतु यहां इस सिलसिले में, मैं पाता हूँ कि किसी व्यक्ति का एक गलत कार्य उसके हजारों अच्छे कर्मों पर भारी पड़ जाता है, इतना भारी पड़ जाता है कि पीढ़ियों के, बरसों के पाले पोसे, बने बनाए रिश्ते खराब हो जाते है, दरक जाते हैं, टूट जाते हैं, यानि एक बुराई तमाम अच्छाईयों पर भारी पड़ जाती है, ऐसा क्यों होता है , क्या हमारा यह व्यवहार उचित है
जो व्यक्ति कल तक हमारे लिए अच्छा था, जिसने हर समय हमारी मदद की, हमारे दुख सुख में हमारे साथ था, हमारा करीबी था, हमारा अजीज था, हमें बहुत प्रिय था बस एक ही क्षण में कैसे वो अस्वीकार्य हो जाता है, हमारे जीवना में वो अभी था अभी नही, क्योंकर एक, मात्र एक बुराई तमाम अच्छाईयों पर हावी हो जाती है ?
मेरी समझ कहती है कि हमें जल्दबाजी में सम्बन्ध तोड़ने की बजाय उस व्यक्ति से बात करनी चाहिए, समझना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया था, हो सकता है उसकी कोई विवशता रही हो या यह भी हो सकता है कि जैसा हम समझ रहे है वैसी बात ही ना हो। और यदि वो किसी भावावेश में या किसी अनचाही परिस्थिती के वश हमारे प्रति कोई गलती कर बैठा है और वो अपनी गलती मानता है तो हमें उसकी अच्छाइयों के मद्देनजर उसकी गलती को भूलकर आगे बढ़ना चाहिए।
रिश्ते बनाये रखने में ही समझदारी है। बातचीत के दरवाजे कभी बन्द ना करें। एक बुराई को तमाम अच्छाइयों पर विजयी ना होने दें। बरसों के सम्बन्ध यूँ ना तोड़ें। याद रखें सदैव के लिए ना तो कोई अच्छा होता है ना ही कोई बुरा, परिस्तिथियाँ बदलती रहती है और कभी कभी हमारा उस व्यक्ति को देखने का नजरिया भी बदल जाता है।
और एक सोचने वाली बात, मन करने योग्य बात … क्या हम सदैव सही होते हैं, क्या हम कभी गलती नहीं करते, क्या हम कभी अनचाहा कर्म करने को विवश नही होते, क्या प्रतिकूल परिस्थिति में हमारे व्यवहार में बदलाव नही आता, क्या भावावेश में हम कभी अपने ही किसी मित्र, सहकर्मी, स्वजन या परिजन के साथ बुरा व्यवहार नही कर बैठते ? करते हैं ना …… तो हमारे प्रियजन को भी गलती करने का अधिकार है।
यदि आपने भी किसी अपने से रिश्ते तोड़े है या किसीने आपसे रिश्ता तोड़ा है और इस बात का आपको मलाल है, मन दु:खी है आपका, वो शख्स बरबस आपको याद आता रहता है, उसके साथ बिताया समय आपकी नजरों के सामने चलचित्र की तरह दिखाई पड़ता रहता है तो अभी भी कुछ नही बिगड़ा है उठे और अपना अभिमान त्यागकर अभी उससे संपर्क करें, रिश्ते अनमोल होते हैं, हर कीमत पर उनको सहेजना चाहिए, रिश्तो की गर्माहट को जीवीत रखने के लिए कोई भी कीमत ज्यादा नही होती |