यादों की गुल्लक हाथों में थामे बजाते रहे श्रवण गर्ग

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कीर्ति राणा

पत्रकारिता जगत में श्रवण गर्ग (Shravan Garg) का नाम देश-दुनिया में जाना-पहचाना है। उम्र के 75 वें पड़ाव में से उनकी आधी सदी तो पत्रकारिता और लेखन को समर्पित रही है। वो कवि और फोटोग्राफर भी उतने ही अच्छे हैं।उम्र के 75 वें वर्ष में बीते वर्षों की डायरी के पन्ने पलटते हुए कहते हैं आज भी लगता है बहुत कुछ करना बाकी रह गया है।मैं खुद को उस बच्चे की तरह मान रहा हूं जो गुल्लक में कुछ थोड़े पैसे इकट्ठा कर लेता है और हाथों में गुल्लक थामे उसे बजाता रहता है। मित्रों-परिजनों के सम्मान स्नेह के प्रत्युत्तर में श्रवण गर्ग बोले पहले मैं इसके लिए तैयार नहीं था, फिर सोचा इतने सालों में तो ऐसा कुछ किया नहीं इसलिए कहा करना चाहिए।

आज जब यह आयोजन हो रहा है तो इस लंबी यात्रा में मीडिया के, कला, संस्कृति, कविता, आंदोलनों के साथी, फोटोग्राफी आदि से जुड़े कई लोग छूट गए हैं। अपनी जिंदगी की डायरी के पन्ने पलटते हुए गर्ग कह रहे थे कृति के विवाह के वक्त संपादक होने का गुरूर रहता था, तब चिंता नहीं करना पड़ती थी कि कितने लोग आएंगे। मैं आज किसी पद पर, किसी संस्थान में नहीं हूं पर जो लोग आए हैं वो मेरे काम पर मुहर लगा रहे हैं। ये जो आधी सदी है उसकी यह मेरी यात्रा बहुत ही कठिन रास्तों से होकर यहां तक पहुंची है।आज लग रहा है जो करना चाहता था वो सब नहीं कर पाए, ट्रेन आउटर पर पहुंच गई है। जैसे छोटे बच्चे गुल्लक को बजाते रहते हैं मैं वो ही बजा रहा हूं। मैं जितना हांसिल करता हूं, दुनिया और बढ़ी हो जाती है।

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यहां दो लोगों का जिक्र जरूर करना चाहूंगा।डॉ रमेश बाहेती यहां बैठे हैं।एक दिन मैंने उनसे कहा मेरे पास काम नहीं है, आप डेविश जैन से बात कीजिए, मैं पढ़ाना चाहता हूं।उन्होंने डेविश जैन से बात की और मुझे प्रेस्टिज में मॉस कम्यूनिकेशन पढ़ाने का काम मिल गया। डेविस जैन ने उन पांच साल में कभी नहीं कहा कि आप मोदीजी के खिलाफ लिखते हैं, मैं परेशानी में आ जाऊंगा। मैंने पांच साल बाद जब खुद छोड़ना तय कर लिया तब भी जैन चाहते थे मैं ऐसा न करुं।अपने किए कामों को समेटने के लिए छोड़ दिया पर वो सारे काम आज तक नहीं कर पाया। ये सम्मान मेरे लिए आप सब के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने जैसा है।

वर्षों पहले एक मित्र ने कहा था जिंदगी में बहुत कुछ खोने पर मन दुखी भी होता है लेकिन पीछे मुड़ कर देखेंगे तो यह खुशी होगी कि कहां से चले थे और कितना आगे पहुंच गए। मैंने जो कुछ भी हांसिल किया है उसमें पत्नी का दोनों बच्चों का योगदान सबसे ज्यादा है। मैं तो यहां-वहां सफर करता रहा, मेरे साथ-साथ वो भी सफर करते रहे। हरेक आदमी का मेरे जीवन में महत्व है। आप सब में ईश्वर की उपस्थिति का अंश मान कर धन्यवाद ज्ञापित करता हूं। कविता लिखने से जीवन शुरु किया, सरोज भाई के साथ कविता भी पढ़ी। बच्चों ने कविता संग्रह ‘पिता तुम तो पहाड़’ प्रकाशित कर के अचंभित कर दिया है।जीवन की शेष बची यात्रा में आपका ऐसा ही स्नेह बना रहे।

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अपने ही शहर में जब लोग सम्मान करें तो वह किसी भी सम्मान से बढ़ा होता है। यह सबसे बडा आशीर्वाद है। यह बना रहे, बहुत बहुत धन्यवाद। किताब प्रकाशन का तोहफा दिया बेटी ने आमंत्रितों ने चलचित्रों से जानी जीवन यात्रा शनिवार की शाम उनके 75वें जन्मदिन प्रसंग पर बेटी कृति-सचिन द्वारा संयोजित उनकी कविताओं के संग्रह ‘पिता तुम तो पहाड़’ का विमोचन कवि सरोज कुमार के हाथों हुआ। इस किताब ने गर्ग को इसलिए चौंका दिया कि उन्हें पता नहीं था कि परिजनों ने संग्रह प्रकाशित करा लिया है। पर्दे पर उनकी पत्रकारिता और विशिष्ठजनों से जुड़े चित्रों के माध्यम से जीवनयात्रा को भी आमंत्रितों ने जाना। उनके मित्र सुशील दोषी, रमेश बाहेती, डॉ डेविश जैन, एसएल गर्ग, रामदास गर्ग, नीतू जोशी, अनिल त्रिवेदी आदि ने उनकी स्पष्टवादिता, पेशेगत ईमानदारी, धारदार लेखन का जिक्र किया। अरविंद, अजय, डॉ अतुल और शरद कटारिया ने सभी का आभार माना।