रस्सी जल गई बल नही गया… लस्त-पस्त कांग्रेस में नेता प्रतिपक्ष को लेकर घमासान

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नितिनमोहन शर्मा: रस्सी जल गई…पर बल नही गया। ये कहावत कांग्रेस पर अक्षरसः सही साबित हो रही है। मुद्दा नेता प्रतिपक्ष के चयन का है। 30 बरस से शहर में लगातार हार रही कॉंग्रेस ओर उसके नेता बुरी तरह लस्त पस्त है लेकिन गुटबाज़ी है कि थम ही नही रही। संगठन तार तार है पर बड़े नेताओं में तक़रार कायम है। नगर सरकार में नेता प्रतिपक्ष के एक पद के लिए करीब आधा दर्जन दावेदार है ओर इतने ही बड़े नेताओं के हित इससे जुड़े है। कमलनाथ ओर दिग्विजयसिंह जैसे बड़े नेताओं के साथ साथ जीतू पटवारी अरुण यादव संजय शुक्ला से लेकर सुदूर भिंड मुरैना ग्वालियर के डॉ गोविंद सिंह की दिलचस्पी नेता प्रतिपक्ष को लेकर बन गई है। इस पद की मुख्य लड़ाई फिलहाल तो चिंटू चौकसे ओर विनितिका यादव के बीच है लेकिन फौजिया अलीम, रूखसाना खान और राजू भदौरिया भी इस दौड़ में पीछे हट नही रहे।

हालांकि ज्यादातर दावेदारो के तार जाकर दिग्विजयसिंह से ही मिल रहे है। नतीजतन अब राजा पर है कि वे किसके नाम पर रजामंद होते है और कमलनाथ को राजी करते है। पार्टी के स्थानीय नेताओं का एक बड़ा वर्ग इस बार किसी पुरुष नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाने के पक्ष है। इस लिहाज से चिंटू चौकसे ओर राजू भदौरिया ही पार्टी के पास नाम है। महिलाओं में से किसी को फिर से कमान देने के पक्ष में भी कुछ नेता है। लेकिन पार्टी का एक वर्ग इस मामले में अल्पसंख्यक प्रयोग से बचने की ताकीद भी दे रहा है ताकि पार्टी पर लगे मुस्लिम परस्त राजनीति के ठप्पे को हटाया जाए। अगर इस राय पर अमल होता है तो रूखसाना खान और फौजिया अलीम इस दौड़ से बाहर हो जाएगी ओर विनितिका यादव का दावा मजबूत हो जाएगा। अब ये कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर है कि वो कितनी जल्दी इस मसले का समाधान करते है और वो भी सर्वानुमति से। नगर निकाय चुनाव परिणाम से उत्साहित कांग्रेस के लिए इंदौर फिर अहम हो चला है जहाँ वो भाजपा को खुला मैदान देने के पक्ष में नही है। लिहाजा चिंटू चौकसे ओर विनितिका यादव के बीच फैसला होने की पूरी उम्मीद है।

पार्टी तार तार-फिर भी खींची तलवार

भाजपाई चुनावी हमलों से लगातार हार के बाद “क्षत विक्षित” पड़ी कांग्रेस अब भी सुधरने को तैयार नही। निगम में भाजपा की घेराबंदी करने की रणनीति बनाने की बजाय पार्टी में नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे पर तलवारें भांजी जा रही है। ऊपर से शांत नजर आ रही कांग्रेस में अंदर ही अंदर नगर सरकार में नेता प्रतिपक्ष की लड़ाई चल रही है। खेमे कई है और कई नेता है। भोपाल में भी इस मुद्दे पर अहम बढ़ता जा रहा है। शीर्ष नेतृत्व में भी अब अंतर्विरोध उभर आया है। बात वही दिग्विजयसिंह ओर कमलनाथ के बीच आकर अटक गई है। अब वे देखना दिलचस्प रहेगा कि इस बार भाजपा के मुकाबिल पार्टी कौन से चेहरे को 5 साल के लिए आगे करेगी?

