अंदाज़ अपना सुरेन्द्र बंसल का पन्ना
आज तक तेज़ के संजय Sanjay Sinha की कहानी को किसी fm चैनल की rj ने उन्हें कोई क्रेडिट नहीं देते हुए सुनाया कि चलो कुछ अच्छा सुनते हैं… किसी मूल लेखक की स्वरचित रचना से इतने उत्साहित होकर सबको कहना सुनना और बताना लेखक की क्रेडिट है,लेकिन लेखक को छुपाकर खुद इसकी क्रेडिट लेना और उससे उपार्जन करना सच में एक धोखाधड़ी है।फेसबुक इस धोखाधड़ी का प्रमुख अड्डा है।बहुत से लोग कविता,आलेख, विचार, गीत आदि यहां से चोरी कर रहे हैं और यहीं पर सीनाजोरी कर छा रहे हैं। क्यों करते हैं यह सब लोग..भाई आप स्वयं लिखिए, जो लिख रहे हैं उनसे सीखिए ,अच्छा लगे तो उनका खुलकर उल्लेख कीजिये..
इस बात में कौनसी शर्मिंदगी है लेकिन अधिकतर मोटिवेशनल स्पीकर यही कर रहे हैं जिनमें नामचीन लोग शामिल है। मेरी एक कहानी एक आध्यात्मिक गुरु दीदी ने सुनाई, मुझे अच्छा लगा इसलिए कि उनके फॉलोवर हज़ारों में है और मेरा संदेश उन तक पहुंचा.. लेकिन मुझे बुरा लगा कहानी के पात्र के नाम बदल गए और रचनाकार की प्रशंसा में कोई उल्लेखित कथ्य नहीं कहा गया। ऐसे ही मोटिवेशनल वीडियो बनाने वाली एक कंपनी ने मेरी वैचारिक पद्य लाइनों को अगुआ कर लिया और उसमें कोई संदर्भ नहीं दिया कि किसकी ये पंक्तियां और विचार है, मुझे ही लोगों को बताना पड़ रहा है ये मेरी लिखी हुई है..हद है..।
यह सब होता है..इसी तरह एक बहुत बड़ी क्रेडिट से चूक गया हूँ..उस समय सोशल मीडिया नहीं तब सिर्फ अखबारी दुनिया ही अपनी बात कहने का एक रास्ता था, समय अपनी युवावस्था का था, माध्यम कुछ था नहीं तो अपन अपने विचार नोट पर लिखकर प्रचारित करते थे,उन्हीं विचारों में से सत्य पर लिखा गया विचार आज सर्वाधिक प्रचलित है। जब भी सत्य का उल्लेख होता है वह विचार जरूर उल्लेखित होता है लेकिन संदर्भ में अपन कहीं नहीं होते।
इसी तरह एक शब्द इन दिनों राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति के लिए कहा जा रहा है, पद का सेवाभावी कद जताने वाला यह शब्द कभी मेरे लिखे गए एक आलेख से उठाया गया है लेकिन इसकी कोई क्रेडिट अपने को नहीं मिली..ऐसा कई बार होता है जब आपका लिखा, कहा, सुनाया गया शब्द वायरल हो जाता हैं लेकिन आपको उसकी क्रेडिट नहीं मिलती।
खैर यह सब लेखक, कवि, विचारक के अपने दर्द हैं.. जो आज असंख्यों को है इसलिए कि इस संपदा की चोरी करने वाले भी आज असंख्य है,कम से कम किसी की कहानी, कथा, कविता, गीत तो मत चुराइये खुद रचनाकर्म करने का प्रयास करते हुए रचनाधर्मी बनिये।
सुरेन्द्र बंसल