श्रवण गर्ग
है सबसे आसान काम रह जाना चुप होकर
उससे भी है आसान हो जाना चुप पूरी तरह
देख लेना ! भूल ही जाएँगे सब किसी दिन !
होता क्या है बोलते रहना किसी भी तरह का
पर याद रखना होगा हमें ठीक से यह भी कि
मिलने वाली है सजा न बोलने की भी कभी
छिन जाएगी आज़ादी जब हमेशा के ही लिए
बोलने के लिए ,बोलने की समूची आज़ादी !
पूछा भी जाएगा बचाव में अदालतों में हमसे
जानते ही नहीं हो जब होता है क्या बोलना!
माँग ही रहे हो क्यों बोलना फिर इस समय ?
लताड़ा भी जाए शायद भरी हुई अदालत में
पूछे जाएँ सवाल भी ज़ोर देकर बहुत हम से-
क्यों बोल रहे थे नहीं और उठा रहे थे आवाज़
लथड़ा रहे थे पैर लाखों जब नंगी सड़कों पर
बैठे हुए थे तुम घरों में जैसे कहीं थे ही नहीं!
नहीं निकली कोई आवाज़ किसी भी कोने से
किए जा रहे थे सौदे जब बेचने के लोकतंत्र!
गौर ही नहीं किया होगा तुमने थोड़ा भी कि –
किस कदर रहने लगे हैं खामोश अब हम सब
छोड़ दिया है माँगना कुछ भी,किसी तरह का
किसी और से या कि फिर अपने आप से भी!
आ गया है समय अच्छा, उनके लिए भी बहुत-
काटने का फसलों को बोलने की आज़ादी की
दे नहीं पाए हम फसलें बटाई पर बोलने की!
नहीं पड़ेगी अब ज़रूरत कायदे या कानून की-
बांधने के लिए हाथ या फिर जिस्मों को हमारे
बंद जुबाने ही कर देंगी काम जंजीरों से बेहतर।