रंगपंचमी पर कल इंदौरियों ने दिखाई अलग ही लपक, पांच लाख से भी ज्यादा जुटे लोग

Share on:

रंगपंचमी पर कल इंदौरियों ने अलग ही लपक दिखाई। अपन ने भी जो देखा-सुना, उससे खूब आनंद हुआ। बताते हैं कल पांच लाख से भी ज्यादा मनक इसमें जुटे ! बड़ा आंकड़ा है ये और बहुत मुमकिन है कि इसमें ‘यूनेस्को’ की हवा (बाजी) का रोल भी रहा।

अपन हिन्दरक्षक संगठन की फागयात्रा में थे। ये भी अलग शबाब पर थी। इस बार जितनी बड़ी तादाद में कपल्स और जनानियों ने इसमें भागीदारी की, उतनी पहले कभी न देखी गयी। कहा गया कि इसे इस बार विदेशी भी देखने आए। जब इसने नरसिंह बाजार का मंदिर पार किया तो उधर जवाहर मार्ग पर वाघमारे का बगीचा के सामने एक बुजुर्ग विदेशी महिला को हिन्दरक्षक लिखी जैकेट पहने बीस से अधिक युवा एस्कॉर्ट करते चल रहे थे। कोई अचरज न कि इस एस्कोर्टिंग से इस पर्व पर उस विदेशी बुजुर्ग महिला को ब्रिटेन की महारानी होने की फीलिंग आयी हो !

उधर, बर्तन बाजार में कुछ युवा सड़क से पैदल गुजरते थे। तभी एक मकान की छत से एक आदमी ने उन पर बाल्टी से पानी फेंका। उससे भीगे एक युवा ने ऊपर बाल्टी वाले व्यक्ति को देखा और चिल्लाकर पूछा, ‘क्यों रे, कंगला है क्या ? सिर्फ पानी डाल रहा है, उसमें रंग तो मिला !’ सुनकर बर्तन बाजार में हर तरफ हंसी खनकने लगी। आगे पीपली बाजार में एक व्यक्ति को अचानक छींक आयी। उसने अपने सीधे हाथ के अंगूठे और तर्जनी को नाक पर रखा, सिर नीचे किया और एक हलके विस्फोट के साथ नाक छिनक दी।

मजेदार दृश्य आगे था। जी हां, वहां एक बाजू एक घोड़ा खड़ा था। वो व्यक्ति उधर ही गया और नाक से निकले बलगम से सने अपने अंगूठे और तर्जनी को उस घोड़े की पूंछ से पोछ लिया। गोया घोड़े की पूंछ न हुई दीवार पर लटकता नेपकिन हो गया। आगे कोई पचास कदम चलने के बाद उसे फिर छींक आयी। इस बार उसको घोड़ा न दिखा तो उसने बिजली के खम्बे से हाथ पोछा ! ख्याल आया कि बिजली के खम्बे के ऐसे सदुपयोग में कुत्तों से बहुत ज्यादा पीछे नहीं हैं हम।

जबरेश्वर महादेव मंदिर के आगे खजूरी बाजार वाले चौराहे पर अलग घटना दिखी। वहां अचानक उड़न तश्तरी के अंदाज में कोई चीज उड़ती हुई आयी और अपने से दो कतार आगे खड़े एक शख्स से गाल पर जोरदार तरीके से चट्ट करती लैंड हुई। देखा तो वो कोई उड़न तश्तरी नहीं थी, बल्कि बिना बद्दी की सपाट स्लीपर चप्पल थी ! जाहिर है वो डेंजर जोन लगा अपन को। अलबत्ता इससे ख्याल आया कि रँगपंचमी पर निकलने वाली गेरों में लंबे समय से कोई नई ईजाद नहीं हुई है। वही बिना बद्दी की चप्पल, फ़टे पुराने जूते, कपड़े, कीचड़, प्लास्टिक की पानी से भरी गुब्बारेनुमा थैलियां और आदि आदि। कोई नया आयटम नहीं जुड़ा है इसमें बरसो से। खैर।

