हिंदू धर्म में ग्रहण के समय को अत्यंत संवेदनशील और अशुभ माना गया है। इस विशेष अवधि को ही ‘सूतक काल’ कहा जाता है, जो सूर्य या चंद्र ग्रहण से पूर्व और ग्रहण की समाप्ति तक प्रभावी रहता है। सदियों से इस नियम का पालन न केवल धार्मिक स्तर पर, बल्कि सामाजिक जीवन में भी किया जाता रहा है। ज्योतिषाचार्य और धर्मशास्त्र दोनों ही इस समय को विशेष सतर्कता और संयम का काल मानते हैं।
क्या होता है सूतक काल
सूतक काल उस अवधि को कहा जाता है जब सूर्य या चंद्र ग्रहण लगने वाला होता है। इस दौरान वातावरण में कुछ ऐसी अदृश्य अशुद्ध ऊर्जा सक्रिय हो जाती हैं जो मानसिक और शारीरिक रूप से नकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस काल में देवगण भी अपने प्रभाव में नहीं रहते, जिससे पूजा-पाठ, मंदिर दर्शन और शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। इसे शुद्धता और आध्यात्मिक अनुशासन का समय माना जाता है।
सूतक काल की गणना कैसे की जाती है?
सूतक काल की अवधि ग्रहण के प्रकार पर निर्भर करती है। यदि सूर्य ग्रहण है तो इसका सूतक 12 घंटे पहले प्रारंभ हो जाता है और ग्रहण समाप्त होते ही समाप्त हो जाता है। वहीं, चंद्र ग्रहण के लिए यह अवधि 9 घंटे पहले से मानी जाती है। यह गणना ग्रहण के वास्तविक समय के अनुसार की जाती है। जैसे ही ग्रहण समाप्त होता है, सूतक भी स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
सूतक काल में क्यों बंद हो जाते हैं मंदिरों के द्वार?
ग्रहण और सूतक काल को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत अशुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दौरान न केवल मनुष्य, बल्कि देवता भी अपने प्रभाव में नहीं रहते। इसीलिए, सूतक लगते ही मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं, मूर्तियों पर पर्दा डाल दिया जाता है और आरती, पूजन, जप-तप जैसे कार्यों को रोक दिया जाता है। सूतक काल में की गई पूजा भी फलदायी नहीं मानी जाती।
सूतक काल में क्यों नहीं करते भोजन?
सूतक काल के पीछे धार्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक कारण भी हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से माना जाता है कि ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा की किरणों में बदलाव होता है, जिससे पृथ्वी पर सूक्ष्म जीवाणुओं की वृद्धि होती है। यही कारण है कि इस समय खाना पकाना और खाना दोनों मना होता है। परंपरागत रूप से भोजन में तुलसी के पत्ते डाल दिए जाते हैं, ताकि उसमें कोई संक्रमण न फैले।
गर्भवती महिलाओं के लिए सूतक का महत्व
ग्रहण और सूतक काल गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सतर्कता का समय होता है। इस दौरान उन्हें तेज रोशनी, खुले आसमान के नीचे निकलने, तेज आवाज या नकारात्मक ऊर्जा के संपर्क से बचने की सलाह दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस समय का प्रभाव गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ सकता है। इसलिए यह नियम न केवल धार्मिक बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
सूतक का पालन क्यों जरूरी है?
सूतक काल का पालन केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और आत्मसंयम का एक अवसर है। यह समय शांति, ध्यान और मौन का होता है, जो व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा से दूर रखता है और आंतरिक पवित्रता की भावना को मजबूत करता है। यह न केवल धार्मिक रूप से बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी संतुलन बनाए रखने का माध्यम है।
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