आखिर ‘राष्ट्र प्रमुख’ और नागरिकों के बीच क्यों बढ़ रही हैं दूरियां?

Ayushi
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ramnath kovind

निरुक्त भार्गव, पत्रकार

29 मई 2022 को उज्जैन में एक और राष्ट्रपति का आगमन हो रहा है. ये सिलसिला तभी से अनवरत है जबसे भारत एक संप्रभु, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बना. प्रथम राष्ट्र प्रमुख डॉ राजेंद्र प्रसाद से लगाकर प्रणव मुखर्जी तक प्राय: जो भी हस्ती भारतवर्ष ‘का’ और ‘की’ प्रथम नागरिक ‘रहे’ या ‘रहीं’, वे किसी न किसी निमित्त महाकाल की नगरी में आते ही रहे हैं. महाकाल महाराज का दरबार हो या फिर क्षिप्रा नदी का आँचल अथवा विक्रम विश्वविद्यालय और अखिल भारतीय कालिदास समारोह ऐसे मंच रहे हैं, जिसको छूने की चाहत सबमें हमेशा से रही है. पर अब बहुत दिनों बाद ऐसा दिखाई दे रहा है कि महामहिम राष्ट्रपति महोदय रामनाथ कोविंद के उज्जैन आगमन को सीमित दायरे में संपन्न करवाने की चेष्टा की जा रही हो!

बीते दिनों में अख़बारों और मीडिया के तमाम फ़लकों पर वर्तमान राष्ट्रपति जी के आगमन को लेकर सूचनाएं/खबरें छायी हुई हैं. इतना ही नहीं लोग-बाग अपनी-अपनी तस्वीरें लगातार साझा कर रहे हैं. कोई जता रहा है कि उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद के साथ किस तरह के पल गुजारे थे! कोई ज्ञानी जेल सिंह, कोई डॉ शंकर दयाल शर्मा, कोई आर वेंकटारमनन तो कोई प्रतिभा पाटिल के साथ के अपने चित्र प्रदर्शित कर यादगार स्मृतियों को ताज़ा कर रहा है.

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रामनाथ कोविंद यूं तो अपने कार्यकाल के आखिरी वक़्त में पहली बार महाकाल जी के दर्शन-पूजन हेतु पधार रहे हैं और यहां उनके कुछ अन्य मुख्तलिफ़ कार्यक्रम भी हैं, लेकिन जानकार लोग ये अनुमान लगाकर चल रहे हैं कि कोविंद जी संभवत: पहले ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें दूसरी बार राष्ट्र प्रमुख बनने का अवसर मिल सकता है! एक और बात महत्वपूर्ण है कि जब उनका चयन गणतंत्र के इस सर्वोच्च ओहदे के लिए किया गया था, उसके पहले कई जिम्मेदारियों को वे बखूबी संभालते रहे हैं और इसी सिलसिले में उनका कई-कई बार उज्जैन आना होता रहा है. इक्का-दुक्का मर्तबा प्रेस से मुलाकातों के दौरान उनसे मुखातिब होने का अनुभव इस ख़ाकसार का भी रहा है! इतना भी तय है कि ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोविंद जी उज्जैन में आएं और पूर्व सांसद सत्यनारायण पवार और स्वर्गीय सांसद हुकमचंद कछ्वाय के अत्यंत निकट परिजनों और निष्णात पत्रकार (स्व.) शिवकुमार वत्स के घर नहीं जाएं!

अत्यल्प अनुभव के आधार पर कह रहा हूं कि आज के हमारे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उज्जैन की आबो-हवा से भली-भांति अवगत हैं! पर ना जाने क्या कारण है कि जब वे इस बार एक तरह से उनकी ही प्रिय नगरी में आ रहे हैं तो उनको यहां के बाशिंदों से क्यों दूर किया जा रहा है? क्या इसकी एक वजह सुरक्षा व्यवस्था है? क्या अमूमन 6 घंटे के प्रवास के दौरान उनके पास समय की अल्पता रहेगी? मेरे पास जो जानकारी है वो बताती है कि राष्ट्रपति जी सुबह उज्जैन पहुंच जाएंगे और शाम के समय यहां से प्रस्थित होंगे!

बावज़ूद इसके, जिस प्रकार से कोविंद जी के प्रवास और उनके कार्यक्रमों को सीमित करने की चेष्टा प्रभावशाली व्यवस्था द्वारा की गई है, उसको लेकर बहुत सारे लोगों के मन में खिन्नता और अप्रसन्नता व्याप्त है! हालात ये हैं कि मीडिया को भी महामहिम के कवरेज से मनमानीपूर्वक वंचित किया गया है! बहुत से ऐसे प्रसंग हैं, जो सत्य लेकिन अप्रिय हैं, पर “आज़ादी का अमृत महोत्सव” मना रहे इस देश, इस मध्यप्रदेश और इस उज्जैन में उनकी यात्रा के दौरान घटित हो रहे हैं! कोविंद जी अत्यंत सहज, सरल मगर गंभीर व्यक्तित्व के धनी हैं और असंख्य नागरिकों की शुभकामनाएं उनके साथ हैं! मगर, व्यापक समाज उनसे ये अपेक्षा कर रहा है कि सुलभ और सुचारू व्यवस्था बनाने में वो कम से कम उज्जैन के समूचे प्रशासन का तो मार्गदर्शन कर ही दें!