स्वर्गीय शंभू काकू (सुप्रसिद्ध लोककवि) आज सपने में आए। पान-सुपारी, पैलगी- प्रणाम के बाद मैंने पूछा, काकू आज का लिख के लाए( देशबंधु में प्रतिदिन उनका सुप्रसिद्ध कालम ‘शंभू काकू कहिन’ छपता था)। काकू ने कुर्ते की जेब से निकालकर एक मुड़ीतुड़ी पर्ची दी और अंतरधान हो गए। पुर्ची में एक कविता थी चौगोलवा स्टाइल की..वो कविता है-
रैली चलैं काज हैं बंद
राजनीति के इया छरछंद
ओन्हा उतरा भए निपर्द
ओमा निकरे जुजबी मर्द
सिस्टम है नंगन के हाथ
सबै लुटइया इनके साथ
बिना हवा के छूटैं प्राण
दाम दवा से लूटैं प्राण
मनभर करैं निरा बकवास
बचा नहीं नंचौ सउकास
काकू कहैं कि सुना गजाधर
अइना देखत बैइठा आँधर।