ललन सिंह की मटन पार्टी पर सियासत गरमाई, रोहिणी आचार्य ने कसा तंज, बोलीं- दोहरा चरित्र रखते हैं सत्ताधारी

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By Dileep MishraPublished On: July 17, 2025
ललन सिंह की मटन पार्टी पर सियासत गरमाई, रोहिणी आचार्य ने कसा तंज
पटना। सावन जैसे धार्मिक महीने में केंद्रीय मंत्री ललन सिंह की मटन पार्टी अब सियासी बवाल का रूप ले चुकी है। बुधवार को लखीसराय से सांसद और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह सूर्यगढ़ा प्रखंड पहुंचे थे, जहां उन्होंने मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भोज की व्यवस्था का जिक्र किया। उन्होंने कहा,”जो सावन मनाता है, उसके लिए भी इंतजाम है और जो नहीं मनाता है, उसके लिए भी इंतजाम है।”

सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल, विपक्ष ने उठाए सवाल

इस बयान का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया। मंच पर उनके साथ बिहार सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री अशोक चौधरी भी मौजूद थे। विपक्ष ने इस बयान को लेकर सरकार पर तीखे हमले किए हैं।
रोहिणी आचार्य का तीखा हमला
राजद सुप्रीमो लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर ललन सिंह पर सीधा हमला बोला। उन्होंने लिखा,”ढोंग रच-रच कर ढकोसले फैलाने वाले, दूसरों के खान-पान में खोट निकालने वाले कपटी और बड़े धूर्त हैं। कथनी-करनी में अंतर है इनके। ये धर्म का मर्म छिपाते हैं और दोहरा चरित्र रखते हैं।”

अशोक चौधरी ने दी सफाई

इस विवाद पर मंत्री अशोक चौधरी ने सफाई दी। उन्होंने कहा,”क्या ललन जी मटन खा रहे थे? अगर किसी कार्यकर्ता ने बना दिया तो आप किसको मना कर सकते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि कार्यक्रम में शाकाहारी भोजन की भी उचित व्यवस्था थी, ताकि किसी की धार्मिक भावना आहत न हो।

पहले भी हुई है राजनीति

यह कोई पहला मौका नहीं है जब सावन या नवरात्र जैसे धार्मिक अवसरों पर मटन और मछली को लेकर राजनीति गर्माई हो।
• अगस्त 2022 में राहुल गांधी ने लालू यादव से “बिहारी मटन” बनाना सीखा था, जिसे उन्होंने अपने यूट्यूब पर साझा किया था। बीजेपी ने इस पर जमकर हमला बोला था।
• पिछले साल नवरात्र के पहले दिन, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और VIP प्रमुख मुकेश सहनी का चेचरा मछली खाते हुए वीडियो वायरल हुआ था। तेजस्वी ने एक्स पर लिखा था,”दिनभर के प्रचार में सिर्फ 10-15 मिनट का यही लंच टाइम मिलता है।”

धर्म और खानपान: हमेशा रहा है विवाद का मुद्दा

राजनीतिक गलियारों में खानपान को लेकर बयानबाज़ी और विरोध कोई नई बात नहीं है। लेकिन हर बार चुनावी मौसम या धार्मिक अवसरों पर यह मुद्दा सियासत की नई चिंगारी बन जाता है।