11 अक्टूबर को अमिताभ बच्चन अपनी जीवन-यात्रा के 80वें पढ़ाव पर चढ़े

Akanksha
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महानायक अमिताभ बच्चन 11 अक्टूबर 2021 को अपनी जीवन-यात्रा के 80वें पढ़ाव पर चल दिए. ऐसे समय जब भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ने हाल के दौर में दिलीप कुमार जैसे शीर्षस्थ अदाकार को खोया और छिछोरे कलाकारों से जुड़े कई सनसनीखेज मामलों के चलते मायानगरी शर्मसार भी हुई, अमिताभ बच्चन से सम्बंधित मेरा एक अनुभव जीवंत हो उठा है….. ये बात 26 सितम्बर 1998 की है, जब अमिताभ बच्चन के साथ मुझे चंद घंटों का सफ़र तय करना था. दरअसल वे ‘फ्री प्रेस’, इंदौर की 15वीं वर्षगांठ के सिलसिले में आयोजित एक जलसे में बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित थे. केन्द्रीय मंत्री (स्वर्गीय) प्रमोद महाजन, सत्यनारायण जटिया, सुमित्रा महाजन सहित ‘फ्री प्रेस ग्रुप ऑफ़ न्यूज़पेपर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर जेके करनानी और जाने-माने पत्रकार रफ़ीक जकारिया तथा जनार्दन ठाकुर (दोनों मुंबई) मंच पर आसीन थे. बास्केटबॉल कॉम्प्लेक्स में हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने की. मरहूम कल्पेश याज्ञनिक उस काल में इस अंग्रेजी दैनिक के संपादक हुआ करते थे ।

उस दिन अमिताभ बच्चन अलसुबह फ्लाइट से मुंबई से इंदौर पहुंचे. मेरे संस्थान के टॉप मैनेजमेंट ने आदेश दिया था कि उन्हें आपको एअरपोर्ट से रिसीव करना है और फिर चेंज वगैरह करने के लिए ताज रेजीडेंसी ले जाना है. यहां तो ठीक था, पर उन्हें निकट से जानने का अवसर तब मिला जब जिम्मेदारी मिली की उन्हें महाकालेश्वर मंदिर के दर्शन-पूजन के लिए ले जाइए और फिर वापस इंदौर लाकर उक्त होटल में सी-ऑफ कर देना. उस ज़माने में एकाध टेलिकॉम कंपनी ने मोबाइल सेवाएं लांच की थीं. आज की ही तरह मेरे पास तब-भी कार नहीं थी (हालांकि एक मोबाइल फ़ोन आज भी मेन्टेन कर रहा हूं). इतनी बड़ी हस्ती का उज्जैन दौरा अच्छे से संपन्न हो जाए, इसके लिए कई जतन करना पड़े: अग्रज भ्राता प्रवीण वशिष्ठ (MIT ग्रुप), मनीष शर्मा (कांग्रेस नेता और मुंहबोले जीजा) और राजेंद्र भारती (बोर्ड चेयरमैन) ने बहुत मदद की, क्रमश: अपना-अपना मोबाइल फ़ोन और पेट्रोल-भरी कार देकर और महाकालेश्वर मंदिर के तमाम प्रशासनिक इन्तजाम करके! अभिन्न मित्र विशाल हाडा, शैलेन्द्र कुल्मी और फोटोग्राफर दिनेश सोलंकी ने भी भरपूर साथ दिया ।

इस कड़ी में मुझे तत्कालीन कलेक्टर (स्व.) चंद्रप्रकाश अरोरा का भी स्मरण हो रहा है. मैं अमिताभ बच्चन की उज्जैन यात्रा का एक गोपनीय पत्र लेकर उनके बंगले पहुंचा और उन्हें बताया कि वे पद्माभूषण शिवमंगल सिंह सुमन से मिलने उनके निवास भी जा सकते हैं, क्यूंकि डॉ सुमन हरिवंशराय बच्चन के जिगरी दोस्त थे, और ये भी कि वे स्थानीय प्रेस से भी मिल सकते हैं, शिप्रा रेजीडेंसी में. तब, अरोरा साहब ने कहा था आप सारे इंतज़ाम हम पर छोड़ दीजिए… मैं और विशाल 25 सितम्बर की रात्रि इंदौर पहुंच गए थे, लेकिन मेरी रात काली हो गई: तत्कालीन एसडीएम और महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के प्रशासक आनंद शर्मा ने रात 10.30 बजे के आस-पास मोबाइल पर कॉल किया. वे उज्जैन की पैदाइश और बॉलीवुड के एक स्वनामधन्य पीआरओ के हवाले से बोले, “अमिताभ ने उक्त पीआरओ को किसी फिल्म की शूटिंग के दौरान उसी शाम बताया था कि उनका उज्जैन जाने का कोई प्रोग्राम नहीं हैं.” बहरहाल, मैंने पूरे कॉन्फिडेंस के साथ शर्माजी को बताया कि मैं प्रेस पर ही हूं और अमिताभजी के किसी भी कार्यक्रम में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है ।

