बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था, वंशानुगत ऊंच-नीचता और छुआछूत उतनी ही मात्रा में हैं जितना वैदिक ग्रंथों में। बौद्ध धर्म ने कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों के माध्यम से वर्ण व्यवस्था को एक ठोस दार्शनिक आधार प्रदान किया। बौद्ध धर्म के अनुसार सभी मनुष्य अपने पूर्व जन्मों के फलों के अनुसार किसी विशेष देश, जाति, कुल और परिवार में जन्म लेते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि बौद्ध धर्म यह मानता हैं कि जातिगत ऊंच-नीचता के प्रति किसी की कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह पूर्व जन्मों के कर्मों का परिमाण हैं। बुद्ध दलितों, जिनको धार्मिक साहित्य में चांडाल कहा जाता हैं, के प्रति बहुत कठोर थे, हालांकि बुद्ध क्षत्रिय वर्ण को सर्वोच्च मानते हैं, ब्राह्मण वर्ण को नहीं।
यदि कोई यह कहता हैं कि बौद्ध धर्म में जातिवाद अथवा वर्णवाद नहीं हैं, वो या तो मुर्ख हैं या बौद्ध धर्म के ग्रंथों से पूरी से अनजान हैं। कुछ दलित और बौद्ध धर्म के समर्थक यह जानते हैं कि बौद्ध धर्म ग्रंथों में जातिवादी ऊंच-नीचता और छुआछूत हैं, लेकिन उनका यह मानना हैं कि “असली बौद्ध साहित्य को ब्राह्मणों ने जलाकर नष्ट कर दिया” और फिर नए बौद्ध धर्म ग्रंथ लिखे, जिनमें जातिवादी ऊंच-नीचता और छुआछूत डाल दी।
यह समझ से परे हैं कि इनको यह कैसे पता चला कि बुद्ध जातिवादी नहीं था और असली बौद्ध ग्रंथों को जला दिया? क्या बुद्ध इनके सपने में आते हैं? आज से २०० वर्षों पहले तक भारत के लोगों को बुद्ध और बौद्ध धर्म के बारे में कोई जानकारी तक नहीं थी। तो आप यह भी नहीं कह सकते हैं कि कुछ लोगों ने मौखिक परम्परा के माध्यम से बुद्ध की असली शिक्षाओं को अपनी याददाश्त में बनाये रखा। वैसे ब्राह्मणों के धर्म ग्रंथों की तरह, कहीं औरंगज़ेब ने ही तो बौद्ध धर्म ग्रंथों को फिर से नहीं लिखा, जो अब बाजार में उपलब्ध हैं?
अंग्रेजो से पहले इंडिया में बौद्ध धर्म को मानने वालों का ना तो अस्तित्व था ना उसके अवशेषों से यहाँ के स्थानीय लोग परिचित थे, इंडिया के पूर्व से लगे हिस्सो में जो तन्त्र मंत्र को मानने वाले सम्प्रदाय थे वे बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा से सम्बंधित थे जिनका केंद्र वर्तमान चीन और दक्षिण पूर्व के देशों में था।
इंडिया के पूर्व में म्यांमार से आगे दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में बौद्ध धर्म के अनुयायी और प्राचीन अवशेष फैले पड़े है, जहाँ इंडिया में आने से पूर्व ही अंग्रेज स्थापित शक्ति थे। अब प्रश्न यह है कि बौद्ध धर्म के इंडिया में होने के पर्याप्त प्रमाण है या नहीं है ,इसका केंद्र इंडिया को क्यो माना जाये ,दक्षिण पूर्व के देशों को क्यो नही माना जाये। अब अगर बौद्ध धर्म के प्रमाण इंडिया में अन्य देशों की तुलना में कम है तो बौद्ध को इंडिया पर क्यो थोपा गया।
