पीढ़ीदर चली आ रही रूढ़ीवादी मन्यताओं में धीरे धीरे दरार आने लगती है

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By Mukti GuptaPublished On: January 8, 2023

आबिद कामदार, इंदौर। फिल्मों में और असल जिंदगी में कई ऐसे रूढ़िवादी किरदार होते है, जिसमें पीढ़ीदर पीढ़ी एक मान्यता चली आ रही होती है, लेकिन ऐसे कई हादसे होते है की उन विचारधाओ में दरार आने लगती है। यह बात अपने साक्षात्कार के दौरान मशहूर फिल्म अभिनेता सुधीर पांडेय ने कही। वह शहर में आयोजित एक नाटक में भाग लेने आए थे। उन्होंने अपने जीवन के निजी अनुभव साझा करते हुए बताया कि अभिनय एक ऐसी कला है जिसे सीखा नहीं जा सकता इसे अपने अंदर ढूंढकर मांझा जाता है। जैसे हर कला को सीखने के लिए उससे जुड़ा कुछ होना जरूरी है इस तरह इसके लिए भी आपके अंदर अभिनय के कण होने चाहिए।

आप जो नही है वह होना अभिनय है

अभिनय में जो मेहनत, कल्पना लगती है, उस किरदार को बनाना और उसे निभाना एक नशा है यही तो तो एक कला है जिसे एक अभिनेता जीता है। जो आप नही हो वह होना अभिनय है।

  • आप भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकते है तो आप अभिनय के लिए हो

आपको लगता है की आप भावनाएं प्यार, गुस्सा, दर्द, नफरत, और इंसान के अंदर किसी छिपी चीज को अभिव्यक्त कर सकते है, तो आप अभिनय कर पाएंगे। वरना सिर्फ ग्लैमर देखकर आना अपनी लाइफ बर्बाद करना है। जैसे जैसे आप इसे करते है आप धीरे धीरे मंझते चले जाते है।

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  • अभिनय को अकेले नहीं किया जा सकता

अभिनय एक ऐसी कला है जिसे करने के लिए दूसरे अभिनेताओं को सुनना और समझना होता है। इसे अकेले नहीं किया जा सकता ।