भारत में धान एक प्रमुख खाद्य फसल है, लेकिन बदलते पर्यावरण, घटते जल स्रोत और बढ़ती कृषि लागतों ने किसानों के लिए इसकी खेती को चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
इन समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों ने धान की एक नई किस्म कोकिला-33 विकसित की है, जो कम पानी में भी अधिक उपज देने में सक्षम है। यह किस्म किसानों के लिए एक नई उम्मीद की तरह उभर रही है।

कम पानी, कम समय, अधिक उत्पादन
कोकिला-33 की सबसे बड़ी विशेषता इसकी कम अवधि में पकने की क्षमता है। जहां पारंपरिक धान की किस्में पकने में 120–130 दिन लेती हैं, वहीं कोकिला-33 केवल 105–110 दिनों में तैयार हो जाती है। इसकी 50% पुष्पन अवधि महज 88 दिन है, जो इसे अल्पावधि फसलों की श्रेणी में शामिल करता है। इस किस्म से किसान प्रति एकड़ 30 से 32 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं, वो भी कम सिंचाई में।
रोगों से सुरक्षित, मजबूत और टिकाऊ फसल
कोकिला-33 किस्म की एक और अनोखी विशेषता इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता है। यह किस्म जड़ की बीमारियों और अन्य आम रोगों के प्रति काफी हद तक प्रतिरोधी है, जिससे किसानों की दवा और उपचार में होने वाली लागत घटती है। इसके अलावा, पौधे की ऊंचाई 92 से 96 सेमी होती है और तना मजबूत होने के कारण फसल गिरने का खतरा नहीं रहता।
गुणवत्ता में भी बेहतरीन
इस किस्म के दाने लंबे, पतले और चमकदार होते हैं, जिससे बाजार में इसकी मांग और मूल्य दोनों अधिक होते हैं। इसकी गुणवत्ता इसे पी.बी.-1692 और पी.बी.-1509 जैसी किस्मों से भी बेहतर बनाती है। किसान इस किस्म को तेजी से अपना रहे हैं, और यह धीरे-धीरे पूरे भारत में लोकप्रियता हासिल कर रही है।
बुवाई से पहले करें बीज उपचार
कोकिला-33 की खेती से पहले बीज का उपचार करना बेहद जरूरी है। 1 लीटर पानी में 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाकर बीजों को भिगोना चाहिए ताकि वे फफूंद जनित बीमारियों से सुरक्षित रहें। प्रति एकड़ 8 से 10 किलो बीज की मात्रा पर्याप्त मानी जाती है।
विशेषज्ञों की राय में कोकिला-33 किसानों के लिए वरदान
जिला कृषि अधिकारी राजितराम के अनुसार, “खरीफ के मौसम में धान की खेती बड़े पैमाने पर होती है, लेकिन पानी की कमी इसकी उपज को प्रभावित करती है। ऐसे में कोकिला-33 जैसी किस्में किसानों के लिए बेहद फायदेमंद हैं, जो कम समय में अधिक मुनाफा देती हैं।”