यह स्पष्ट था कि अंग्रेज इंडिया में डिवाइड एन्ड रूल नीति के स्थापक थे। उन्होंने हिन्दू मुस्लिम के इतिहास को इसी रूप में स्थापित किया। यही स्थिती प्राचीन काल मे बौद्ध के साथ स्थापित की गई। इंडिया की प्राचीन इतिहास को स्थापित करने में जेम्स प्रिंसेप और कनिग्धम की विशेष भूमिका है। जेम्स प्रिंसेप से सिक्को और स्तम्भो की भाषा को पढ़ा लेकिन प्रश्न यह है कि इन्हें स्थापित किसने किया या खोजा किसने । बौध्द को इंडिया पर कन्निधम के द्वारा खोजे गए स्पुतो के आधार पर स्थापित किया । लेकिन ऐसा नही है कि कनिग्धम पर प्रश्न नही उठता है। कनिग्धम और उसके कार्यो पर जो प्रश्न उठते है वो बौद्ध के अस्तित्व पर भी उठते है।
पहला: इंडिया में केवल स्पुत और शिला लेख मिले, सुनसान स्थानों पर जिनका पता स्थानीय लोगों को भी नही था, इन स्पुतो को छोड़कर पूरे विकसित शहर और उनके निर्माण के कोई अस्तित्व नहीं मिले।
जबकि इससे पहले के पूरे पश्चिम इंडिया में फैले सिंधु सभ्यता के अवशेष सबके सामने है।
दूसरा : कनिग्धम इंडिया में आने से पहले म्यामांर उस समय के बर्मा में इंजीनियर के रूप में कार्यरत था उसके लिए बौद्ध और उसके अवशेष नये नही थे, लेकिन स्थानीय के लिए नये थे। इस बात की संभावना से मना नही किया जा सकता कि कनिग्धम ने ही इनको स्थापित किया हो। क्योकि सभी अवशेष सतह के ऊपर व्यापारिक मार्ग पर मिले ,जैसे किसी ने इन्हें लाकर पटक दिया हो।
तीसरा: बौद्ध के केवल धातु अवशेष है कोई ऐसे अवशेष नही है जिससे इनका अस्तित्व सिद्ध होता हो।
चौथा : बौद्ध को हिन्दू धर्म की प्रतिक्रिया के स्वरूप माना गया जबकि ना तो सिंधु सभ्यता का विनाश आर्यो ने किया था अर्थात जब आर्यो का आवागमन सिद्ध नही हुआ तो उसकी प्रतिक्रिया कैसी।
पाँचवा :इंडिया की तुलना में प्राकृत ,पाली की भाषाएं दक्षिण पूर्व से ज्यादा समानता रखती है।वहाँ इनके भाषायी के साथ पुरातात्विक प्रमाण भी है और वहाँ की बौद्ध सभ्यता प्राचीन और विकसित भी है जो असली बौद्ध के प्रतिनिधि है।तथा बौद्ध के विभिन्न सम्प्रदाय है जो सब बाहर के देशों में है ।
छटा :यदि मान भी लिया जाये कि पहले हिन्दू धर्म था फिर इनको बौद्ध बनाया गया फिर हिन्दू में बदला गया तो इतने बदलाव आते है जो स्पष्ट नही हो पाते है।
इस प्रकार के ओर बहुत तर्क है जो बौद्ध को बाहरी सिद्ध करते है। बौद्ध का इंडिया में उत्तपत्ति अंग्रेजो के द्वारा विशेष उद्देश्य से की गई है। नव बौध्दों ने इसकी जनसख्या स्थापित की है। बौद्ध धर्म इंडिया के ईस्ट में विकसित है और वही से शरणागत के रूप में इंडिया में धुसा है ।
इंडिया के ग्रामीण समाज मे धर्म का कभी इतना रोल नही रहा ,धर्म इंडिया के बाहर से आयातित है। इंडिया के स्थानीय समूहों के अपने रीति रिवाज है और वे विविधता पूर्ण है।जो आज भी चले आ रहे है।उनको विभिन्न धर्म से सम्बंध किया जाता है लेकिन ये पूर्णतया नही जुड़ पाते है।# लुक ईस्ट#
सारा सौदा एक ही है….
