भाजपा जिस विचारधारा को मानती है, राष्ट्रीयता को लेकर जैसा आक्रामक रुख अपना कर आगे बढ़ती है, इसे देखते हुए स्कूलों में उपस्थिति के दौरान छात्रों द्वारा ‘जयहिंद’ बोलने का निर्णय काफी पहले लागू हो जाना चाहिए था। विजय शाह जब प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री थे तब निर्णय लिया गया था कि स्कूलों में उपस्थिति के लिए शिक्षक छात्र का नाम पुकारेंगे तो वे ‘यश सर-यश मेडम’ नहीं, ‘जयहिंद’ बोलेंगे। विजय शाह स्कूल शिक्षा विभाग से हटे तो यह निर्णय भी ठंडे बस्ते में चला गया।
विजय शाह को अपने इस निर्णय की याद फिर आई है। उन्होंने अपने प्रभार के जिलों सतना और नरसिंहपुर के कलेक्टरों एवं शिक्षा विभाग के अफसरों को इस संबंध में निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि 15 अगस्त से हर स्कूल में बच्चे उपस्थिति के लिए शिक्षक द्वारा नाम पुकारे जाने पर ‘जयहिंद’ बोलें, ‘यश सर- यश मेडम’ नहीं। शाह का कहना है कि इससे बच्चों में राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत होगी। इस दिशा में उन्होंने कुछ और कदम उठाने की बात भी कही है। सवाल यह है कि इस निर्णय पर अमल रोककर क्यों रखा गया। अब भी यह सिर्फ दो जिलों में ही क्यों, पूरे प्रदेश में क्यों लागू नहीं हो सकता।
क्या तय है कमलनाथ की प्रदेश से विदाई….
कमलनाथ की दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद से ही उनके केंद्रीय राजनीति में जाने को लेकर अटकलें तेज हैं। हालांकि पहले दिल्ली और वहां से लौटने के बाद भोपाल में कमलनाथ कह चुके हैं कि वे प्रदेश की राजनीति में सक्रिय रहेेंगे, मप्र नहीं छोड़ेंगे। राजनेता बार-बार कोई बात दोहराएं तो लोगों को ‘दाल में कुछ काला’ नजर आने लगता है, क्योंकि आमतौर पर नेता जो बोलते हैं, वह होता नहीं। पर्यावरण पर लिखी एक पुस्तक के लोकापर्ण कार्यक्रम के दौरान वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह से जुड़े लोगों ने जिस तरह अगला चुनाव कमलनाथ के चेहरे पर लड़ने की बात कही, इससे भी कहीं कोई गड़बड़ के संकेत मिलते हैं।
शुरुआत दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह ने की। समर्थन पहले दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह ने किया, इसके बाद डा. गोविंद सिंह ने। पर्दे के पीछे का सच यह तो नहीं कि सब बोलते कुछ रहें और कमलनाथ की विदाई हो जाए, जिस तरह पंजाब के मुख्यमंत्री चाहते थे कि नवजोत सिंह सिद्धू प्रदेश अध्यक्ष न बने लेकिन बन गए। इसी प्रकार कमलनाथ बोलते रहें कि वे प्रदेश की राजनीति नहीं छोड़ेंगे और उन्हें मजबूर कर दिया जाए। फैसला क्या होता है यह बाद में पता चलेगा लेकिन कमलनाथ को केंद्र में ले जाने की कसरत तो चल रही है।
निगम-मंडलों में नियुक्तियां इतनी आसान नही
निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर चर्चा एक फिर गरम है। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री की संगठन के नेताओं के साथ कसरत पूरी हो चुकी है। यह भी कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक चार नामों पर सहमति बना ली गई है। सिंधिया समर्थक ये पूर्व मंत्री एवं पूर्व विधायक उप चुनाव में पराजय के बाद से ही सरकार में हिस्सेदारी का इंतजार कर रहे हैं। सिंधिया इस मसले को लेकर कई दौर की बात मुख्यमंत्री और संगठन के नेताओं से कर चुके हैं।
