भारत की सुस्ती और यूक्रेन से सीधी विमान सेवा न होने के कारण फँस गए हज़ारों छात्र

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रविश कुमार

यूक्रेन से अपने नागरिकों के निकलने की एडवाइज़री जारी करने में भारत ने काफी देर कर दी। 24 जनवरी को आस्ट्रेलिया ने और 11 फरवरी को 11 फरवरी को अमरीका, ब्रिटेन,जापान, नीदरलैंड ने अपने नागरिकों को 24-48 घंटे के भीतर यूक्रेन छोड़ने के लिए कह दिया। उसके अगले दिन यानी 12 फरवरी तक एक दर्जन देशों ने अपने-अपने नागरिकों से स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे 24-48 घंटे के भीतर यूक्रेन छोड़ दें। लेकिन भारत ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई। भारत ने 15 फरवरी को पहली बार एडवाइज़री जारी कि जिसकी भाषा वैकल्पिक थी।

इसमें लिखा गया था कि भारतीय छात्र अस्थायी तौर पर यूक्रेन छोड़ने पर विचार कर सकते हैं। ख़ैर इस मामले में भी भारत को संदेह का लाभ दिया जा सकता है कि किसी को पता नहीं था कि 24 तारीख से अटैक हो जाएगा लेकिन सतर्कता में देरी या सुस्सी तो दिखती ही है।  ऐसा नहीं था कि भारतीय छात्र यूक्रेन के हालात को नहीं समझ रहे थे। वे आने के लिए तैयार थे मगर भारत से कोई सीधी उड़ान नहीं थी। अगर आपको जानना है तो ट्विटर पर ही जाइये। 15 फरवरी से लेकर 17 फरवरी तक कई छात्रों ने प्रधानमंत्री को टैग कर लिखा है कि यूक्रेन से कोई व्यावसायिक उड़ान नहीं है। ऐसे में उनके पास रास्ता क्या था।

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बीस हज़ार छात्रों को लाने के लिए बड़ी संख्या में विमानों को लगाने की ज़रूरत थी। यह छोटी संख्या नहीं है। एक छात्र के पिता ने बताया कि उनका बेटा अगस्त 2021 में यूक्रेन गया तब 38,000 का टिकट था क्योंकि यूक्रेन के लिए भारत की कोई उड़ान सेवा नहीं थी। कुछ विमान दुबई होकर जा रहे थे तो कुछ दोहा होकर। वहां से वापसी का भी यही हिसाब किताब था। युद्ध होने की आशंका को देखते हुए इन विमानों ने छात्रों की बेबसी का अंदाज़ा लगा लिया और भारत आने का टिकट सवा लाख से लेकर एक लाख नब्बे हज़ार तक कर दिया।एक छात्रा करीब डेढ़ लाख का टिकट कटा कर आई है।

जो लोग सोशल मीडिया पर हज़ारों भारतीय छात्रों को कोस रहे हैं कि इतना पैसा लगाकर विदेश गए तो टिकट क्यों नहीं ख़रीद सकें। यह बात बकवास है। छात्र टिकट खरीदना चाहते थे मगर टिकट का दाम उनकी सीमा से बाहर हो गया। सरकार ने किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। अगर समय रहते एयर इंडिया का विमान भेजा गया होता तो वे छात्र टिकट कटा कर आ जाते। वे विमान मांग रहे थे न कि फ्री टिकट। ये सभी छात्र एक ग़रीब देश में पढ़ने गए हैं। अमीर घरों के नहीं हैं। इनके लिए पौने दो लाख का टिकट कटाना आसान नहीं था। इस पर भी बीस हज़ार छात्रों के लिए विमानों में सीट उपलब्ध नहीं थी।

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यही नहीं कीव में भारतीय दूतावास को पता था कि वहाँ हज़ारों छात्र पढ़ रहे हैं। अगर युद्ध हुआ तो इतने छात्रों को एक साथ निकालना संभव नहीं होगा। जो छात्र वहाँ पढ़ने जाते हैं उनका मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया के पास पंजीकरण भी होता है तो ऐसा नहीं था कि किसी को पता नहीं था कि यूक्रेन में कितने छात्र पढ़ रहे हैं। यूक्रेन के विदेश मंत्री ने कहा है कि भारत अपने सारे प्रभावों को इस्तेमाल करे और रुस को समझाए लेकिन भारत ने बातचीत भर ही की है और लगता नहीं कि रुस ने कोई गारंटी दी है।