तब, अमिताभ बच्चन की सुपर-डुपर हिट फिल्म, “बड़े मियां-छोटे मियां” रिलीज़ होने की कगार पर थी और उनका सर्वकालिक लोकप्रिय टीवी प्रोग्राम, “कौन बनेगा करोड़पति”, फ्लोर पर था. मगर, उस दौर में लगभग सड़क पर आ चुके अमिताभ इन सभी उपक्रमों की सफलता की कामना के लिए महाकाल मंदिर नहीं आए थे! खुद उन्होंने भी सार्वजनिक रूप से टिप्पणी की थी, “जब मैं कुली फिल्म की शूटिंग करने के वक़्त गंभीर रूप से चोटिल होकर अस्पताल में जीवन-मृत्यु के लिए संघर्ष कर रहा था, तो महादेवजी ने बहुत कृपा की थी. सो, आज मैं उनके दर्शन के लिए आ गया ।

रोड़-विहीन यानी अनगिनत गड्डोंवाली इंदौर-उज्जैन रोड पर हिचकोले खाते अमिताभ बच्चन के कारों के काफिले का सफ़र भी बहुत रोचक था: उज्जैन और इंदौर के अलावा रास्ते-भर में उनको चाहनेवाले उनकी एक झलक पाने को बेताब दिखाई दिए. कुछ दंपत्ति तो स्कूटर इत्यादि से साथ हो लिए. फोटो खिंचाने और ऑटोग्राफ लेने की होड़-सी मच गई! इस बीच, उज्जैन के प्रशासनिक अधिकारी बार-बार लोकेशन लेते रहे: मुझसे कहा गया कि जनता का बहुत रश हो चुका है, तो हम अमिताभजी को जूना महाकाल वाले रास्ते से मंदिर में प्रवेश कराएंगे और मुख्य द्वार से बाहर ले जाएंगे ।

मगर, उज्जैन में होता तो वही है जो महाकालजी चाहते हैं! सारी प्लानिंग धरी-की-धरी रह गई: क्राउड का इतना प्रेशर बढ़ा कि अमिताभ को मंदिर के मुख्य द्वार से ही अन्दर ले जाना पड़ा. तबके पुलिस अफसर लक्ष्मण सिंह चौहान, अरविन्द सक्सेना वगैरह को पसीने छूट गए! अमिताभ ने इन परिस्थितियों का भांप लिया था और वे लगातार धक्के खाने के बावजूद स्थिर बने रहे. उनके तीन निजी सहायकों में से एक श्री जैन ने तब बताया था, “सर को ऐसे हालात फेस करने की आदत है ।

महाकालेश्वर मंदिर के गर्भ-गृह में तो जैसे उस दिन तांडव ही मच गया था! पण्डे और सेवादार मानने को तैयार ही नहीं थे! मेरे संस्थान के गेस्ट होने के कारण पंडित राधेश्याम शास्त्री के माध्यम से पंडित महेश पुजारी को अधिकृत किया गया था, अमिताभ को गाइड करने के लिए. लेकिन बहुत-से दुकानदार-टाइप लोग उन्हें अपना जिजमान बताते रहे! …वापसी का समय हो गया, अमिताभ को मुख्य द्वार से ही निकाला गया. पहले योजना बनी थी कि ब-रास्ते देवास-मांगलिया उन्हें विजय नगर स्थित होटल वापस ले जाया जाए, किन्तु उनके व्यवस्थापकों ने कह दिया, इंदौर रोड से ही जाएंगे ।

हबड़-तबड़ में उनके उज्जैन से विसर्जित होते कारवां में जब मैं शामिल हुआ और डेस्टिनेशन पर पहुंचा और अमिताभ बच्चन को औपचारिक बिदाई दी, तो वे बोले, “YOUR CALM PLEASE” (ये लीजिए आपकी कलम, जो आपने मुझे दी थी)… आज जीवन के समीकरण जोड़ता हूं, तो लगता है कि अमिताभ बच्चन का इतना गहन सानिध्य पाकर भी कोई छायाचित्र उनके साथ नहीं खिंचवा पाया और ना ही उनका अमिट हस्ताक्षर ले पाया…ये उनकी पहली इंदौर और उज्जैन यात्रा थी. ‘अविभाजित’ मध्यप्रदेश में जरूर वे एक बार भोपाल आए थे, अपने ससुर तरुण कुमार भादुड़ी के किसी शोक के कार्यक्रम में ।

निरुक्त भार्गव