मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश सुनाते हुए ऑर्डनेंस फैक्टरी में कार्यरत कर्मचारियों को राहत प्रदान की है। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस अवनींद्र कुमार सिंह की डिवीजन बेंच ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान साफ कहा कि ऑर्डनेंस फैक्टरी की ओर से दाखिल की गई याचिकाओं में कोई दम नहीं है। अदालत ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के आदेश को बरकरार रखते हुए सरकार की ओर से लगाई गई 30 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
कैट का फैसला कर्मचारियों के पक्ष में
दरअसल, यह पूरा मामला छठवें वेतनमान की विसंगतियों से जुड़ा हुआ था। छठवें वेतन आयोग की सिफारिशों में स्पष्ट प्रावधान था कि कर्मचारियों के ओवरटाइम भत्ते की गणना में हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए), ट्रेवलिंग अलाउंस (टीए) और स्मॉल फैमिली अलाउंस को शामिल किया जाए। लेकिन, 2006 में वेतनमान लागू होने के बाद से इन मदों को ओवरटाइम की गणना में नहीं जोड़ा गया। इससे कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान उठाना पड़ा। इसी अन्याय के खिलाफ कर्मियों ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण, जबलपुर बेंच का दरवाजा खटखटाया।
कैट का आदेश और हाईकोर्ट की टिप्पणी
24 मार्च 2025 को कैट ने कर्मचारियों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए स्पष्ट निर्देश दिए थे कि तीन महीने के भीतर एचआरए, टीए और स्मॉल फैमिली अलाउंस को जोड़कर ओवरटाइम की पुनर्गणना की जाए और बकाया राशि का भुगतान किया जाए। इस आदेश को चुनौती देते हुए जबलपुर स्थित ऑर्डनेंस फैक्टरी की विभिन्न यूनिटों ने हाईकोर्ट में 30 याचिकाएं दाखिल की थीं। लेकिन हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं को आधारहीन ठहराते हुए साफ कहा कि बार-बार ऐसी याचिकाएं दायर करना कर्मचारियों के अधिकारों का हनन है।
केंद्र सरकार और फैक्टरी पर आर्थिक दंड
कोर्ट ने न केवल याचिकाओं को खारिज किया बल्कि सख्ती दिखाते हुए केंद्र सरकार और आयुध निर्माणियों पर तीन लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने कहा कि हर एक याचिका पर दस हजार रुपए कॉस्ट के रूप में अदा करना होगा। न्यायालय ने इस कदम को “कर्मचारियों को न्याय से वंचित करने का प्रयास” करार दिया। यह आदेश न केवल कर्मचारियों के हक की रक्षा करता है बल्कि सरकारी तंत्र को भी चेतावनी देता है कि आधारहीन मुकदमेबाजी से बचें।
कर्मचारियों के लिए बड़ी जीत
इस फैसले को आयुध निर्माणियों के हजारों कर्मचारी अपनी बड़ी जीत मान रहे हैं। लंबे समय से वेतन विसंगति का सामना कर रहे इन कर्मचारियों को अब एचआरए, टीए और अन्य भत्तों सहित ओवरटाइम का उचित भुगतान मिलेगा। हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब सरकार और फैक्टरी प्रबंधन को तीन माह की तय समयसीमा में भुगतान की प्रक्रिया पूरी करनी होगी।