तुमने पैग़ाम दिया है मुझे चलने के लिए

Share on:

रास्ता रोकने वालों तुम्हें मालूम नहीं, तुमने पैगाम दिया है मुझे चलने के लिए। मैं अपनी बात इस नामालूम शायर के मशहूर शेर से कर रहा हूं जो दैनिक भास्कर के लिए आने वाली राह तय करेगा। दुनिया के स्तर पर पैमानों को हम यदि मानते हैं तो हमें यह भी मानना होगा कि लोकतंत्र के पायदान पर भारत लगातार नीचे की ओर लुढ़क रहा है। 2014 में 27 के मुक़ाबले 2019 में लगातार गिरते हुए 53 वें क्रम पर आ पहुँचा है। संभावनाएँ कहती हैं 2020 के आंकड़े जब आएंगे तो ये 60 से भी ऊपर निकल जाएगा अर्थात विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में कहीं न कहीं पेंच तो है। हम अघोषित तानाशाही की ओर ही बढ़ रहे हैं।

वर्तमान सरकार यदि पूर्व की सरकारों का उदाहरण देकर बचने की कोशिश करे तो ये कतई सही नहीं है।  जिन बातों के लिए हम पूर्व की सरकारों की बुराई करें यदि उन्हीं बुराइयों को हम भी ग्रहण कर रहे हैं तो ये सरासर ग़लत ही होगा। यह लेख दैनिक भास्कर पर आयकर विभाग की कार्रवाई के संबंध में ज़रूर है लेकिन विभिन्न पहलुओं पर ग़ौर करें तो लगातार एक के बाद एक होने वाली कई घटनाएँ सामने आती जाएगी। आयकर विभाग की जाँच में सही ग़लत जो मिले लेकिन वृहत स्तर पर देखें तो भास्कर पर छापे के अलग मायने हैं। हाल ही में भास्कर की रिपोर्टिंग को इससे जोड़कर देखना ही होगा।

संत कबीरदास का ये प्रचलित दोहा निंदक नियरे राखिए अब वर्तमान सरकार को रास नहीं आता। जब अपनी आलोचनाओं से कुछ सीखने की बजाए हम वैचारिक अभिव्यक्ति को दबाने के खेल में लग जाते हैं तो एक ग़लत ही दिशा नज़र आती है। ऐसे समय जब सरकार की सवालों के प्रति जवाबदेही बनती है, एक अभिनेता प्रधानमंत्री से पूछते हैं कि आप आम काट कर खाते हैं या चूस कर, तो पत्रकारिता का मखौल उड़ता सा दिखाई देता है। रिश्तों के बंधन की तरह ही समाचार पत्र और उसके पाठकों के बीच विश्वास रुपी अटूट बंधन हमेशा ही क़ायम रहता है। विश्वसनीय और सारगर्भित ख़बरें ही ऐसा माध्यम होती है जो पाठकों के मन में अपने समाचार पत्र के प्रति स्नेह का संचार करती है।

समाज में व्याप्त बुराइयों के ख़िलाफ़ जन मानस के मन में एक कसमसाहट सी होती है लेकिन वह उद्वेलित होने के बावजूद भी सुधार की दिशा में कुछ कर पाने से स्वयं को विवश पाता है, क्योंकि उसके पास न भाषा होती है ना विचार। ऐसे में समाचार पत्र ही अपनी भाषा शैली और लेखन के ज़रिए बुराइयों के विरुद्ध आक्रमण करते हैं। जनमानस इसे अपनी आवाज़ के रूप में ही पाता है। भास्कर ने भी पिछले दिनों वही किया जो जनता की आवाज़ था। पाठकों के मन में आत्मविश्वास सा जागा कि, आप हमारे हैं। ऐसे में आयकर विभाग की जाँच अंदेशों को ही जन्म देती है। ऐसे सौ छापे भी भास्कर को सच्चाई के रास्ते से डिगाए नहीं, छापने से रोके नहीं।सरकार की लाली लप्पा करने वाला मीडिया सही भूमिका में आए। अपनी आलोचनात्मक टिप्पणियों से सरकार को झकझोरने का कार्य करे। देश और समाज को जागृत करने के लिए कृत संकल्पित रहे तभी भारत एक सकारात्मक ऊँचाइयों को छुएगा।

अन्ना दुराई