आगे अपनी मित्र मंडली चाय-नाश्ते के इरादे से इंदौर हॉस्पिटल यानी शिव विलास पैलेस वाली गली में थी। चाय-नाश्ते के बाद कुछ देर सुस्ताने हम सब उस पैलेस की सीढ़ियों पर जा विराजे। वहां यह हुआ कि दूसरी बाजू की सीढ़ियों पर एक पुंगी गैंग जमा थी। जी हां, अस्पताल के मरीजों से बिलकुल बेपरवाह ये गैंग सतत अपनी-अपनी होर्ननुमा पुंगी बजाने में तल्लीन थी और खासा शोर।

इस गैंग का एक बंदा कुछ ज्यादा ही उत्साही था। वो अपनी पुंगी से हॉर्न की ऐसी तान छेड़े हुआ था जैसे आगरा-बॉम्बे रोड पर विजयंत ट्रेवल्स की बस दौड़ा रहा हो ! ऐसे और भी कई नजारे कल देखे। गर सब लिखूं तो पोस्ट बहुत ज्यादा लम्बी हो जाएगी। कुलजमा एक लाइन की बात यह कि वर्जना से मुक्त हमारे इस पर्व पर लोग अपने-अपने तरीके से आनंद उठाते हैं।

अंत में बात व्यवस्था की तो पुलिस कमिश्रर लंबे अरसे से इंदौर में हैं और कल व्यवथा फेल दिखी। जी हां, शिव विलास पैलेस के सामने पीछे से घेरा काटकर जब हमने राजबाड़ा पुलिस चौकी तरफ जाना चाहा तो वहां पुलिस ने बैरिकेड लगा दिए और पैदल जाने वालों को भी रोक दिया ! हालांकि उसका कोई फायदा न हुआ और एक बड़ी भीड़ राजबाड़ा तरफ जाने की कोशिश कर रही थी तो राजबाड़ा तरफ से वैसी ही बड़ी भीड़ इमली बाजार तरफ आने की कोशिश कर रही थी।

नतीजा यह कि हनुमान मंदिर के दोनों ओर भीषण धक्का-मुक्की शुरू थी। वो बढ़ती जा रही थी और लग रहा कि किसी भी पल कोई हादसा हो सकता है ! अफसोस कि उसमें अनेक महिलाएं, युवतियां और बच्चे भी फंसे थे और खासे परेशान, किंतु उस पुलिस चौकी या आसपास मौजूद पुलिस को वहां व्यवस्था बनाने का न ख्याल महसूस हुआ और न जरूरत।

सूझ न पड़ा कि क्या मजाक है यह ? हकीकतन पुलिस कमिश्नर इतने बरसों से यहां हैं और इस त्योहार को यूनेस्को तक पहुंचाने में तमाम जवाबदार लगे हैं अलबत्ता किसी को यह होश नहीं है कि इस त्योहार को उस व्यवस्था से नवाजने का भी सोचा जाए जिससे लोगों का आवागमन सुगम रहे और किसी अवांछित हादसे की सूरत ही न बने। इसके उलट जवाबदारों के रंग-ढंग से तो लगता है कि उनको इसकी क्या पड़ी है ? जनता का त्योहार है और वही भुगते।

दोपहर बाद लौटते में एक मित्र ने पूछा कि ‘काका, शहर में कहीं नहाने की व्यवस्था है क्या ?’ उनका आशय किसी नदी, तालाब या सरकारी नल से था। इससे ख्याल आया कि रंगपंचमी के दिन नगर निगम या किसी प्रायवेट खिलाड़ी द्वारा क्या शहर में अलग-अलग जगह पानी के टैंकर खड़े कर या किसी और तरीके से लोगों को नहाने की सुविधा मुहैया कराना मुमकिन है ? भले उसके लिए हर नहाने वाले से 50 रुपये या 100 रुपये पानी के वसूले जाएं ? पता नहीं ऐसा मुमकिन है या नहीं, लेकिन यूनेस्को के लिए कोई कसर बाकी न रखी जायेगी। बता दूं कि अवसर विशेष पर लोगों को सुविधा के नये रंग उपलब्ध कराने का भी अपना आनंद है। ये और बात है कि कोई चाहे तो सही !