चिंटू चौकसे: शहर अध्यक्ष या नेता प्रतिपक्ष

सबसे मजबूत दावा चिंटू का ही है। वे उस विधानसभा क्षेत्र 2 से लगातार 15 साल से पार्षद है, जो भाजपा का मजबूत गढ़ ही नही, भाजपा के ताकतवर नेता कैलाश विजयवर्गीय ओर रमेश मेंदोला का कर्म-कार्य क्षेत्र है। चिंटू ने यहां से 3 मर्तबा चुनाव जीता और तीनों बार भाजपा के स्थानीय बड़े नेताओं को पराजित किया। उनका नाम शहर कांग्रेस अध्यक्ष के लिए भी प्रस्तावित है। साथ ही पार्टी की तरफ से उन्हें 2023 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा 2 से स्वाभाविक दावेदार भी माना जा रहा है। ऐसे में चौकसे के सामने दुविधापूर्ण स्थिति है। विधनासभा चुनाव की दृष्टि से वे नेता प्रतिपक्ष बनना पसन्द कर रहे है और शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद से बच रहे है। उनका तर्क है कि वे चुनाव के चलते “गांधी भवन” के साथ न्याय नही कर पाऊंगा। चिंटू के लिए इंदौर में जीतू पटवारी भी सपोर्ट में है। भोपाल में तो दिग्विजयसिंह है ही। अरुण यादव भले ही दीपु यादव और विनितिका यादव को लेकर कमलनाथ तक पहुंचे लेकिन वे भी दिग्विजयसिंह से बाहर नही। लिहाजा चौकसे का दावा सबसे मजबूत है।

विनितिका यादव: संजय शुक्ला चाहते है बने

कांग्रेस की राजनीति के मजबूत नेता स्व रामलाल यादव ” भल्लू भैय्या” परिवार की बहू विनितिका यादव भी भाजपाई गढ़ से लगातार तीसरी बार चुनाव जीती। सहज-सरल-सौम्य विनितिका को राजनीतिक विरासत अपनी जन्मस्थली अलवर से ही मिली हुई है। पति दीपु यादव भी भद्र राजनीति के लिए पहचाने जाते है। पार्टी के बड़े नेता अरुण यादव मजबूती से साथ खड़े है। वे विनितिका को कमलनाथ से मिलवा चुके है। सूत्र बताते है कि कमलनाथ के समक्ष अरुण यादव ने विनितिका की जबरदस्त पैरवी की ओर नाथ ने भी उन्हें आश्वस्त किया है कि फैसला मनोनुकूल होगा। इंदौर में संजय शुक्ला भी चाहते है कि विनितिका ही नेता प्रतिपक्ष बने। शुक्ला की नजरों के सामने आने वाला विधानसभा चुनाव ओर 1 नम्बर विधनासभा है। यादव-शुक्ला के बीच राजनीतिक संघर्ष से परे हटकर यादव परिवार का संजय को साथ देना भी प्रमुख कारण है जो शुक्ला को आने वाले विधानसभा चुनाव में फिर आवश्यक होने वाला है। विनितिका को अरुण यादव के कारण दिग्विजयसिंह का भी सपोर्ट मिलेगा। अब देखना है कि “बाणगंगा” को निगम सरकार में मुकाम मिलता है या नही?

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रुबीना खान: बागी होना, निर्दलीय लड़ना आ रहे आड़े