भारत के प्रयास में सतर्कता की एक और बड़ी कमी नज़र आती है।ज़रूरी नहीं था कि नागरिकों को विमान से भारत ही लाया जाता, उन्हें किसी तरह सीमावर्ती देशों में पहुंचने के लिए भी कहा जा सकता था। इस वक्त यही किया भी जा रहा है। सीमावर्ती इलाके के छात्रों को निकाला जा रहा है। यूक्रेन की सीमा से सटे हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्लोवाकिया जैसे देशों की मदद ली जा रही है। युद्ध शुरू होने से पहले अगर इन छात्रों को सीमावर्ती क्षेत्रों में भी भेज दिया गया होता तो कम से कम हमारे बच्चे सुरक्षित रहते और भारत में हज़ारों परिवारों में इस वक्त शांति बनी रहती।

अब काफी देर हुई है। आज कुछ सौ छात्रों को लाया जा रहा है लेकिन वहां कई हज़ार छात्र फंसे हैं। पूर्वी यूक्रेन के इलाकों से ये सीमावर्ती देश बहुत दूर हैं। ट्रेन या बस से कई घंटे का सफर है और आसमान से बम बरस रहे हैं। ज़ाहिर है उन्हें बंकर में ही रहना होगा। बहुत से छात्रों के लिए संभव नहीं है कि इस माहौल में वे बस या ट्रेन से आठ से दस घंटे की यात्रा करने का जोखिम उठाएं और हंगरी औऱ पोलैंड पहुंचे। हालांकि कुछ छात्रों ने यह जोखिम उठाया और इवानो शहर से टैक्सी लेकर चार घंटे के सफर पर निकल गए। कुछ पहुंच गए हैं और कुछ पहुंच रहे हैं।

भारत के हज़ारों छात्र फंसे हुए हैं। इसे लेकर भारत को बातचीत नहीं, हंगामा कर देना चाहिए था। अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर हर स्तर पर बोलना चाहिए था। ठीक बात है कि प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से बात की है लेकिन इस बातचीत से छात्रों को क्या फायदा हुआ यह साफ नहीं है। बस इसी का ढिंढोार पीटा जा रहा है कि मोदी ने पुतिन से बात की। अब यह सब तो इस देश में रूटीन हो चला है। कुछ छात्रों को भारत लाया जा रहा है अब इसे ही सफलता बता दिया जाएगा। उससे कोई हर्ज नहीं है बस सरकार का ध्यान इस पर बना रहे कि हर छात्र को सुरक्षित लेकर भारत आना है। जान बच जाए, ताली किसी की भी बज जाए। पर जब तक एक एक छात्र लौट न आए, दबाव बना रहना चाहिए।

इस वक्त भारतीय छात्र बंकरों में हैं। किसी के पास खाने का सामान है तो किसी का खत्म हो रहा है। बहुत से छात्र मेट्रो स्टेशन में पनाह लिए हुए हैं। उन्हें कोसिए मत। उनकी गलती नहीं है कि वे समय से पहले टिकट कटा कर वापस नहीं आए। इन सब मामलों में सरकारों को अपने नागरिकों की चिन्ता करनी पड़ती है। अमरीका से लेकर आस्ट्रेलिया तक फालतू में अपने लोगों को यूक्रेन छोड़ने की चेतावनी नहीं दे रहे थे। तब भारत ने क्यों नहीं सख्ती से कहा और निकलने के लिए वहां विमान भेजा। आप बहस कर सकते हैं कि एयर इंडिया भारत के पास होता तो आज ये नौबत नहीं आती लेकिन वायु सेना से लेकर तमाम दूसरे विमानों का विकल्प खोजा जा सकता था।

यह समय भारतीय छात्रों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना और प्रयास का है। पुतिन जिसे हिन्दी चैनलों पर दिन रात हीरो बताया जाता है, उसकी सनक का नतीजा हम सब देख रहे हैं और उन सभी पुतिन विरोधी नेताओं की सनक और चतुराई का भी जिनका फोटो लेकर हिन्दी अखबार भारत के सुपर पावर बनने का सपना आज भी ठेलते रहते हैं। रुस के हमला करते ही दुनिया के कई देश के प्रमुख टीवी पर आकर बयान देने लगे थे। भारत के प्रमुख चुनाव में व्यस्त थे। यूक्रेन संकट के नाम पर वोट मांग रहे थे।