अक्सर मिलने वाली छुट्टी का आनंद नहीं उठा पाते लोग

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लेखक – आनंद शर्मा

गपशप का ये कालम रविवार को छुट्टी के दिन इसलिए लिखा जाता है कि लोग आराम से इसे पढ़ें और अपनी आपबीती से इसके सिरे जोड़ सकें। अलबत्ता ये बात दूसरी है कि प्रशासनिक सेवाओं ,राजस्व सेवाओं और पुलिस सेवाओं से जुड़े लोग अक्सर अन्य लोगों को मिलने वाली छुट्टियों का आनंद नहीं उठा पाते हैं, और तो और कई बार जरूरत पड़ने पर भी छुट्टी से महरूम रह जाते हैं। इसके कई कारण होते हैं, कुछ तो मजबूरी भी रहती है और कई बार अफसर ऐसा मिल जाता है कि जिससे छुट्टी की बात करते ही सन्निपात हो जाता है।

मेरे एक अफसर थे उनसे जब भी छुट्टी मांगो वे अपने द्वारा ली गयी छुट्टियों का हिसाब करने लगते थे , अरे तुम छुट्टी की बात कर रहे हो ! मैंने तो पिछले तीन महीने से छुट्टी नहीं ली है । सर मुझे बच्चे को डाक्टर को दिखाने ले जाना है। ओह्हो क्या बात करते हो, जब मेरे बच्चे की तबियत खराब हुई थी तो मैंने क्या किया था, बज़र देकर स्टेनो को…क्यों फलां डाक्टर को बता दो इन्हे आज ही देख कर फुर्सत कर दें | यानि छुट्टी और जोइनिंग दोनों का इन्तिजाम।

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आम अफ़सर ही नहीं , बल्कि इस परेशानी से आइ.ए.एस. , आइ.पी.एस. तक को मैंने जूझते महसूस किया है । एक अत्यंत भद्र महिला अधिकारी हमारी कलेक्टर थीं । मैडम के पति भी अखिल भारतीय सेवा के सदस्य थे और राजधानी में पदस्थ थे । जब भी कभी बैठक होती और भोपाल जाने का अवसर आता , मीटिंग समाप्त होने के बाद आयुक्त महोदय पूछते क्यों कब तक वापस पहुँच जाओगी ? बड़ी ही भली और अपने काम के प्रति समर्पित हमारी कलेक्टर संकोच वश कहती बस दो एक घंटे बाद चली जाउंगी , और जब वे घर वालों से मिल दो-एक घंटे में जिले मुख्यालय पर पहुँचती , तो पीछे से बड़े साहब का फ़ोन किसी मामूली काम के लिए आ जाता जिसका उद्देश्य ये पता करना होता कि वे वापस पहुँची या नहीं ?

एक और दिलचस्प वाक़या है , तब मैं सिहोर में पदस्थ था और मुख्यालय का अनुविभागीय अधिकारी था। प्रभारी मंत्री बैठक लेने आने वाले थे , कि उसी सुबह कलेक्टर साहब का फ़ोन आया कि आज उनकी तबियत ठीक नहीं है , उन्होंने कहा “मंत्री जी को आप लोग अटेंड करना तथा कलेक्टर की ज़िम्मेदारी अपर कलेक्टर अरुण तिवारी निभा लेंगे”। मैंने निर्देश सुन लिए पर उनके स्वर से लग नहीं रहा था कि तबियत ख़राब है , मैं समझ गया कि योजना समिति में रखे जाने वाले किसी विषय से वे बचना चाह रहे थे। नियत समय पर प्रभारी मंत्री राजेंद्र शुक्ल सिहोर रेस्ट हाउस में पधार गए , परम्परा के मुताबिक़ मैंने उनकी अगवानी की और मीटिंग के लिए उन्हें लेकर कलेक्ट्रेट आ गया।

मीटिंग हाल में घुसते ही उन्होंने देखा कि कलेक्टर नहीं हैं तो पूछा कहाँ हैं कलेक्टर? बताया गया कि उनकी तबियत ख़राब है, तो बोले चलो देख लें। सिहोर में तब कलेक्टर बँगला और कलेक्ट्रेट एक ही केम्पस में थे और मीटिंग हाल तो बंगले से लगा हुआ ही था। मंत्री जी निकले और बँगले की ओर चल दिए। मैं पीछे पीछे दौड़ा, और आगे निकल कर गेट पर खड़े सैनिक को कहा जल्दी अंदर बताओ साहब की तबियत देखने मंत्री जी आये हैं। सैनिक अंदर भागा और जब हमने थोड़ी देर बाद कलेक्टर साहब के बेडरूम में प्रवेश किया तो पाया, कलेक्टर साहब बिस्तर पर चादर ओढ़ कर लेटे हुए थे। मंत्री जी ने हालचाल पूछा और वापस मीटिंग हाल की ओर चल पड़े, सैनिक ने थोड़ी देर जो लगाई उससे हालात सम्भाल लिए गए थे।