Indore News : रियासतकालिन कपड़ा मार्केट के चुनाव परिणाम घोषित

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इंदौर (Indore News) : देशभर में ख्यात इंदौर के पुरातन महाराजा तुकोजीराव क्लाथ मार्केट के व्यापारी एसोसिएशन के चुनाव परिणाम बुधवार को घोषित हो गए। 90 साल पुराने ऐतिहासिक कपड़ा बाजार के चुनाव तीन साल बाद हुए है। इस चुनाव में 21 प्रतिनिधी पदों के लिए कुल 28 उम्मीदवार मैदान में थे। मार्केट के कमेटी हॉल में मतगणना शुरू हुई और देर शाम निर्वाचन अधिकारी पुरषोत्तमदास पसारी और सहायक निर्वाचन अधिकारी रामप्रकाश मूंदडा ने नतीजे घोषित किए। इस बार चंद्रप्रकाश गंगवाल को सर्वाधिक 629 मत प्राप्त हुए। उनके अलावा पूर्व अध्यक्ष हंसराज जैन, पूर्व पदाधिकारी अरूण बाकलीवाल, कैलाश मुंगड ने भी जीत हांसिल की। इन नतीजों के बाद अब निर्वाचित सदस्य अध्यक्ष, दो संयुक्त मंत्री और कोषाध्यक्ष पदों के लिए मतदान करेंगे।

यह हुए विजयी –
चंद्रप्रकाश गंगवाल, सत्यनारायण शारडा, मनोज नीमा, निर्मलकुमार सेठी, मुकेश टोंग्या, गिरीश कुमार काबरा, कैलाशचंद मुंगड, नंदकिशोर नीमा, राकेश काकाणी, रजनीश चौरडिया, नरेंद्र नीमा, अरूण बाकलीवाल, हंसकुमार जैन, राजेश कुमार नाहटा, ज्ञानचंद संचेती, रामेश्वर पोरवाल, विनीत कोचर, शिवकुमार जगवानी, राजेश कुमार जैन, कैलाशचंद खंडेलवाल, सुनील कुमार रामपुरिया, सुरेश सोमानी, राजेश आजाद, मोनेश राजदेव, धीरज कुंडल, मुकेश थाबरानी, बाहुबली पाटनी और जितेंद्र चंदानी।

व्यापार ही नहीं सेवा कार्य भी है पहचान –
इंदौर के पुरातन कपड़ा मार्केट की देश भर में ख्याती है। यह ख्याती सिर्फ अच्छे व्यापार को लेकर ही नहीं बल्कि सेवा कार्य के लिए भी है। मार्केट एसोसिएशन शहर में शैक्षणिक, धार्मिक, पारमार्थिक और स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन भी करता है। कई दशकों से जारी इन सेवा कार्यो का लगातार विस्तार भी हो रहा है।

मार्केट से जुड़ी है बापू की स्मृति –  
कपड़ा मार्केट से होल्कर रियासत का जुड़ाव सर सेठ हुकमचंद जी के कारण हुआ। इंदौर के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले होल्कर राजवंश ने व्यापार विस्तार के लिए सर सेठ को आगे किया। सर सेठ ने 1931 में कपड़ा बाजार की आधारशिला रखी थी। बताया जाता है कि 1933 में गांधीजी इंदौर आए थे और सेठ हुकमचंद जी के नेतृत्व में बड़े आयोजन उस वक्त हुए थे। बापू की स्मृतियों को सहेज कर रखने के उद्देश्य से 1939 में कपड़ा मार्केट में गांधी द्वार का निर्माण करवाया गया था। हालांकि सड़क चौड़ी करण के नाम पर वह ऐतिहासिक द्वार ढहा दिया गया मगर ऐतिहासिक पत्थर अभी मौजूद है।