नोटबंदी के 7 साल हुए पूरे: भाजपा सरकार के बड़े फैसलों में से एक था नोटबंदी, जमकर हुई थी राजनीति!

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न्यूज डेस्क: नवंबर 8, 2016 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक फैसले ने भारतीय अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया था, जब उन्होंने 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को निरस्त कर दिया था। इस बड़ी घटना को “नोटबंदी” कहा गया और यह एक महत्वपूर्ण दिन बन गया जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी प्रभावित किया।

नोटबंदी के सात साल बाद, हम इस प्रक्रिया के परिणाम और उसके प्रभाव को देख रहे हैं। इस समय तक, कई अद्वितीय आँकड़े सामने आए हैं और विचारकों ने इस पर विभिन्न दृष्टिकोण रखे हैं।

नोटबंदी के फैसले को सियासत के प्रिज्म में देखते समय, इस फैसले को द्वितीयकरण के लिए आर्थिक भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ कदम उठकरने का प्रयास बताया जाता है। इसका उद्देश्य था कि नकारात्मक पैसे का साहस तोड़ा जाए और बेईमानी का खिलाफ कदम उठाया जाए।

नोटबंदी के साथ, भारतीय अर्थव्यवस्था में तीव्र प्रभाव हुआ। यह कई लोगों को आपातकालीन स्थिति में डाल दिया, लेकिन सरकार के अनुसार, इसका उद्देश्य बिना नकारात्मक धन के साथ अर्थव्यवस्था को पुनर्निर्मित करना था।

नोटबंदी के सात साल बाद भी, कुछ प्रशंसा करते हैं क्योंकि इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ कदम उठाना था, जबकि दूसरे तरफ विरोधक दलों और अर्थशास्त्रीय विशेषज्ञों ने इसे सएक आर्थिक संकट का कारण बताया। वे मानते हैं कि नोटबंदी के परिणामस्वरूप व्यापार, उद्योग और नौकरियों में कमी हुई और गरीब लोगों को इससे सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा।

इसके बावजूद, नोटबंदी की प्रशंसा करने वाले यह कहते हैं कि इसके द्वारा बिना दरकिनार धन को अस्तित्व से मिटाया गया और कालाधन के व्यवादों में कदम उठाया गया।

नोटबंदी के बाद, भारतीय अर्थव्यवस्था में कई परिवर्तन आए, और सरकार ने डिजिटल वित्तीय प्रणाली को बढ़ावा दिया। अब, हम देख सकते हैं कि नोटबंदी के सात साल बाद भी, इसके प्रभावों का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है और कैसे यह भारतीय अर्थव्यवस्था को परिवर्तित किया है।