3 सितंबर से शुरू होने जा रहा है श्वेताम्बर जैन समाज का पर्यूषण पर्व

Author Picture
By Suruchi ChircteyPublished On: September 1, 2021

पुराने समय में तप और मेहनत से ज्ञान प्राप्त करने वालों को श्रमण कहा जाता था। जैन धर्म प्राचीन भारतीय श्रमण परम्परा से ही निकला धर्म है। ऐसे भिक्षु या साधु, जो जैन धर्म के पांच महाव्रतों का पालन करते हों, को ‘जिन’ कहा गया। हिंसा, झूठ, चोरी, ब्रह्मचर्य और सांसारिक चीजों से दूर रहना इन महाव्रतों में शामिल हैं। जैन धर्म के तीर्थंकरों ने अपने मन, अपनी वाणी और काया को जीत लिया था। ‘जिन’ के अनुयायियों को जैन कहा गया है। यह धर्म अनुयायियों को सिखाता है कि वे सत्य पर टिकें, प्रेम करें, हिंसा से दूर रहें, दया-करूणा का भाव रखें, परोपकारी बनें और भोग-विलास से दूर रहकर हर काम पवित्र और सात्विक ढंग से करें।

मान्यता है कि जैन पंथ का मूल उन पुरानी परम्पराओं में रहा होगा, जो इस देश में आर्यों के आने से पहले प्रचलित थीं। यदि आर्यों के आने के बाद से भी देखें तो ऋषभदेव और अरिष्टनेमि को लेकर जैन धर्म की परम्परा वेदों तक पहुंचती है। महाभारत के समय इस पंथ के तीर्थंकर नेमिनाथ थे। ई।पू। आठवीं सदी में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हुए। उनके बाद महावीर और बुद्ध के समय में संप्रदाय बंट गया। कुछ बौद्ध तो कुछ जैन हो गए। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर वर्धमान हुए। उन्होंने जैन धर्म को काफी मजबूत किया। इस वक्त जैन धर्म के दो दल हैं। एक श्वेतांबर मुनि (सफेद कपड़े धारण करने वाले) तो दूसरे दिंगबर (बिना कपड़े धारण किए रहने वाले) मुनि।