थिकसे मठ, लेह, लद्दाख में रात्रि विश्राम एवं आध्यात्मिक अनुभव: नीरज राठौर

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थिकसे मोनेस्ट्री लेह से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जो मध्यकालीन युग को दर्शाता है। यह एक 12 मंजिला ऊंची ईमारत है जो इलाके का सबसे बड़ा मठ है। यहाँ आने वाले पर्यटक सुन्दर और शानदार स्तूप, मूर्तियाँ, पेंटिंग,थांगका और तलवारों को देख सकते हैं, जो यहाँ के गोम्पा में रखी हुई हैं । यहाँ पर एक बड़ा सा पिलर भी है जिसमें भगवान बुद्ध के द्वारा दिए गए सन्देश और उपदेश लिखे हुए हैं। इस मठ में आयोजित होने वाला थिकसे महोत्सव यहाँ का एक अन्य आकर्षण हैं जो दो दिनों तक चलता है। इस स्थान के पास में ही शेय गोम्पा और माथो गोम्पा मौजूद हैं जो यहाँ के अन्य आकर्षण हैं।

लद्दाख के पथरीले इलाके में सैंकड़ो मठ हमें देखने को मिल जाएंगे क्योंकि यहां अधिकतर लोग ( 85%) बौद्ध धर्म को मानते हैं। ये मठ पर्यटकों को न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के कारण अपनी और आकर्षित करते हैं बल्कि इनकी शानदार वास्तुकला भी पर्यटकों को अपनी ओर खींच लाती है। पुरानी कलाकृतियां, भित्तिचित्र और इतिहास से जुड़ी दूसरी चीजें अनायास ही पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींच लेती हैं। इन गोंपा (तिब्बती शैली में बने मठ) का शांत परिवेश आपको फिर से तरोताजा कर देगा। अगर आप सोच रहे हैं कि केवल एक मठ देखने से ही काम चल जाएगा क्योंकि सभी मठ एक जैसे होते हैं तो आपका सोचना गलत है क्योंकि प्रत्येक मठ में कुछ न कुछ अलग होता है। ऐसा ही एक मठ है थिकसे मोनेस्ट्री जहा मुझे रात्रि विश्राम का मौका मिला । सबसे पहले मेरे कमरे का अवलोकन करिए:-

मेरे कमरे से हिमालय का विअहंगम द्रश्य
यह विशाल संरचना तिब्बत के ल्हासा के पोटाला पैलेस के आधार पर बनाई गई है। इसे उसकी डुप्लीकेट भी कहा जाता है । इसे पहाड़ी की चोटी पर बनाया गया है जो करीब 12 मंजिल का है,और लेह से करीब 19 से 20 किलोमीटर दूर है। यहां मैत्रेय की 49 फीट ऊंची मूर्ति लगी है जो लद्दाख में सबसे बड़ी है, इसके अलावा बौद्ध अवशेष जैसे प्राचीन थंगका, टोपी, बड़ी तलवारें, पुराने स्तूप और भी बहुत कुछ यहां मौजूद है। यहां 100 से ज्यादा बौद्ध भिक्षु और नन रहते हैं। इस संरचना में 10 मंदिर और एक असेंबली हॉल है। इसका बाहरी हिस्सा लाल, गेरुआ और सफेद रंग से रंगा है। यह एक लैंडमार्क बन गया है जो मीलो दूर से दिखाई देता है। सिंधु घाटी के बाढ़ के मैदानों का दृश्य देखने के लिए फोटोग्राफर्स के लिए एक सुविधाजनक जगह बन गई है।


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यहाँ सुबह 6 बजे उठकर स्नान करके में सुबह 7 बजे की विशेष पूजा में शामिल हुआ, ये पूजा 2 घंटे चली एवं मुझे एक अलग की आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति हुई । पूजा के दौरान मेने भिक्षुओ के साथ चाय ग्रहण की ।


सुबह की पूजा
सुबह की पूजा समाप्त करके मेने सुबह 9:30 बजे वहा के हेड लामा से मिलने का समय लिया, वैसे हेड लामा किसी को मिलने का समय नहीं देते लेकिन ये मेरा परम सोभाग्य रहा की मुझे मिलने का समय दिया गया । में ठीक 9:30 पर परम सम्मानीय से मिलने चले गया थिकसे मॉनेस्ट्री के हेड लामा परम श्रद्धेय आदरणीय श्री Thiksey Rinpoche द्वारा मुलाकात का समय दिया गया, मेरा स्वागत किया गया एवं मेरे द्वारा परम श्रद्धेय को गौतम बुद्ध की पूजा आराधना की पुस्तक भेंट की . आदरणीय से बौद्ध धर्म के बारे में एवं विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक मुद्दों पर चर्चा हुई.

इस मठ में कई इमारतों को उनके महत्व और आकार के आरोही क्रम में पहाड़ी-ढलान के ऊपर से व्यवस्थित किया गया है। पूरी व्यवस्था आपको ग्रीस के एक टुकड़े को याद दिलाती है जिसमें सफेद रंग की इमारतों का समूह है। यहां के आकर्षण का केंद्र मठ से महज 15 मीटर की दूरी पर 1970 में निर्मित मैत्रेय मंदिर में 49 फीट ऊंची मैत्रेय बुद्ध (भविष्य के भगवान बुद्ध) की प्रतिमा है। थिकसे पूरी शिद्दत के साथ लेह- लद्दाख और आसपास के शानदार इलाकों पर अपनी नजर रखता है। जब मौसम बादलों से भरा होता है, तो इस मठ से आपको लेह बादलों से पूरी तरह से घिरा हुआ दिखेगा। यहां कि हवा बिलकुल साफ और जादूई है, और भिक्षुओं के साथ यहां रुकना किसी आशिर्वाद से कम नहीं है। इस मठ में एक लाइब्रेरी भी है, जहां आप बौद्ध धर्म की कई पुरानी किताबें पढ़ सकते हैं।