महाराष्ट्र में भाषा को लेकर छिड़ी बहस में अब एक नया मोड़ आ गया है। बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने मराठी भाषा को लेकर उठे विवाद में उद्योगपति मुकेश अंबानी का नाम घसीटते हुए बयान दिया है। उन्होंने कहा, “हिम्मत है तो अंबानी साहब से भी कहिए कि वे मराठी क्यों नहीं बोलते।” दुबे का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उनके पूर्ववर्ती बयान-“पटक पटक कर मारेंगे” ने पहले ही राजनीतिक गर्मी बढ़ा दी थी। इस बयान से जहां मराठी समर्थकों में आक्रोश है, वहीं बीजेपी का एक बड़ा खेमा उनके समर्थन में उतर आया है। दुबे ने यह भी आरोप लगाया कि उनके बयानों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है और जानबूझकर राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।
मराठी बनाम हिंदी बहस में नया पेंच
भाषाई अस्मिता को लेकर महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा संवेदनशील रही है। पिछले कुछ वर्षों में मराठी बनाम हिंदी, या “स्थानीय बनाम बाहरी” की बहस ने कई बार उबाल लिया है। निशिकांत दुबे ने इस बहस में यह कहते हुए आग में घी डाल दिया कि मुंबई जैसे महानगर में सिर्फ मराठी बोलने की अपेक्षा करना व्यावहारिक नहीं है। दुबे ने दावा किया कि महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्य में हर भाषा के लोग रहते हैं, और सबको बोलने की आज़ादी मिलनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी, भारत की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है, और इसकी उपेक्षा करना किसी भी राज्य के लिए उचित नहीं होगा।

विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया, शिवसेना और कांग्रेस ने किया विरोध
दुबे के अंबानी पर टिप्पणी करते ही विपक्षी दलों का हमला तेज हो गया। शिवसेना (ठाकरे गुट) और कांग्रेस ने इस बयान को “भड़काऊ और अपमानजनक” करार दिया। शिवसेना प्रवक्ता ने कहा कि मुकेश अंबानी का मराठी न बोलना इस विवाद का मुद्दा नहीं है, मुद्दा है महाराष्ट्र की अस्मिता और मराठी भाषा का सम्मान। कांग्रेस नेता ने कहा कि बीजेपी नेता भाषा को लेकर जानबूझकर नफरत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि असली मुद्दों से जनता का ध्यान हटाया जा सके। वहीं, एनसीपी (शरद पवार गुट) ने भी बयान की आलोचना करते हुए कहा कि “मराठी का अपमान करने वाले को महाराष्ट्र कभी माफ नहीं करेगा।”
राजनीतिक रणनीति या असली चिंता?
विश्लेषकों का मानना है कि निशिकांत दुबे का यह बयान सिर्फ एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक रणनीति का हिस्सा हो सकता है। महाराष्ट्र में आगामी निकाय चुनावों से पहले यह मुद्दा हिंदीभाषी बनाम मराठीभाषी के ध्रुवीकरण की दिशा में काम कर सकता है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि दुबे जैसे नेता इस बहस को हिंदुत्व की बड़ी राजनीति से जोड़कर देख रहे हैं, जिसमें भाषा को लेकर राष्ट्रवाद की एक नई व्याख्या पेश की जा रही है। वहीं, यह भी सच है कि इस विवाद ने आम लोगों के बीच भी असमंजस और नाराज़गी पैदा की है, खासकर मुंबई और पुणे जैसे शहरी इलाकों में, जहां बहुभाषीय संस्कृति पनपती रही है। निशिकांत दुबे का अंबानी को लेकर दिया गया बयान महाराष्ट्र की राजनीति में एक और तूफान खड़ा कर चुका है। मराठी बनाम हिंदी की यह बहस सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं रह गई, बल्कि यह अब सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक पहचान की लड़ाई बन चुकी है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है, क्या यह चुनावी रणनीति में तब्दील होगा, या फिर वाकई भाषा और अस्मिता पर गहन संवाद का माध्यम बनेगा।