फटी जीन्स की तरह स्मार्ट होता एक आधुनिक शहर

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अंदाज़ अपना✒️सुरेन्द्र बंसल का पन्ना

सुरेन्द्र बंसल

लगता है इंदौर शहर के प्रशासकों पर आधुनिकता और प्रगतिशील होने की स्मार्टनेस इनदिनों हावी हो रही है.. आने वाले समय मे नगरीय निकाय के चुनाव होने वाले हैं लेकिन सार्वजनिक पदों पर बैठे प्रशासन के कर्ताओं ने एक काम बखूबी किया है, शहर की उनकी उपभोक्ता जनता पर कोरोना से मरो या न मरों लेकिन करों से मरो और चाहे जैसे और जितने कपड़े फाड़ो…फटी जीन्स की तरह…. साफ सुथरे इस एक नम्बरी शहर के आधुनिक और प्रगतिशील सभ्य नागरिक ही कहलाओगे.शहर का प्रशासन इसी सोच को लेकर आगे बढ़ रहा है और वह अब इसे सिध्द भी करना चाहता है कि इंदौर के लोग कितने आधुनिक हैं जो अब फटी जीन्स पहनकर इंदौर शहर को स्मार्ट बनवाएंगे.

फटी जीन्स जैसे कपड़े अब गरीबखाना परिवार के वस्त्र नहीं रहे यह आधुनिकता और प्रगतिशीलता के प्रतिमान बन गए हैं। इंदौर नगर निगम के नए प्रस्तावित कर निगम सीमा के नागरिकों को फटी जीन्स पहनकर आधुनिक और स्मार्ट हो जाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं..ऐसा क्यों न हो जब पीने का पानी, सीवरेज, कचरा प्रबंधन आदि तरह तरह के मद जब दोहरे करारोपित हो जाएं तो हर नागरिक की पहनी हुई जीन्स तो फटना ही है और मज़बूरी में उसे उसी हालत में ही स्मार्ट दिखना है। शहर के स्मार्ट हो जाने की चुनौती इंदौरियों ने आखिर ली है और शहर का प्रशासन शहर को स्मार्ट बनाने में एक फैशन स्कूल बन गया है ।(जिस तरह का और संभवतः लागत से ऊपर खर्च सुंदर बनाने के लिए इंदौर में किया जा रहा है)

शहर जब चार साल पहले पहली बार स्वच्छता में नंबर वन आया तो सबको.. जी हां सभी को एक जुनून हो गया नम्बर वन बने रहने का .. नतीजा यह रहा इंदौर लगातार चार साल से नंबर वन होकर अब पंच लगाने की जुगत कर रहा है। यह जरूर है प्रशासन ने बहुतेरे योजनाबध्द प्रयास किये , सख्त मेहनत की , नतीजे में इंदौर नम्बर वन बना रहा,काबिले तारीफ यह भी था कि हज़ारों टन के कचरे का ‘ट्रेन्चिंग पहाड़’ जमींदोज होकर एक बाग में परिवर्तित हो गया और पैसा भी कमा कर देने लगा. अब पंच मारने में लगे इंदौर नगरनिगम की पंच लाइन ही यह हो गयी कि हम कचरे से पैसा कमाते हैं…हो भी क्यों नहीं… निगम आमदनी भी कचरे से कर रही है, यह भी सच है।

इस शहर को साफ सुथरा बनाने में स्वच्छता वारियर्स ने जो काम कर दिखाया है वह मिसाले तारीफ है लेकिन अफसरानों को लगता है जैसे भी हो यह शहर स्मार्ट हो जाये. उन्होंने नए प्रस्तावित करों का अनुमोदन करने के लिए फिर अपना जुनूनी पंच मारा और कहा कि आमदनी अठन्नी और खर्च रुपैय्या है इसलिए हुकुम सरकार इसे पांच गुना करें…

भोपाल में बैठी राज सरकार इस इन कोरोना के मरते दिनों में भी बात में आ गयी और संक्रमण का बचाव करते हुए बोली इतना बड़ा पंच मत मारो दोगुना ही कर लो… स्मार्ट इंदौर के फैशन स्कूली अफसरों को जैसे लाटरी लग गयी और उन्होंने बिना सोचे समझे जो हुकुम सरकार कहकर इंदौरियों के बिना इस्त्री के मुसे तुसे कपड़े भी फटी जीन्स में तब्दील कर दिए ,अब इसे हम इंदौर के बिगड़ा हुआ नागरिक भी कह सकते हैं आखिर चाहे मजबुरी में ही वह फटी जीन्स पहनेगा तो वह अपनी पहचान खत्मकर बिगड़ा हुआ स्मार्ट आदमी ही कहलायेगा।

जलकर , स्वच्छता, कचरा ,सीवरेज, संपत्ति आदि करो को किस दर से कितना अधिक कर दिया गया है इसके दर बताने की यहां जरूरत नहीं है, इसलिए इसमें और इसके आंकड़ों में मैं नहीं जाना चाहता बस इतना कहना है ,शहर में एक बड़ा मध्यवर्ग है जो शासन का महत्पूर्ण जीवंत अंग की तरह होता है, सरकार के हर निर्णय उसे प्रभावित करते हैं, और वह अपने योग से हर सरकार को भी जीवंत रखता है,

लेकिन सरकारें एक तरह से हुकुम दरबार की तरह होती हैं जो धर्म, जाति, सम्प्रदाय, के आधार पर संवैधानिक संरक्षण करते हुए अपने वोट बैंक को बचाकर मध्यवर्ग का हरदम शोषण करती है ..इंदौर नगर निगम के नए करारोपण यही मंशा को परिलक्षित करते हैं, लिहाज़ा हम कह सकते हैं नए करारोपण इंदौर शहर को फटी जीन्स की तरह स्मार्ट बनाने की एक ऐसी कवायद है जहां के लोग कोरोना से भयभीत होकर सोते हैं, अपनी जवाबदारियों की चिंता से जागते हैं, भय से बाज़ार जाते हैं , व्यापार,कामधंधे से खाली हाथ लौटते हैं, जो है उससे अपनी भूखी अग्नि को शांत करते हैं और फिर भी हुकुम सरकार की वाहवाही करते है.

एक बात और ऐसी विषम और कठिन परिस्थितियों में लोगों पर बड़ा बोझ लादने और उनके कपड़े फड़वाने का निर्णय क्यों लिया गया…हो सकता है और नहीं भी हो यह लेकिन जैसा मैंने शुरू में एक संकेत दिया है आनेवाले समय मे नगरीय निकाय के चुनाव भी होने हैं, उसी के मद्देनजर कोई राजनैतिक फैसला हो ,भारी कर लगने दो, हल्ला मचने दो, विरोध में सुर मिलने दो, जी आपको पता होगा शहर की महापौर ने करारोपण का विरोध किया है और भी सभी राजनैतिक दल के लोग कर रहे हैं… फिर जनता की मंशा का साथ निभाओ जितना कम कर सकते हो कर दो और जनता के साथ खड़े होकर राजनैतिक आधार कार्ड तैयार कर लो, हो सकता है यह हो… और नहीं भी फिर भी स्मार्ट तो सभी ही रहे हैं.