कल होगा बुराई का अंत, सिर्फ इतने घंटे मिलेगा होलिका दहन का शुभ समय, जानें विधि और महत्व

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By Abhishek SinghPublished On: March 12, 2025

होलिका दहन अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। यह पर्व भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद की स्मृति में मनाया जाता है, जिन्हें उनकी बुआ होलिका ने आग में जलाने का प्रयास किया था। इस दिन लोग लकड़ियों और उपलों का ढेर जलाकर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वे नकारात्मकता को दूर करें और सकारात्मकता का संचार करें। आइए जानें इस वर्ष होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है और भद्रा के प्रभाव में पूजा के लिए कितना समय उपलब्ध होगा।

शुभ मुहूर्त में जलाएं होलिका

इस वर्ष होलिका दहन 13 मार्च को संपन्न होगा, लेकिन भद्रा काल में इसे करना वर्जित माना जाता है। 13 मार्च को भद्रा पूंछ शाम 6:57 बजे से शुरू होकर रात 8:14 बजे तक रहेगी, जिसके बाद भद्रा मुख का प्रभाव रात 10:22 बजे तक रहेगा। इस स्थिति में, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11:26 बजे से प्रारंभ होकर रात 12:30 बजे तक रहेगा। इस वर्ष, होलिका दहन के लिए कुल 1 घंटा 4 मिनट का समय उपलब्ध होगा।

धार्मिक और पौराणिक दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है होलिका दहन?

होलिका दहन का पर्व अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भक्त प्रह्लाद की अटूट भक्ति के कारण होलिका का अंत हुआ, जिससे यह सिद्ध होता है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने वालों की हमेशा विजय होती है। यह उत्सव आत्मा की शुद्धि, मन की पवित्रता और समाज में सद्भावना को बढ़ावा देने का संदेश देता है। होलिका दहन से पहले लोग इसकी विधिपूर्वक पूजा करते हैं, और दहन के पश्चात एक-दूसरे को रंग लगाकर हर्षोल्लास के साथ होली का त्योहार मनाते हैं।

कैसे करें होलिका दहन की पूजा?

होलिका दहन के लिए किसी खुले और सुरक्षित स्थान का चयन करें और वहां लकड़ियों व उपलों को एकत्रित करके होलिका तैयार करें। इसके समीप एक लकड़ी या डंडा स्थापित करें, जिसे होलिका का प्रतीक माना जाता है। शुभ मुहूर्त में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजा प्रारंभ करें। सबसे पहले, होलिका का तिलक रोली, चावल और हल्दी से करें। इसके बाद, कच्चे सूत को तीन या सात बार होलिका के चारों ओर लपेटें और फूलों की माला अर्पित करें। श्रद्धापूर्वक गुड़, बताशे, नारियल, हल्दी व गेहूं की बालियां चढ़ाएं। फिर, जल से भरे लोटे से होलिका का अभिषेक करें और परिवार के साथ मिलकर तीन या सात बार उसकी परिक्रमा करें। इस दौरान अपनी इच्छाओं और सुख-समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करें। पूजा पूर्ण होने के बाद, विधिपूर्वक होलिका में अग्नि प्रज्वलित करें और उसकी पवित्र ज्वाला में गेहूं की बालियां भूनकर प्रसाद के रूप में ग्रहण करें।