आज अपने गुरु के प्रति श्रद्धा का महापर्व गुरुपूर्णिमा (Guru Purnima) है। भारतीय सत्य सनातन धर्म में गुरु का स्थान ईश्वर से बढ़कर माना गया है । ईश्वर के द्वारा दी गई दृष्टि से हम संसार को देख सकते है ,जबकि गुरु द्वारा प्रदान की गई दृष्टि से ईश्वर तत्व का दर्शन सम्भव है । सच्चे गुरु अपने शिष्य के अन्तःकरण में सद्गुणों का संचार करते हैं साथ ही प्रेम, ज्ञान, कर्म और करुणा का जीवन में प्रकाश करते हैं । व्यवहारिक जीवन के सफल निर्वहन के साथ ही परम् तत्व की प्राप्ति का मार्ग सद्गुरु की कृपा से ही सम्भव है । सनातन धर्म में प्रथम गुरु अपनी माता व पिता को माना गया है जिनके आशीष से सच्चे सद्गुरु की प्राप्ति होती है, जोकि परम शाश्वत सत्ता से साक्षात्कार कराते हैं।
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अवतारों से लेकर महापुरुषों तक ने की गुरु वन्दना
गुरु की महिमा हर युग, हर समय में प्रासंगिक रही है । भगवान राम ने जहाँ गुरु आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए
एक मानवीय शिष्य के आदर्श स्वरूप को सार्थक किया ,वहीं सोलह कला के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण ने भी गुरुकृपा के माध्यम से सम्पूर्णता की लीला का निर्वहन किया । कलयुग में एक ब्राह्मण चाणक्य जैसा गुरु जब मिलता है तो एक मामूली दलित चरवाहे में मौजूद गुणों की परख होती है और हीरे की तरह तराश कर उसे भारत का महान चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य भी बना दिया जाता है । छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी गुरुओं के आशीष से ही स्वराज का परचम लहराया । एक अत्यंत साधारण दरिद्र, अशिक्षित, विक्षिप्त सी अवस्था दर्शाते रामकृष्ण ‘परमहंस’ के गुरु स्वरूप से जब शिष्य स्वरूप नरेंद्रनाथ दत्ता मिलता है तो विश्व मे भारत के शाश्वत इतिहास को स्वामी विवेकानंद जैसा महामानव प्राप्त होता है ,जो भारतीय सनातन परंपरा को विश्व पटल पर शीर्ष स्थान पर विराजित करता है ।
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भगवान शिव ने दिया था शिष्य ऋषियों को ज्ञान
गुरुपूर्णिमा महापर्व आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। मान्यता है कि आदिगुरु भगवान भोलेशंकर ने गुरु स्वरूप में अपने शिष्य स्वरूप ऋषियों को आज ही के दिन ब्रह्म ज्ञान प्रदान किया था, इसलिए गुरुपूर्णिमा का महापर्व भगवान शिवशंकर को सर्वपर्थम समर्पित है । आज ही के दिन वेदव्यास जी का जन्मदिवस भी माना जाता है। वर्षा ऋतू के प्रारम्भ होने के समय आने वाला गुरुपूर्णिमा महापर्व, बारिश की पहली फुहार के स्वरूप में गुरुकृपा की सौम्यता का परिचायक है। इस पवित्र दिवस पर पूर्ण सात्विकता से अपने इष्ट गुरु का ध्यान व पूजन करना चाहिए। आहार-विहार और आचरण में पवित्रता रखते हुए गुरु के द्वारा सिखाए आदर्शों का अनुसरण करना चाहिए, निश्चित ही सद्गुरु की कृपा ईश्वर के आशीष में समाहित होकर आपको प्राप्त होगी।