फिल्मी दुनिया की चकाचौंध भले ही बाहर से आकर्षक लगे, लेकिन इसके पीछे कई संघर्ष की कहानियाँ छिपी होती हैं। ऐसी ही कहानी है एक्ट्रेस शिल्पा शिरोडकर की, जिन्हें कभी फिल्म इंडस्ट्री में “मोटी”, “भद्दी” और यहां तक कि “मनहूस” तक कहा गया। लेकिन एक समय ऐसा आया जब सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती उनके लिए मसीहा बनकर सामने आए।
उम्मीद की किरण बनें मिथुन चक्रवर्ती
शिल्पा शिरोडकर का फिल्मी सफर 1989 में रमेश सिप्पी की फिल्म भ्रष्टाचार से शुरू हुआ था, जिसमें उन्होंने एक अंधी महिला का किरदार निभाया था। लेकिन उनका करियर शुरू होता इससे पहले ही लड़खड़ाने लगा था। बोनी कपूर उन्हें अपने भाई संजय कपूर के अपोजिट लॉन्च करना चाहते थे, लेकिन फिल्म डिब्बा बंद हो गई। इसके बाद संजय कपूर ने तब्बू के साथ फिल्म प्रेम से डेब्यू किया और शिल्पा के हाथ से मौका फिसल गया।
इस असफल शुरुआत के बाद इंडस्ट्री में उन्हें “पनौती” कहा जाने लगा। निर्माता-निर्देशक उनसे दूरी बनाने लगे और कोई भी उनके साथ काम करने को तैयार नहीं था। लेकिन इस मुश्किल वक्त में एक नाम उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर आया—मिथुन चक्रवर्ती।
एक इंटरव्यू में शिल्पा ने बताया कि उस समय माधुरी दीक्षित के मैनेजर रहे रिकू राकेश नाथ ने उनकी मदद की। उन्होंने मिथुन दा से रिक्वेस्ट की कि वे शिल्पा को एक मौका दें। मिथुन चक्रवर्ती ने न सिर्फ हामी भरी, बल्कि कोलकाता में एक बंगाली फिल्म के भव्य मुहूर्त में शिल्पा को बतौर हीरोइन लॉन्च करने का ऐलान भी कर दिया।
अगर दादा ना होते तो शायद मैं कभी फिल्मों में नहीं आ पाती: शिल्पा
शिल्पा कहती हैं, “मुझे फिल्म इंडस्ट्री में पहला ऑफर दादा (मिथुन चक्रवर्ती) की वजह से मिला। अगर वो नहीं होते तो शायद मैं कभी फिल्मों में नहीं आ पाती।” इसके बाद शिल्पा ने भ्रष्टाचार में काम किया और इंडस्ट्री में एक पहचान बनाना शुरू किया।
बाद में शिल्पा ने गोविंदा के साथ आंखें और प्रतीक्षा जैसी फिल्मों में काम किया। उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ भी स्क्रीन शेयर की। लेकिन लंबे समय तक इंडस्ट्री में टिक नहीं पाईं और शादी के बाद एक्टिंग से ब्रेक लेकर लंदन में सेटल हो गईं।
शिल्पा शिरोडकर की कहानी यह साबित करती है कि टैलेंट को समय भले ही लगे, पर उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। और कभी-कभी एक सही इंसान का साथ आपकी पूरी ज़िंदगी बदल सकता है।












