इंदौर की स्वच्छता की चर्चा अमेरिका तक, Pravasi Bharatiya Sammelan में अमेरिका से आईं उषा कमारिया शहर के बदले रूप से अभिभूत

mukti_gupta
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Indore। हमारे लिए इंदौर का लगातार छह बार स्वच्छता सर्वेक्षण में नंबर वन आना सामान्य बात हो सकती है लेकिन जब अमेरिका में इस स्वच्छता की चर्चा हो तो हर इंदौरवासी को गर्व होना स्वाभाविक है। प्रवासी भारतीय सम्मेलन (Pravasi Bharatiya Sammelan) में शामिल होने आईं उषा कमारिया ने मीडिया से चर्चा में इंदौर के बदले स्वरूप पर खुशी जाहिर करने के साथ ही कहा इंदौर को लगातार नंबर वन का खिताब मिलने में वहां रह रहे भारतीय परिवारों में मनीष सिंह का नाम जाना-पहचाना हो गया है।

विगत 40 सालों से अमेरिका रह रही प्रवासी भारतीय महिला श्रीमती उषा कमारिया ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा इंदौर कितना बदल गया है.. इंदौर कितना साफ – सुथरा हो गया है। यहां बहुत मेहनत के साथ सफाई पर काम हुआ है. इसीलिए हर बार इंदौर सफाई मे no वन आता है। उन्होंने कहा की अमेरिका मे इंदौर की सफाई की पर जब भी चर्चा होती है तब मनीष सिँह का नाम आता हैं।
अमेरिका में रहने वाली श्रीमती उषा कमारिया इंदौर में कालानी नगर में रहती थी । 35 – 40 साल पहले वह अमेरिका में बस गई।
श्रीमती कमारिया ने इंदौर आने पर वो मीडिया से रूबरू हुई । वैसे पत्रकार वार्ता अमेरिका में स्थापित गांधी जी की प्रतिमा के बारे में जानकारी देने के लिए आयोजित की गई थी।

सफाई को लेकर पूछा ये सवाल

चर्चा के दौरान ही उनसे शहर की स्वच्छता में बारे में ज़ब उनसे सवाल पूछा गया की सफाई में अमेरिका की क्या स्थिति है, क्या अमेरिका इंदौर से ज्यादा साफ है तब उन्होंने कहा कि इंदौर की सफाई को लेकर अमेरिका में खूब चर्चा होती है। मेने इंदौर में कही भी कचरे ढेर नही देखा। जबकि अमेरिका में कचरे का ढेर कही न कही दिख ही जाता है । इंदौर में सफाई में बहुत काम हुआ। यहा के लोंगो ने भी सफाई में बहुत साथ दिया। यहाँ के अधिकारी मनीष सिंह में सफाई में बहुत मेहनत की। हमारे यहां ज़ब भी सफाई को लेकर चर्चा होती तो मनीष सिंह का नाम लिया जाता हैं l

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एक हजार किलो वजनी कांस्य प्रतिमा

उन्होंने बताया अमेरिका के इलिनॉई स्कोकी शहर की निवासी उषा कमारिया एशिया की पहली महिला हैं जिन्हे टॉउनशिप की प्रतिनिधि के रूप में वहां सरकार में प्रतिनिधित्व भी किया। उसी दौरान (2004 में) उनके सतत प्रयासों से वहां महात्मा गांधी की एक हजार किलो वजनी कांस्य प्रतिमा की स्थापना का श्रेय भी उन्हें मिल चुका है।