डच प्रोपेगेंडा
1956 में भीमराव अम्बेडकर जब #बुद्ध_धर्म की दीक्षा ले रहे थे
तो उन्होंने बोला था कि वो हिन्दू धर्म इसलिए छोड़ रहे है क्योंकि इस धर्म मे भेदभाव है तथा छुआछूत भी है ।
उन्होंने ये भी कहा था कि वो ईसाई या मुस्लिम धर्म इसलिए नही अपना रहे है क्योकि ईसाई और मुस्लिम धर्म मे भी फिरका परस्ती है तथा ऊंच नींच और छुआछूत है जैसे मुस्लिम में पसमांदा,अशरफ़, अजलाफ़ आदि
और ईसाइयों में भिन्न कैथोलिक और प्रॉस्टेटेन्ट ।
आगे बाबा साहब बोलते है कि वो बुद्ध धर्म इसलिए अपना रहे है
क्योकि बुद्ध धर्म मे न कोई भेदभाव है
न कोई ऊंच नींच है
न कोई आडम्बर और न कोई छुआछूत ।
अब प्रश्न ये उठता है कि बाबा साहब जिस बुद्ध धर्म को अपना रहे थे
क्या उन्होंने उस धर्म के बारे में पढ़ा और धरातल पर देखा था ?
और अगर बाकई पढा और समझा था
तो उन्हें बौद्ध धर्म के भेदभाव ,ऊंच नींच और आडम्बर क्यो नजर न आये ??
जिस श्रीलंका से उन्होंने दीक्षा लेने के लिए मोंक बुलाये थे
क्या उस श्रीलंका में ही उन्हें बौद्ध धर्म मे चल रही ऊंच-नींच,भेदभाव ,आडम्बर और छुआछूत नही नजर आयी थी ?
या जानबूझकर ये सारी बाते अनदेखी की गई थी
किसी बिशेष एजेंडे के तहत ?
आइये उस बौद्ध धर्म के बारे में सच जानते है
जिस सच को उस दौर में छुपाया गया था ::
सारे धर्मो में छुआछूत है कैटेगरी है,
जबकि बौद्ध धर्म मे तो शाखाएं ही बहुत ज्यादा हैं
जैसे महायान ,हीनयान,थेरवाद,बज्रयान आदि
जिसमे महायान वाले हीनयान वालो को निम्न मानते है
तथा बुद्ध की शिक्षाओं को लेकर ही इनमे मतभेद है
तथा बज्रयान तो इन सबसे अलग ही है पूर्णतः
अब बात करते है कि बौद्ध धर्म मे जातिया नही है
तो ये भी पूर्णतः गलत है
अगर आप बौद्ध देशों के बारे में गूगल पर सर्च करोगे तो न जाने कितनी जातिया नजर आएंगी
जैसे :नोनो,बोडो,थलपा आदि
साथ ही सोशल क्लास सिस्टम भी मौजूद है
लेकिन हम इन सभी जातियों का जिक्र नही करेंगे
हम केबल कुछ एक उन्ही जातियों का अध्ययन करेंगे
जो बौद्ध देशों में छुआछूत से ग्रसित है
कुछ उदाहरण इस तरह से है ,
1) burakumin (जापान)
2) ragyapa (तिब्बत)
3) nangzan (तिब्बत)
4) nobi (कोरिया)
5) baekjeong (कोरिया)
6) cheonmin (कोरिया)
7) rodi or rodiya ( श्रीलंका)
8) bedo people ( लद्दाख तथा अरुणाचल प्रदेश)
ये सिर्फ एक एक दो दो जातिया ली है मैंने
वो भी बौद्धिस्ट देशों से
और भी न जाने कितनी अछूत जातिया होंगी इन देशों में ।
श्रीलंका में जातिगत ऊंच नींच तथा छुआछूत के बारे में श्रीलंका सरकार के ही दस्ताबेज पूरी जानकारी प्रदान कर रहे है
साथ ही यूनाइटेड नेशन के दस्ताबेज भी
और श्रीलंका में ये समस्या 1951 में भी थी
वो भी चरम पर ।
अब 1951 ,1956 से तो पहले ही आता है ।
अब प्रश्न ये उठता है कि आदरणीय बाबा साहब अम्बेडकर को अलग अलग बौद्धिस्ट देशों में
ये जातिया तथा जातिगत ऊंच-नींच और छुआछूत नजर नही आयी थी ?
