बच्चों को स्वस्थ और खुशहाल माहौल देंगे तो उनकी संभावनाएं और बढ़ा सकते हैं – डॉ. कामना जैन

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• द मदर्स ब्लॉसम्स इंटरनेशनल स्कूल ने आयोजित की पेरेंटिंग वर्कशॉप

Indore News : बेशक, माता-पिता बनना दुनिया के सबसे कठिन कामों में से एक है, लेकिन यह सबसे अधिक संतोषजनक भी है। इसके लिए माता-पिता को जितनी सहायता और जानकारी मिल सके, उतनी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, प्रभावी पेरेंटिंग के मूल सिद्धांतों को सीखने के लिए प्रशिक्षण, परामर्श और कार्यशालाओं से उन्हें लाभ होता है।

अपनी इनोवेटिव शिक्षा पद्धति के लिए प्रसिद्ध इंदौर के द मदर्स ब्लॉसम्स इंटरनेशनल स्कूल द्वारा बच्चों की बेहतर परवरिश के लिए माता-पिता को मार्गदर्शन देने के लिए एक पेरेंटिंग वर्कशॉप का आयोजन किया गया। हाल ही में स्कूल कैंपस में हुई इस वर्कशॉप में, अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविद सुरेंद्र सिंह और बाल चिकित्सक डॉ. कामना जैन ने माता-पिता को बच्चों की परवरिश से जुड़ी विभिन्न जानकारी दी। उन्होंने बच्चों के विकास, व्यवहार, और उन्हें अनुशासित करने के प्रभावी तरीकों के बारे में चर्चा की। साथ ही माता-पिता को भी पेरेंटिंग के तरीके बताए।

डॉ. कामना जैन ने विशेष रूप से बच्चों के स्वास्थ्य और विकास पर बात करते हुए कहा कि – “बच्चों के लिए पेरेंटिंग बहुत जरूरी है लेकिन इसके लिए कोई फार्मूला नहीं है। हमें पता होना चाहिए कि हमारे बच्चे के लिए क्या सही है इसलिए पेरेंट्स को लगातार सीखते रहने की जरूरत है। पेरेंटिंग सिर्फ बच्चों का पालन-पोषण करना ही नहीं है, बच्चों को स्वस्थ और खुशहाल माहौल देना, आर्थिक सुरक्षा देना भी पेरेंटिंग का हिस्सा है। यदि हम उन्हें स्वस्थ और खुशहाल माहौल देंगे तो उनकी संभावनाएं और बढ़ा सकते हैं।

किताबें पढक़र डिग्रीया तो हमारे बच्चे ले ही लेंगे, उन्हें अपने माता-पिता और अपने घर के बड़ो से सीखने दें। पेरेंटिंग में तीन स्किल्स बहुत जरूरी है- स्लीप हाइजीन, स्क्रीन टाइम और टाइम मैनेजमेंट। स्लीप हाइजीन के लिए आपको बच्चों के बेडरूम को हैप्पी प्लेस बनाना होगा। डिनर करने के बाद कुछ कहानियां उन्हें सुनाएं, म्यूजिक या फिजिकल एक्टिविटी करवाए, इससे स्लीप हाइजीन बनी रहेगी। स्क्रीन टाइम का मतलब होता है, जो समय आप टीवी, मोबाइल या लैपटॉप पर बिताते हैं। कई पैरेंट्स को लगता है कि मोबाइल देखकर बच्चा भाषा सिखेगा लेकिन ऐसा नहीं होता है। ज्यादा स्क्रीन टाइम कई तरह की परेशानियां पैदा करता है।

अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स की एक रिपोर्ट में पाया गया है कि खाना खाते समय बच्चों को मोबाइल देना मेडिकली सही नहीं है। दो साल से कम उम्र वाले बच्चें को मोबाइन नहीं देना चाहिए। वहीं, 10 साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को दो से तीन घंटे ही मोबाइल चलाना चाहिए। इसमें भी एक घंटे से ज्यादा एकसाथ नहीं चलाना चाहिए। पढ़ाई के लिए बच्चों को मोबाइल देते समय मॉनिटर जरूर करें। टाइम मैनेजमेंट करने के लिए आपको नियम बनाना होंगे और उसी के हिसाब से चलना होगा। अपनी सुविधा के अनुसार उस शेड्यूल को नहीं बिगाड़े। एक घंटा फिजिकल एक्टिविटी के लिए जरूर रखें।”

अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविद सुरेंद्र सिंह ने एआई के युग में शिक्षा की नई दिशाओं से देखने और समझने की बात की और कहा, माता-पिता अपने बच्चों को भविष्य तैयार करने के लिए स्कूल भेजते हैं। मेरा मानना है की बच्चो की प्रारंभिक शिक्षा तो उसके घर से शुरू हो जाती है, हमें ये ध्यान रखना चाहिए की वे खुश है या नहीं उन्हें हमें खुश रखना होगा वे अगर खुश रहे तो पढ़ाई तो वे अपने आप कर लेंगे। कई बार मैंने देखा कि यहां के पेरेंट्स मार्क्स, होमवर्क और अपने बच्चे की तुलना दूसरों से करने में लगे रहते है। पेरेंट्स को यह बात समझने की जरूरत है कि हर बच्चे की संभावनाएं और क्षमताएं अलग-अलग है। वे उनकी संभावनाओं के हिसाब से उन्हें तैयार करें ना कि दूसरों को देखकर उन पर भार डालने की कोशिश करें।

द मदर्स ब्लॉसम्स इंटरनेशनल स्कूल के डायरेक्टर्स वंदना नागर और अरुण जोशी ने बताया- “हम मानते हैं कि केवल उत्कृष्ट शैक्षणिक प्रदर्शन ही बच्चे के जीवन में सफलता सुनिश्चित नहीं करता। माता-पिता के लिए अपने बच्चों के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। इस कार्यशाला का उद्देश्य माता-पिता के कौशल को मजबूत करना है ताकि बच्चों की पेरेंटिंग एक सुखद अनुभव बन सके। इसके अलावा, यह माता-पिता को अपने बच्चों को बेहतर समझने और उनके साथ बातचीत करने के नए तरीके सीखने में मदद करेगा।”

इस अवसर पर मिनल शर्मा ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि – “पेरेंटिंग के इस सेशन से पेरेंट्स को बहुत मदद मिलेगी। मदर्स ब्लॉसम्स इंटरनेशनल स्कूल हर साल माता-पिता को उनकी पालन-पोषण यात्रा में सहायता करने के लिए इस तरह की कार्यशाला आयोजित करता आ रहा है और आगे भी करेगा। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य माता-पिता को उनके बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और पालन-पोषण के मुद्दों पर जागरूक करना है।”