गत वर्ष कोरोना की रोकथाम-मजदूरों के पलायन में असफल रही मोदी सरकार वैक्सीनेशन की रणनीति बनाने में भी फ्लॉप साबित हुई है… एक तरफ कोरोना वैक्सीनेशन में विश्वगुरु होने का दावा तो दूसरी तरफ फिर तेजी से कोरोना संक्रमण बढऩे लगा है..दूसरी तरफ़ देश की जनता को वैक्सीन लगवाने के लिए तमाम तरह की बाधाओं के साथ इंतजार करना पड़ रहा है.. पूर्व में भी मैंने यह मुद्दा उठाया था जो भक्तों को रास नहीं आया और ज्ञान बांटने लगे… अब देशभर के विशेषज्ञ यही मांग कर रहे हैं कि जब करोड़ों वैक्सीन डोज तैयार पड़े हैं, तो जनता को लगवाने में क्या परेशानी है..? ढेर सारे बंधन वैक्सीनेशन को लेकर केन्द्र सरकार ने लाद रखे हैं, जिसमें उम्र से लेकर बीमारियों का बंधन , पहले से रजिस्ट्रेशन प्रमुख है… जबकि अभी युवा वर्ग से लेकर कम उम्र के लोगों को अधिक संक्रमण हो रहा है…
प्रधानमंत्री कोरोना की रोकथाम के साथ वैक्सीनेशन तेज करने के निर्देश मुख्यमंत्रियों को देते हैं… मगर, सवाल यह है कि जब ढेर सारे बंधन लगा रखे हैं तो वैक्सीनेशन तेज होगा कैसे..? दुनिया में जितने भी वैक्सीन उपलब्ध हैं उन्हें केन्द्र सरकार बाजारों में क्यों नहीं उतार देती है, ताकि जिसकी मर्जी हो वह उस कम्पनी का वैक्सीन खरीदकर लगवा सके… अभी तो सीरम इंस्टीट्यूट के कोविशिल्ड पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं… वहीं संसद में यह तथ्य भी उजागर हुआ कि विदेशों को जितनी वैक्सीन दी गई उसकी आधी ही देश की जनता को अभी तक लगी है… होना तो यह चाहिए था कि महीनों पहले वैक्सीन के विश्वगुरु घोषित कर दिए गए भारत में अभी तक 20 से 25 फीसदी आबादी को वैक्सीन लग जाना थी..लेकिन इसके उलट फिर कोरोना संक्रमण देशभर में बढऩे लगा है… जब केन्द्र सरकार डंके की चोट पर वैक्सीन को सुरक्षित बता चुकी है तो फिर उसे सबको लगवाने में परेशानी क्या है..?
राजेश ज्वेल