क्या उन्हें तिब्बत,चीन ,भूटान आदि बौद्धिस्ट देशों में बज्रयानियो द्वारा किये जाने वाले तंत्र ,मंत्र ,टोटके आदि
आडम्बर नही लगे थे ?
या बजरयानियो के टोटके वैज्ञानिक थे ?
क्या उन्हें भूटान का पुनाखा शहर नजर नही आया था
जिसमे हर घर के बाहर टोटके नजर आते है ।
ऐसा तो हुआ न होगा कि बाबा साहब ने ये सब पढ़ा और देखा न होगा
क्योकी बाबा साहब एक पढ़े लिखे और स्कॉलर व्यक्ति थे ।
बाबा साहब ने इस्लाम ,ईसाइयत और हिन्दुओ के बारे में सब पढ़ा
और अपने अनुयायियों को भी बताया
लेकिन जिस धर्म को स्वयम अपनाया तथा अपने अनुयायियों को भी अपनाने के लिए बोला
क्या उस धर्म के बारे में बाबा साहब में पढ़ा न था ?
अगर पढ़ा और देखा था सब
तो अपने अनुयायियों को
जो कि मासूम थे
जो इन पर भरोसा करते थे
उन्हें ये सब बताया क्यो नही ??
मैं तो ये सब देखकर और पढ़कर बड़ा भ्रमित हु
कि बाबा साहब ने ये सब देखा और पढ़ा था या नही
या देखकर अनदेखा किया ….
नोट :: नीचे में कुछ दस्तावेज उपलब्ध करा रहा हु
जिन्हें आप गूगल पर भी सर्च कर सकते है अलग अलग बौद्धिस्ट देशों के सोशल क्लास सिस्टम को आप गूगल पर सर्च कर सकते है जिसमे श्रीलंका की स्थिति तो अतिदयनीय है । इंडोनेशिया,मलेशिया आदि देशों में भी यही स्थिति है तथा अफगानिस्तान में भी जो कि मैंने नीचे दिए गए गूगल डाक्यूमेंट्स के माध्यम से बताया है।
हर इंसान अपनी ओरिजीनल पहचान में सबसे सहज़ होता है। इन्सान कभी भी किसी किताबी या सरकारी पहचान में सहज़ नहीं हो पाता क्यूँकि वह किताबी या सरकारी पहचान ऊसे या उसकी जाति/खानदान क़ो पूर्णतय परिभाषित नहीं कर पाती और ना ही उसक़े पेशागत जुड़ाव क़ो दिखा पाती है। सरकारी या किताबी पहचान क़ो अपनाने क़े लिये ख़ुद की पेशागत और जेनेटिक पहचान क़ो खतम करना पड़ता है या उससे नज़रें चुरानी पड़ती हैं।
जितने भी हमारे अक्षरज्ञानी भाई हैं जो सरकारी या किताबी कहानियों में अपनी पहचान ढूँढ रहे हैं वे सभी ईस द्वन्द्व से झूझ रहे हैं। इसके विपरीत अगर आप अपनी क़बीलाई पेशागत पहचान को अपनाते हैं तो आपको अपने पेशे अपनी जेनेटिक पहचान से दूरी नहीं बनानी पड़ती बल्कि आपको फ़ख़्र होता है कि कैसे आपके बुज़ुर्गों ने एक घुमंतू इनसानी टोले क़ो एक ग़ाम के रूप में बसाया कैसे उन्होंने धीरे धीरे कच्ची मिट्टी क़े बर्तन बनाये ,कैसे पकाने की विधि सीखी।
पहले उन्हें आड़ेटेढ़े बरतनो क़ो पर्फ़ेक्ट शेप दिया,कैसे टेढ़ी मेढ़ी लकड़ियाँ क़े उपयोग से सीधे फट्टे बनाये लकड़ी की कलाकृतियाँ बनायी कैसे फसलों क़े चक्र क़ो समझा,कैसे जानवरो क़े व्यवहार क़ो पढ़ा और उन्हें उपयोगी पालतू बनाया। और भी बहुत कुछ। आदिकिसान ईसी वास्तविक पहचान से लोगों क़ो रुबरु करवा रहा हैइसीलिए लोग़ किताबी सरकारी पहचान क़ो छोड़ आदिकिसान की तरफ़ दौड़ते आ रहे हैं।