दावेदारों में जल्द नियुक्तियों की उम्मीद जागी है, बावजूद इसके यह काम इतना आसान नहीं है। इसकी बड़ी वजह खुद सिंधिया और उनके समर्थक हैं। सिंधिया चाहते हैं कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए और उप चुनाव हार चुके सभी सात पूर्व विधायकों को निगम-मंडलों में जगह दी जाए। कांग्रेस छोड़कर आए कुछ और खास समर्थकों के लिए भी उनका जोर है। मुख्यमंत्री की संगठन के नेताओं से चर्चा में सिर्फ 4 नेताओं पर सहमति बनने की खबर है। ये इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया, मुन्नालाल गोयल एवं रणवीर जाटव हैं। चुनाव हारे एंदल सिंह कंसाना का नाम भी सूची में बताया जा रहा है।
फिर भी खबर है कि अभी पूरी तरह से सहमति नहीं बन सकी है, इसलिए सूची अटक गई है। कमलनाथ के कथन से सकते में अरुण कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव एक बार फिर खंडवा लोकसभा से उप चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। उनके भाई पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव उनकी मदद कर रहे हैं। पर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के एक कथन ने उन्हें सकते में डाल दिया है। उनका खंडवा से टिकट खतरे में पड़ गया है। कमलनाथ ने कहा है कि न तो खंडवा की सर्वे रिपोर्ट अब तक आई है और न ही अरुण ने मुझसे कहा है कि वे चुनाव लड़ना चाहते हैं। वे यह भी साफ कर चुके हैं कि टिकट सर्वे के आधार पर ही दिया जाएगा। है न खबर अचंभित करने वाली। कांग्रेस का हर पदाधिकारी व नेता जानता है कि अरुण खंडवा से एकमात्र पार्टी के मजबूत दावेदार हैं।
वे क्षेत्र में डेरा डालकर मेहनत कर रहे हैं। समस्या यह है कि अरुण ग्वालियर के एक गोडसे भक्त को कांग्रेस में लेने पर कमलनाथ के खिलाफ तीखा हमला बोल चुके हैं। इसे लेकर मानक अग्रवाल जैसे वरिष्ठ नेता को पार्टी से निलंबित किया जा चुका है। ऐसे में कमलनाथ आसानी से अरुण को टिकट नहीं लेने देंगे। इसके लिए अरुण को विरोध के लिए गलती मानना पड़ सकती है। वर्ना अरुण खंडवा से लगातार दो चुनाव हार चुके हैं, इस आधार पर उनका टिकट काटा भी जा सकता है। दिग्विजय ने क्यों लिया प्रहलाद-वीडी का नाम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह खबरें देने वाले नेता के रूप में जाने जाते हैं।
भाजपा में शिवराज सिंह के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय एवं नरोत्तम मिश्रा के नाम लिए जाते हैं। कहा जाता है कि जब कभी निर्णय हुआ तो इनमें से ही फैसला होगा। दिग्विजय ने नई गुगली फेंक दी। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की दौड़ में अब दो नाम प्रहलाद पटेल एवं वीडी शर्मा के ही बचे हैं। प्रहलाद को उन्होंने नरेंद्र मोदी-अमित शाह की पसंद बताया और वीडी को संघ की। सवाल यह है कि दिग्विजय ने आखिर इन दो नेताओं के ही नाम क्यों लिए। वीडी इसलिए उपयुक्त क्यों कि वे संघ की पसंद हैं। वे तेजी से पहले महामंत्री, फिर सांसद और प्रदेश अध्यक्ष के पद तक पहुंचे हैं। वे दौड़ में शामिल हो सकते हैं।
लेकिन प्रहलाद का नाम गले नही उतर रहा। हाल में डिमोशन कर स्वतंत्र प्रभार से हटाकर उन्हें राज्यमंत्री बना दिया गया है। वे भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती के खास सहयोगी रहे हैं। जासूसी कांड में भी उनका नाम आया है। हां, उमा के कारण लोधी समाज नाराज न हो, इसकी भरपाई के लिए जरूर प्रहलाद का नाम आ सकता है। वजह जो भी हो लेकिन दिग्विजय के कारण मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को लेकर नई बहस छिड़ गई है।
दिनेश निगम ‘त्यागी’