गर्मी अपने चरम पर है, और हालाँकि सभी स्कूलों में नए एकेडमिक सेशंस शुरू हो चुके हैं, स्टूडेंट्स बेसब्री से समर वेकेशंस का इंतज़ार कर रहे हैं। जहाँ अधिकतर स्टूडेंट्स के लिए ये वेकेशंस एक नई शुरुआत होती हैं, वहीं इनके कुछ पहलू ऐसे भी होते हैं, जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है। यदि गौर किया जाए, तो हर वर्ष स्टूडेंट्स के लर्निंग एक्सपीरियंस को नुकसान पहुँचाने में कहीं न कहीं समर वेकेशंस का बहुत बड़ा हाथ होता है। इस दौरान, स्टूडेंट्स अपने नए सेशन की शुरुआत सीखने के कम स्तर के साथ करते हैं, जिसका कारण है स्त्रोत की कमी।
जबकि स्कूल, स्टूडेंट्स को शिक्षा की समान पहुँच प्रदान करते हैं, समर वेकेशंस उन्हें समान रूप से सीखने के अवसरों से दरकिनार कर देते हैं। शोध से पता चलता है कि वेकेशंस के दौरान स्टूडेंट्स सीखने की कला से कुछ हद तक पिछड़ जाते हैं। तथ्य यह है कि विभिन्न कैम्प्स और ट्रैनिंग्स आदि के माध्यम से स्टूडेंट्स को सीखने की नई राह मिलती है, जो बीते समय में सीखी हुई स्किल्स को आने वाले समय के लिए सुगम बनाती हैं। लेकिन कुछ पहलुओं में, कई स्टूडेंट्स की प्रगति में कमजोर आर्थिक स्थिति पूर्णविराम बनकर खड़ी हो जाती है।
Read More : इन कपल्स ने भरी महफ़िल में उड़ाई अपने पार्टनर की धज्जियां! ये है वजह
इस प्रकार, कम आय वाले पेरेंट्स पर चाइल्डकेयर संबंधित कई बड़ी चुनौतियों के बोझ से असमानता के गड्ढे गहराते जाते हैं, जो कि बच्चों को इस बहुमूल्य समय से दूर करने का कारण बन जाते हैं। वर्ष 2020 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, गर्मी के महीनों के दौरान 52% स्टूडेंट्स ने अपने कुल स्कूल वर्ष के लाभ का औसतन 39% खो दिया। इस दौरान सीखने की आदतों के साथ ही स्टूडेंट्स में सीखने की क्षमता भी कमतर जान पड़ी, जो उन्होंने पिछले वर्ष हासिल की थी। यह बात भी सामने आई कि इस कमी को पूरा करने के लिए, स्कूलों का अधिकतर समय पिछले सेमेस्टर के कोर्स को फिर से पढ़ाने में खर्च हो जाता है।
ये दो महीने गरीब बच्चों को तो एक प्रकार से अलग-थलग ही कर देते हैं, क्योंकि उनके पास शहरी बच्चों की तुलना में बाहरी खेल या फिजिकल एक्टिविटीज़ और अन्य साधनों की भारी कमी होती है। जो बच्चे स्मार्ट फोन या कैम्प्स आदि का खर्च नहीं उठा सकते हैं, उन्हें भी इन क्षेत्रों में अनुभव लेने के अवसर दिए जाने चाहिए। इन स्थितियों में, सरकार को चाहिए कि समर वेकेशंस के दौरान प्राइवेट ई-लर्निंग इंस्टिट्यूशंस, जैसे- बायजूस, वेदांतु, मेरिटनेशन, डाउटनट आदि के सहयोग से गरीब बच्चों के लिए स्पेशल कोर्सेस चलाए, जो ऑनलाइन या ऑफलाइन आयोजित किए जाए। टेक्नोलॉजी के इस ज़माने में स्टूडेंट्स के एकेडमिक इंटरेस्ट को जगाने के लिए जरुरी पहल की जानी चाहिए।
Read More : Aishwarya Rai ने मज़बूरी में की Abhishek Bacchan से शादी, इस एक्टर से करती थी सबसे ज्यादा प्यार
इसके अलावा, स्कूल भी दो महीनों की इन छुट्टियों के दौरान स्पेशल प्रोग्राम्स की शुरुआत कर सकते हैं, जो स्टूडेंट्स के लिए कॉस्ट इफेक्टिव हों और उन्हें बेहतर लर्निंग एक्सपीरियंस दे सकें। यह सत्य है कि स्टूडेंट्स को समय-समय पर ब्रेक की आवश्यकता होती है, लेकिन लंबे ब्रेक्स बेहतर साबित होने के बजाए नुकसान दे जाते हैं, क्योंकि सीखना एक कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है, और इन दो महीनों के दौरान इसमें रुकावट आ जाती है। स्कूलों और एजुकेशन सिस्टम के लिए यह उचित होगा कि वे स्टूडेंट्स की आवश्यकताओं और उनके भविष्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपने एकेडमिक कैलेंडर में आवश्यक बदलाव करें।