कांग्रेस की अल्पसंख्यक राजनीति का पुराना चेहरा इकबाल खान की पत्नी रुबीना खान के लिए भी लामबंदी मजबूत है। इस नाम के तार भी जाकर दिग्विजयसिंह से जाकर मिल रहे है और इकबाल आश्वस्त है कि राजा साथ देंगे। लेकिन अड़चन खान परिवार के बागी तेवरों को लेकर आ रही है जिसके कारण पार्टी को नीचे देखना पड़ा था। 2015 की नगर सरकार में भी रुबीना पार्षद थी लेकिन पार्टी से बगावत कर वे निर्दलीय चुनाव लड़कर जीती थी। इस बार भी पार्टी से ये कहते हुए ही टिकिट मांगा गया था कि दे देंगे तो ठीक, अन्यथा निर्दलीय लड़कर जीतेंगे। बीते चुनाव से सबक लेते हुए कांग्रेस ने इस बार रुबिना को टिकट दिया और वे फिर चुनाव जीती। वार्ड में सक्रियता ओर निगम के अनुभव के आधार पर खान परिवार को उम्मीद है कि रुबीना निगम में पार्टी का चेहरा होंगी। दिक्कत बस अल्पसंख्यक होना है जिससे इस बार कांग्रेस बचना चाह रही है क्योंकि बीती निगम परिषद में भी इसी वर्ग से नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था।

फौजिया अलीम: भाजपा से जुगलबंदी से परेशानी

नेता प्रतिपक्ष के लिए कांग्रेस के पास एक ओर अल्पसंख्यक चेहरा फौजिया अलीम का भी है। वे कांग्रेस की प्रदेश की अल्पसंख्यक राजनीति का एक बड़ा चेहरा शेख अलीम की पत्नी है। पिछली निगम परिषद में वे ही नेता प्रतिपक्ष थी। उनके हिस्से में भाजपा की महापौर मालिनी गौड़ ओर उनकी परिषद से दो दो हाथ करने की जिम्मेदारी थी। लेकिन उनका प्रतिपक्ष का ज्यादातर कार्यकाल मैदानी मूवमेंट की जगह चिठ्ठी-पत्र तक ही सीमित रहा। कोई बड़ा आंदोलन या विरोध उनके खाते में दर्ज नही हुआ। उलटे पति शेख अलीम पर भाजपा से जुगलबंदी कर नेता प्रतिपक्ष की धार को कुंद करने के आरोप चस्पा हो गए। सदन में फौजिया मुखर तो रही लेकिन भाजपा को 5 साल में एक बार भी वो बैकफुट पर नही ला पाई। जबकि उनके ही कार्यकाल में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर शहर के एक बड़े हिस्से में बड़ी तोड़फोड़ हुई। निगम की “पीली गाड़ी” की अराजकता पर भी वे “लाल” नहीं हुई ओर विरोध के नाम पर औपचारिकता का “गुलाबीपन” ओढे रही। पति शेख अलीम का “गोड़ खेमे” से जुड़ाव अब आड़े आ रहा है और फौजिया की राह फिलहाल तो तंग हो गई है।

राजू भदौरिया: भिंड से मदद की आस, बाकी बकवास

इस बार के निगम चुनाव ने शहर की ओर कांग्रेस की राजनीति में एक नया नाम राजू भदौरिया दे दिया है। भदौरिया के चर्चे चंदू शिंदे जैसे स्थानीय बड़े नेता को हराने से हुए है। भदौरिया ने न केवल भाजपाई गढ़ विधानसभा 2 में चुनाव जीता बल्कि हराया उन चंदू शिंदे को जिन्हें भाजपा में “जीत का मटेरियल” कहा जाता है और जो भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के “मानस पुत्र” भी कहलाते है। अलग अलग वार्ड से हमेशा जीतने वाले शिंदे को इस बार राजू ने धूल चटा दी। वह भी तमाम दबाव प्रभाव व प्रताड़ना के बाद। लड़ाई झगड़ा। मारपीट। चप्पल कांड। गिरफ्तारी आदि। ओर भदौरिया फिलहाल जेल में है। उनके लिए भिंड चंबल क्षेत्र के कांग्रेस के कद्दावर नेता डॉ गोविंद सिंह का सपोर्ट सामने आया है। हालांकि डॉक्टर साहब भी दिग्विजयसिंह से जुड़े है। लिहाजा भदौरिया ओर चिंटू में होड़ दोस्ताना चल रही है। अड़चन पहली बार चुनाव जीतने की ही आ रही है क्योंकि नेता प्रतिपक्ष का पद अनुभव की दरकार करता है।