इंदौर। बधिरांध का मतलब होता है जो बोलने सुनने और देखने में असमर्थ हो यानी मूक बधिर और दृष्टि दिव्यांग। इस श्रेणी में देश में पहला और चर्चित केस हेलन केलर का है। कुछ साल पहले अमिताभ बच्चन और रानी मुकर्जी की फिल्म ब्लैक इसी दिव्यांगता पर बनी थी। बहरहाल बात उस बधिरांध बेटी की जिसने हाल ही में हाई स्कूल की परीक्षा पास की है। यह कारनामा इंदौर की बेटी गुरदीप कौर उर्फ स्वीटी ने करके दिखाया है। स्वीटी ने हाई स्कूल परीक्षा पास कर ने सिर्फ अपने इरादे जता दिए बल्कि अपनी अक्षमता को भी परास्त कर दिया। यह देश में अपने किस्म का पहला उदाहरण भी है।
स्वीटी इन्दौर की आनंद सर्विस सोसायटी मूक बधिर संस्था की छात्रा है। संस्थान ने स्वीटी को ब्रेल लिपि, सांकेतिक भाषा और टच लैंग्वेज सिखाई और इन्ही भाषाओं में उसकी हाई स्कूल की पढ़ाई शुरू हुई। संस्थान के ज्ञानेंद्र पुरोहित और मोनिका पुरोहित ने पुरजोर मेहनत के साथ स्वीटी को परीक्षा की तैयारी करवाई और गुरुवार को जारी परिणाम में उनकी मेहनत सार्थक सिध्द हो गई।
कलेक्टर और सांसद बने मददगार
इंदौर की बेटी स्वीटी प्रदेश की पहली दिव्यांग है जो बोलने सुनने और देखने में असमर्थ है। पढ़ाई के प्रति उसका रुझान शुरू से था लिहाजा कक्षा आठवी तक उसने पास कर ली। आगे की पढ़ाई मदद के अभाव में बाधित हो गई। स्वीटी के माता पिता ने इंदौर कलेक्टर डॉ टी इलैया राजा और सांसद शंकर लालवानी से मदद का आग्रह किया। कलेक्टर और सांसद स्वीटी के जज्बे के आगे नतमस्तक थे और उन्होंने इसकी जिम्मेदारी आनंद बधिर सोसायटी को सौप दी। संस्थान में स्वीटी को हाथ की उंगलियों और हथेलियों को दबाने के साथ स्पर्श भाषा की ट्रेनिंग शुरू हो गई।
मूक बधिर छात्रा ने लिखे उत्तर
आनंद संस्थान के प्रमुख ज्ञानेंद्र पुरोहित बताते है कि स्वीटी को ठीक हेलन केलर की तरह पढ़ाई कराई गई। इस विधा में उसे हर चीज छूकर समझाना पड़ता है। इसके अलावा शब्दों और विषयों को हाथ के स्पर्श और ब्रेल लिपि के जरिए एहसास कराना होता था। जब वह संबंधित विषय पर पढ़ाई के दौरान सहमति दशार्ती थी तब अगले विषय की पढ़ाई शुरू की जाती। हर दिन 2 से 3 घंटे की क्लास के दौरान टीचर के अलावा एक अन्य सहयोगी भी स्वीटी को ब्रेल लिपि समझने में मदद करती थी। स्वीटी को परीक्षा दिलाने के लिए कक्षा 9 की एक मूकबधिर छात्रा को राईटर के रूप में तैयार किया गया। जिसने इशारों और साइन लैंग्वेज की मदद से परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर लिखे।
अस्पताल की लापरवाही से जीवन में हुआ अंधेरा
इंदौर के ट्रांसपोर्ट कारोबारी प्रितपाल सिंह के घर वर्ष 1991 में जुड़वा बेटियों ने जन्म लिया था। दुर्भाग्य से एक बच्ची की जान चली गई। अस्पताल में इनक्यूबेटर पर रखे जाने के कारण स्वीटी की जान जैसे तैसे बच गई। पर अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ ने मासूम बच्ची की आंख और कान पर कॉटन नहीं रखा। इस लापरवाही का नतीजा यह हुआ कि स्वीटी ने जन्म से ही देखने, सुनने और बोलने की क्षमता खो दी। परिवार ने स्वीटी का कई जगह इलाज कराया पर सफलता नहीं मिली। लिहाजा माता पिता ने इसी अवस्था में उसका लालन पालन किया। बच्ची को पढ़ाने के लिए मुंबई स्थित हेलन केलर स्कूल में दाखिला करवाया। वही से स्वीटी ने कक्षा सातवी तक की पढ़ाई की। इसके लिए मां मंजीत कौर वासू ने भी बहुत परिश्रम किया।