पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के 42 जिलों में बिजली निजीकरण के मुद्दे पर सोमवार को कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। ऊर्जा विभाग निजीकरण प्रस्ताव लेकर विद्युत नियामक आयोग पहुंचने की तैयारी कर रहा है और इसके लिए उसने ठोस रणनीति बनाई है। वहीं, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद भी सोमवार को आयोग में उपस्थित होगा और कानूनी प्रस्ताव दाखिल कर निजीकरण प्रस्ताव को रद्द करने की मांग करेगा।
पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण मामले में विद्युत नियामक आयोग पहले ही कई कमियों की पहचान कर चुका है। ऊर्जा विभाग इन कमियों को दूर कर नए सिरे से आयोग में प्रस्ताव पेश करने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों के अनुसार, सोमवार को विभाग की टीम नियामक आयोग पहुंचेगी और आयोग अध्यक्ष को कमियां सुधारने के प्रयासों से संतुष्ट करने की कोशिश करेगी।
विभाग की रणनीति यह है कि उसके प्रस्ताव पर नियामक आयोग की मंजूरी मिलते ही आगे की कार्रवाई शुरू की जाए। इस बात की जानकारी मिलते ही राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने भी अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। परिषद सोमवार को आयोग में कानूनी आपत्ति पेश करेगी और मांग करेगी कि निजीकरण से जुड़े सभी दस्तावेज अभी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं, इसलिए इन्हीं आंकड़ों के आधार पर प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी जा सकती। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने बताया कि नियामक आयोग द्वारा पिछले पांच वर्षों में जारी किए गए सभी बिजली दर आदेशों के खिलाफ बिजली कंपनियों और पॉवर कॉरपोरेशन ने अपीलेट ट्रिब्यूनल में मामले दर्ज कर रखे हैं।
आयोग के समक्ष मौन प्रदर्शन की तैयारी
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने रविवार को फील्ड हॉस्टल में हुई बैठक में निर्णय लिया कि यदि विद्युत नियामक आयोग निजीकरण संबंधी दस्तावेज को अनुमति देता है, तो आयोग कार्यालय के सामने मौन प्रदर्शन किया जाएगा। उनका कहना है कि यह दस्तावेज केवल निजी हितों को लाभ पहुँचाने के लिए तैयार किया गया है। पदाधिकारियों ने बताया कि आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार पहले पॉवर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष रह चुके हैं। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने 5 अक्टूबर 2020 को संघर्ष समिति के साथ लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें यह सुनिश्चित किया गया था कि बिजली कर्मचारियों की सहमति के बिना प्रदेश के किसी भी क्षेत्र में बिजली का निजीकरण नहीं किया जाएगा। ऐसे में पूर्वांचल और दक्षिणांचल के निजीकरण दस्तावेज को मंजूरी देना इस समझौते का स्पष्ट उल्लंघन होगा।