इंदौरवासी लगातार करते रहे दुआ…तब जाकर हमने स्वच्छता का सातवां आसमान छुआ…बारिश आती है तो भारत का स्वच्छ शहर आसमान से गिरकर खजूर में अटक जाता है…हमको गर्व का एहसास करवाने वाला अरमान लटक जाता है…अब लगातार स्वच्छता की खुल रही है पोल…कैसे बजा पाएंगे हम आठवें जश्न का ढोल…स्वच्छता के मिशन की कामयाबी वाले वाहन पुराने हो रहे हैं…
खस्ताहाल गाड़ियों को नई गाड़ियों के साथ ढो रहे हैं…कचरा गाड़ियों के साथ ड्राइवर व हेल्पर की अनिवार्यता अब दम तोड़ रही है…एनजीओ की साथ घूमती टीम भी अब मुख मोड़ रही है…कचरा हमारा , ट्रेचिंग ग्राउंड हमारा , वर्कर हमारे फिर उससे सीएनजी इत्यादि बनाने के लिए टेंडर दिए जाते हैं…महंगे टेंडर के बल पर इनका सौदा होता है फिर वेंडर तय किये जाते हैं…अब वो टेंडर वेंडर भी मुँह चिढ़ाने लगे हैं…भाव के भाव देखकर त्योरियां चढ़ाने लगे हैं…
कचरा लालबाग तक से नहीं उठता सप्ताह भर…इतने सारे दरोगा और सफाईकर्मी उठा नही पाए चाह कर…कभी रातदिन सफाई के नजारे नजर आते थे अब वो तुलनात्मक रूप से कम हैं…कुछ तो कसावट में कमी हुई है जिसका हमें गम है…लोग गंदगी के फोटो भेज कर बता रहे हैं…इधर भी सुध लो जनाब बदबूदार ढेर सता रहे हैं…इंदौर में कभी बहती थी सरस्वती और कान्हा ( खान ) नदियां अब वो नाला बन गई है…किनारे पर बसी छोपड़ियाँ फिर उनका विस्थापन धब्बा काला बन गई है…
इन नालों की सफाई के लिए 2022 तक 1157 करोड़ रुपये खर्च कर दिए…इतने साल में 2 नदियों से बने 30 नाले हमने सर्च कर दिए…फिर 500 करोड़ का बजट इनकी गाद निकालकर साफ – सफाई व नाला टेपिंग का बनाया…भ्रमण योग्य स्थल बनाने की चाहत में फव्वारों , हरियाली और रोशनी का स्वप्न सजाया…बदबू तब भी दूर नहीं हुई नदी से नाला बन गई इन व्यथाओं की…कितनी अगरबत्ती लगाएंगे हम इन पर होती कथाओं की…नालों की गाद बारिश के पहले निकालने की सोचते हैं फिर बारिश आ जाती है…कृष्णपुरा छत्री , रामबाग , कुलकर्णी भट्टा , भमोरी की अनेक बस्तियां पानी में समा जाती है…फिर आधा इंच बारिश में ही दृश्य ऐसा हो जाता है जैसे धुंआधार बरसात हुई हो…
चौदस के उजाले के बाद अमावस की काली रात हुई हो…चेम्बर टूट जाये तो समय पर सुधरते नहीं…गड्ढे बारिश के इंतजार में पूरे भरते नहीं…नागरिक कर चुकाकर भी मजबूर है…एप्प तो बन गई लेकिन अभी भी उनकी पहुँच दूर है…भवन अनुज्ञा जैसे मालदार विभाग पर तो सबकी निगाह होती है…गर्मी में जल वितरण के टैंकर लग जाये ये कॉमन चाह होती है…राजस्व वसूली के टारगेट पूरा करने में वाह वाह होती है…पर बजट के अभाव में कार्यों की शिथिलता गुनाह होती है…अब कैसे मिल पायेगा हमको अगला स्वच्छता का पुरस्कार…
कहीं देर न हो जाये इसलिये पूछ रहे हैं कब जागोगे सरकार…सफाई की गुणवत्ता के प्रति नकेल कस फिर हमको फतह दो…आसमानों की ऊंचाई पर रहने वालों इंदौर को तो जमीन की सतह दो…प्रदेश को विकास हेतु सर्वाधिक राजस्व देने वाला नगर अब भी अछूता है…शिव की प्रतिमा रखकर शासन चलाने वाली अहिल्या के हर कोई पैर छूता है…लेकिन अहिल्या नगरी कहीं अंधेर नगरी चौपट राजा न हो जाये…
इस पर ध्यान नही दिया तो टके सैर भाजी टके सैर खाजा न हो जाये…प्रदेश की औद्योगिक राजधानी गुहार करती है…यहां की जनता आज भी जुलूस के चंद मिनटों में ही सफाई कर देने वाले स्वयंसेवकों का इंतजार करती है…हम संस्कारों के पोषक और व्यवहार के धनी हैं…आस्थाओं के प्रितिबिम्ब हम उत्सवों पर यहां खुशियां मनी है ।