ख़ुद की पहचान ख़ुदका स्वाभिमान। सामूहिक रूप से धर्मपरिवर्तन करना भी धर्म की ही राजनीति है यह ऐसी राजनीति है जो अपने पीछे मूलभूत बातों को छिपा देती है । यह बात सत्य है की हिंदू समाज में जातिय शोषण है अगर कोई इस बात को नकारता है तो वह धुर्त और मक्कार ही है जो आँखे होते हुएं भी अंधा बनकर रहना चाहता है और समाजिक विद्वेष में अपनी सहभागिता दे रहा है । मगर क्या बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म, अपना कर जीवन शोषण से मुक्त हो जाता है ?
यह सही है की ब्राह्मण धर्म शास्त्र वर्णवाद का पोषण है और उसने धार्मिक ग्रंथों मे वर्णवाद को जगह देकर उसे स्थाई किया है । बौद्ध, ईसाई, इस्लाम, सिख जैसे धर्मो के धार्मिक ग्रंथों में अपने अनुयायी को वर्गवाद के आधार पर नही बाँटा है । मगर जहां ब्राह्मणों धार्मिक ग्रंथों मे वर्णवाद के नाम पर समाज मे भेदभाव को धार्मिक रूप से संरक्षित किया है वही अन्य धर्मों की सामाजिक संरचना मे वही वर्गवाद गहरे स्तर तक पाया जाता है ।
किसी भी इस्लामिक, ईसाईयात, और बौद्ध देश की समाजिक संरचना देखिए ? क्या पाकिस्तान, अफगानिस्तान से लेकर मिस्र सूडान जैसे इस्लामिक देशों के सामाजिक संरचना मे कई वर्गवाद नही है क्या वहां कमजोर वर्ग के साथ शोषण नही है ? क्या अफ्रीकन देशों के ईसाई बन जाने पर उनके साथ शोषण का व्यवहार खत्म हो गया ? इन देशों के जंगलों के बीच हवाई पट्टी पर जब युरोपीय देशों के ईसाई हवाई जहाज से उतर कर हीरा खानो को लूटते है तब वहां के बच्चे रोजाना भूख से मर रहे होते है ।
क्या श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड जैसे देशों शोषण से मुक्त है ? वहां की सामाजिक संरचना मे वर्गवाद नही है ?
मैं फिर कहता हूँ ! हर देश हर धर्म मे की सामाजिक संरचना में वर्गवाद है मगर ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथों ने उस वर्गवाद को सामाजिक बुराई को धार्मिक संरक्षण दिया है । वरना वर्ग भेद और शोषण तो चीन जैसे नास्तिक देश की सामाजिक व्यवस्था में भी भरा पड़ा है । शोषण से आप नास्तिक होने से भी मुक्त नही हो सकते हो ।
चार प्रकार का शोषण होता है । आर्थिक शोषण, सामाजिक शोषण , मानसिक शोषण, और शारीरिक शोषण । जिनका हर देश धर्म मे सतत संघर्ष शोषक से चलना चाहिए । इसलिए धर्म पकड़ा पकड़ी के खेल से थोडी बहुत शरीर मे सिरहन पैदा तो होती है मगर यह मुद्दों की गंभीरता को भी खत्म कर देती है ।