पेट दुखना और माथा पकड़ना

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यह कहावत इंदौर शहर में चिरतार्थ हो रही है। शहर मे रामनवमी के दिन बहुत ही दुखद और अकल्पनीय दुर्घटना में 36 लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए । पुरानी 50- 60 साल पुरानी बावड़ी पर बनी छत पर पूजा के लिए हवन के दौरान, यह लोग छत धंसने से अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए। इस घटना ने पूरे शहर प्रदेश और देश को झकझोर दिया। हम सब को सोचने के लिए चिंतन के लिए और अपने आप में सुधार करने के लिए अवसर दिया। मगर हम तात्कालिक दिखावे,बातो और कार्यों के अलावा मूलभूत चिंतन से दूर रहकर शहर की तमाम बावडियों को बंद करने का निर्णय लिया।

एक प्राकृतिक नैसर्गिक जल प्रबंधन के प्रति अकल्पनीय अत्याचार और दुष्कर्म कर रहे हैं ।यह जितनी भी बातें हैं ,इसमें मूल बात है अवैध अतिक्रमण और जगह को हड़प कर उस पर निर्माण कार्य करना। इस अतिक्रमण और अवैध जमीन हड़पने के बातों पर गौर करने के बदले, हम कुए बावडियों को बंद करने का निर्णय कर रहे हैं। जो कि एक गलत निर्णय है ।अवैध अतिक्रमण और कब्जेवालों पर कार्रवाई होना चाहिए और उन्हें दंडित भी करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है ।किसी भी सूरत में कुएं ओर बावडियों को बंद नहीं करना चाहिए ।इनको हवादार माध्यमों से बंद कर थोड़ा ऊंचा कर ,उसे जमीन को हड़पने से अतीक्रमण से बचाना चाहिए। मगर जल के इन स्रोतों को या जल पुनर्भरण के इन स्रोतों को हमने बंद नहीं करना चाहिए ।

अन्यथा शहर के अंदर आने वाले समय में जब पानी की किल्लत होगी, तब अकल्पनिया स्थिति निर्मित होगी। यह 600 से ज्यादा बड़े-बड़े पीट ,गड्ढे शहर के जल पुनर्भरण में अपना सबसे ज्यादा योगदान लगातार देते रहे हैं और देते रहेंगे। इन्हें किसी भी हालत में मिट्टी से या मलबे से भरना नहीं चाहिए, और इसका संरक्षण करना चाहिए ।साथ में ही इस पर कोई दुर्घटना ना हो ,उसके लिए बहुत कम खर्चे में जो कार्य हो सकता है ,वह हे इसको जालियों से ऊंचे कर, कुएं बावड़ी से 4-5 फीट दूर, फेंसिंग चैन लिंक कर ,जाली लगाकर, इसे संरक्षित किया जा सकता है ।और यही एकमात्र श्रेष्ठ उपाय है। अतः शहर के नीति नियंताओं से विनम्र पूर्वक आग्रह है कि, इस बारे में और तकनीकी बातों पर ध्यान में रखकर योजना बनावे और इसे अमल में लाएं ।
बहुत-बहुत धन्यवाद ।
अतुल शेठ।