आबिद कामदार
Indore: लंबे समय के बाद शहर की आन बान और शान राजवाड़ा अपनी विरासत और शहर के गौरवशाली इतिहास को अपने में समेटे संवर कर तैयार हो गया है। इसी माह 25 फरवरी तक इसका लोकार्पण किया जायेगा। शहर की शान राजवाड़ा के लोकार्पण समारोह में प्रदेश के मख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शामिल हो सकते हैं, जल्द स्मार्ट सिटी इसको लेकर सीएम से लोकार्पण के लिए तारीख पर चर्चा करेगा। लोकार्पण के बाद इस ऐतिहासिक धरोहर को आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
5 साल में राजवाड़ा के जीर्णोद्वार में लगभग 25 करोड़ किए खर्च, फरवरी में होगा लोकार्पण
राजवाड़े के जीर्णोद्वार के लिए 2018 में इसे आम जनता के लिए बंद कर दिया गया था, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई थी। स्मार्ट सिटी के डीआर लोधा बताते हैं, कि लगभग 25 करोड़ की लागत से पांच साल के समय में राजवाड़े का जीर्णोद्वार किया गया है। जिसमे 1984 में लगी आग से हुए नुकसान वाले हिस्से का निर्माण, 4 मंजिल की लड़कियां पूरी तरह से सड़ चुकी थी इसका कार्य, सातवी मंजिल का निर्माण और अन्य कार्य करवाया गया है, इसे जल्द ही आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।
जिस शैली में राजवाड़ा बना है, उसी शैली में लकड़ी का कार्य किया गया है
1984 में लगी आग से राजवाड़े और शहर की इस संपदा को काफी नुकसान हुआ था, राजवाड़े में लकड़ी का जो भाग जल चुका था, उसे पुनः सागवान की लकड़ी से ही तैयार किया गया है। इस धरोहर को उसी शैली में संवारने के लिए देश के राजस्थान, पंजाब, गुजरात, बिहार और पश्चिम बंगाल से कारीगरों ने अलग अलग शेलियो पर कार्य किया है।
इस धरोहर को निखारने में लगभग छह सौ घन मीटर लकड़ी का कार्य किया गया है। लकड़ी पर विशेष रूप से पोलिश की गई है, ताकि उसे दीमक और बारिश के पानी से बचाया जा सके। देश के कोने कोने से आए इन कारीगरों ने लकड़ी पर अवशेषों के आधार पर ही प्राचीन शैली में ही नक्काशी की है। इस नक्काशीदार लकड़ी पर रसायनिक कोटिंग की गई है, जिससे इमारत को अधिक समय तक संरक्षित रखना आसान होगा।
1766 में बना था राजवाड़ा (Rajwada of Indore)
वैसे तो राजवाड़ा कबसे बनना प्रारंभ हुआ इसके सटीक आंकड़े नहीं मिलते, लेकिन कहा जाता है कि, सन् 1,766 में सूबेदार मल्हारराव होलकर ने अपने घर के रूप में राजवाड़े का निर्माण करवाया था। उस समय यह इतना बड़ा नहीं हुआ करता था, इस महल में बहुत ही बारीकी से कारीगरी की गई है, इसमें मराठा शैली, राजपूत शैली, मुगल शैली और अन्य शैलिया देखने को मिलती है।
इंदौर की शान राजवाड़ा में तीन बार आग लगी।
इतिहासकार बताते हैं कि, सन् 1801 में राजवाड़ा पर अटैक हुआ, जिसमें इसकी ऊपर की दो माला ध्वस्त हो गई, उसमें आग लगा दी गई, इसे लगभग 4 लाख की लागत से मल्हारराव सेकंड ने जीर्णोद्वार करवाया, इसके बाद सन् 1908 में इलेक्ट्रिक सर्किट की वजह से उल्टे हिस्से में आग लगी, जिससे इस महल में काफी नुकसान हुआ, वहीं इसके बाद 1984 में राजवाड़ा में आग लगी, जो की शहर की इस धरोहर में एक बड़ी क्षति साबित हुई। राजवाड़ा में मौजूद दो शीश महल में देवी देवताओं की खूबसूरत पेंटिंग और अन्य चीजें ध्वस्त हो गई थी। जिसको दौबरा तैयार किया गया है, इसे जल्द आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।