इस साल की सबसे बड़ी खगोलीय घटनाओं में से एक ‘सुपरमून’ 13 जुलाई को देखा जा सकेगा। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी की कक्षा में अपने निकटतम पॉइंट पर पहुंच जाएगा, जिसकी वजह से वह आम पूर्णिमा के मुकाबले सामान्य से थोड़ा बड़ा दिखाई देगा। नासा के अनुसार, यह लगातार दिखाई देने वाले चार सुपरमून में से तीसरा होगा। इसे मात्र एक दिन नहीं, बल्कि तीन दिनों तक देखा जा सकता है। हर दिन की तुलना में चंद्रमा बड़ा तो दिखाई ही देगा और साथ ही ज्यादा चमकीला और गुलाबी भी नजर आएगा। इस दौरान यदि मौसम अनुकूल हो तो चंद्रमा अधिक चमकीला और अधिक बड़ा दिखाई दे सकता है। बुधवार की पूर्णिमा को ‘बक मून’ नाम दिया गया है। ऐसा साल के उस समय के संदर्भ में किया गया है, जब हिरन के नए सींग उगते हैं। 14 जून को दिखे सुपरमून को ‘स्ट्रॉबेरी मून’ नाम दिया गया था क्योंकि यह पूर्णिमा स्ट्रॉबेरी की फसल के समय पड़ी थी। इसे 13 जुलाई की रात 12:07 मिनट पर देखा जा सकता है। इसके बाद यह तीन जुलाई 2023 को दिखेगा।
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धरती और चंद्रमा के बीच की दूरी सबसे कम
13 जुलाई को धरती और चंद्रमा के बीच की दूरी सबसे कम हो जाएगी। सुपरमून के दौरान चंद्रमा की दूरी धरती से सिर्फ 3,57,264 किलोमीटर रहेगी। सुपरमून का असर समुद्र भी दिखाई देगा। सुपरमून की वजह से समुद्र में उच्च और कम ज्वार की बड़ी श्रृंखला देखी जा सकती है। खगोलविदों के मुताबिक, सुपरमून के दौरान तटीय इलाकों में तूफान आ सकता है और बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
इसके अलावा सुपरमून के कुछ घंटों बाद फुलमून नजर आएगा जिसे दो से तीन दिन तक देख सकते हैं। दरअसल यह फुलमून नहीं होगा, लेकिन चांद के आकार की वजह उसी तरह नजर आएगा। इसके अलावा इस दौरान परछाई की स्ट्रिप चांद पर बहुत पतली दिखाई देगी। चांद में बदलाव काफी धीरे होगा जिसकी वजह से फुलमून की ही तरह नजर आएगा। खुली आंखों से इस प्रकिया को देखना थोड़ा कठिन है।
कैसे सुपरमून शब्द की हुई शुरुआत?
सुपरमून शब्द की शुरुआत साल 1979 में हुई। ज्योतिषी रिचर्ड नोले ने इस शब्द को चलन में आया था। जब चंद्रमा धरती के निकटतम 90 फीसदी के दायरे में आता है, तो इस खगोलीय घटना को सुपरमून कहते हैं। सुपरमून को ‘बक मून’ के नाम से भी जानते हैं। इसके साथ दुनिया भर में इसको अलग-अलग नाम से जाना जाता है।