jayram shukla
बजट पर एक चैनलिया बहस
बैठे-ठाले/ जयराम शुक्ल अपने देश में बजटोत्सव (budget festival) वैसे ही एक अपरिहार्य कर्मकाण्ड है, जैसे कि वार्षिक श्राद्ध (Annual Shradh)। श्राद्ध शोकोत्सव है, शोक भी उत्सव भी। अपने देश
गणतंत्र की मुंडेर पर बैठे हुए महाजनों से ‘रामराज्य’ की बात!
जयराम शुक्ल क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि रोशन रंगीनियों के जमाने में अपने देश की तस्वीर कुछ ज्यादा ही श्वेत-श्याम बनकर उभर रही है? भारत के आँगन में ताड़
लाटसाहबियत पर सवारी, गाँठने को कलेजा चाहिए !
जयराम शुक्ल गोविंदनारायण सिंह(Govind Narayan Singh) मध्यप्रदेश के सबसे पढ़े-लिखे और मेधावी राजनेता रहे। संविदकाल में जब वे मुख्यमंत्री (CM) बने तो उनके कई किस्से मशहूर हुए। आरव्हीपी नरोन्हा (RVP
जेपी और नानाजी- राजनीति के जंगल में शुचिता के द्वीप !
जयंती/जयराम शुक्ल अक्टूबर का महीना बड़े महत्व का है। पावन,मनभावन और आराधन का। भगवान मुहूर्त देखकर ही विभूतियों को धरती पर भेजता है। 2 अक्टूबर को गांधीजी, शास्त्रीजी की जयंती
पत्रकारों का तीर्थ, राजेन्द्र माथुर का बदनावर
जयराम शुक्ल धार के पत्रकार मित्रों ने जब यह शुभ सूचना दी कि बदनावर में राजेन्द्र माथुरजी की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा सुनिश्चित की गई है तो यकीन मानिए इतनी खुशी
मच्छरकांड पर एक पुरानी टीप को पढ़ते हुए!
जयराम शुक्ल हाल ही घटित गेस्टहाउस मच्छर कांड पर विचार करते हुए अपनी लिखी हुई एक पुरानी टीप याद आ गई। छह सात पहले का वाकया है एक
कमलेश्वरजी को याद करते हुए……
पिछले पैतीस साल की पत्रकारीय यात्रा में मेरे दिल-ओ-दिमाग में जिन कुछ शख्सियतों की गहरी छाप रही है उनमें से कमलेश्वर जी प्रमुख हैं। आज उनका जन्मदिन है। कमलेश्वर जी
इन्हें चिंदियों में हिंदुस्तान चाहिए!
-जयराम शुक्ल अरुंधती राय को कौन नहीं जानता? चिंदियों का देवता(गाड आफ स्माल थिंग) नामक उपन्यास के लिए इन्हें बुकर पुरस्कार मिला है। इस नाते वे अंर्तराष्ट्रीय बौद्धिक व्यक्तित्व हैं।
भारत-पाक रिश्ते और अटल जी: “इतिहास बदल सकते हैं भूगोल नहीं मित्र बदल सकते हैं पड़ोसी नहीं..!”
जन्मजयंती/जयराम शुक्ल विश्व के राजनीतिक के पटल में भारत के दो महान नेता ऐसे हुए जिन्हें शांति के नोबल पुरस्कार के लिए सर्वथा उपयुक्त माना गया लेकिन उन्हें मिला नहीं..।
सुना आपने! हाय हाय मोदी मर जा तू
जयराम शुक्ल मेरी दादी माँ कहा करती थी- “जेखा जेतनिन गारी मिलति है ओखर उतनै उमिर बढ़ति है तूँ ओखर जवाब भर न दिहे कबौ”। यानी कि जिसको जितनी गालियां
अउर देवता चित्त न धरई, हनुमत सेइ सर्व सुख करई
जयंती पर विशेष/जयराम शुक्ल अपन के गुरुदेव बजरंग बली हैं। गोस्वामी जी कह गए.. अउर देवता चित्त न धरई, हनुमत सेइ सर्व सुख करई। गोसाईं जी के लिए बजरंगबली देवता,
जो न समझे वो अनाड़ी है!
साँच कहै ता/जयराम शुक्ल एक मित्र सायकिल की दुकान पर मिल गए। बाहर उनकी चमचमाती कार खड़ी थी। मैंने पूछा-यहां कैसे? वो बोले- डाक्टर ने कहा सायकिल से चला करिए
लौह व्यक्तित्व के भीतर धड़कता एक कवि हृदय
जन्मदिन/जयराम शुक्ल संवेदना, कला-संस्कृति व साहित्य प्रेम के संदर्भ में भी नरेन्द्र मोदी अटलविहारी वाजपेई के वैचारिक वंशधर हैं। उनका कवि पक्ष बहुत कम प्रकाश में आया है..जबकि उन्होंने गुजराती
कौव्वे हमारे पुरखे, इसलिए!
साँच कहै ता/जयराम शुक्ल पितरपख लगा है कौव्वे कहीं हेरे नहीं मिल रहे। इन पंद्रह दिनों में हमारे पितर कौव्वे बनके आते थे। अपने हिस्से का भोग लगाते थे। कौव्वे
‘एक रुपये’ से समझिए औकात और हैसियत!
उलटबांसी/जयराम शुक्ल हैसियत का मतलब औकात नहीं होता..जनाब। प्रशांत भूषण की हैसियत अरबों रुपयों की है पर औकात..? सिर्फ ..एक रुपये की। सुप्रीम कोर्ट ने बस इतने का ही आँकलन
शिक्षा-नीति को चौराहे की कुतिया बनाने वालों से
साँच कहै ता/जयराम शुक्ल तीज त्योहारों की तरह हर साल शिक्षक दिवस भी आता है। पूजाआराधना में जैसे गोबर की पिंडी को गणेश मानकर पूज लिया जाता है वैसे ही
भला ऐसा समाजवाद और कहां
पर्व संस्कृति/जयराम शुक्ल विपत्ति में हमारी आस्था और विश्वास और भी प्रबल हो जाता है। कोरोना का यह भयकाल भी इसके आड़े नहीं आ सका। घर-घर गणेश जी बिराजे हैं।
बदला तो काफी कुछ है, बशर्ते देखना चाहें तो
समर्थ भारत/ जयराम शुक्ल लालकिले की प्राचीर पर पंद्रह अगस्त को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार सातवीं बार तिरंगा ध्वज फहरा रहे थे तब ऐसा लग रहा था मानो विश्व
आँकडें और आदमी
जयराम शुक्ल जिस किसी ने आँकडों की परिकल्पना की और सांख्यिकीशास्त्र रचा, वह निश्चित ही महान ही रहा होगा। उसने व्यवस्था तंत्र को बड़ी सहूलियत बख्श दी। आँकड़े न होते
आपकी इंदौरियत को मेरा सलाम पहुंचे!
सबसे अलग/जयराम शुक्ल समय का पहिया अपनी गति से घूमता है, कभी उत्थान तो कभी पतन। इसीलिए कहते हैं कि घूरे के दिन भी फिरते हैं। आज जो हेय है