अब अन्य पिछड़ा वर्ग बन रहा गले की फांस….

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राज-काज
दिनेश निगम ‘त्यागी’
– पंचायत चुनाव कब तक के लिए टल गए, कोई नहीं जानता लेकिन ओबीसी आरक्षण का मसला भाजपा और कांग्रेस के लिए गले की फांस बनता नजर आ रहा है। बिना सोचे समझे दोनों दलों ने ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा कर डाली। दोनों दल सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए। ‘आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे’ की तर्ज पर 27 फीसदी तो दूर 14 फीसदी आरक्षण भी खतरे में पड़ गया। सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी सीटों को सामान्य घोषित कर पंचायत चुनाव कराने का निर्णय सुना दिया। किसी तरह पंचायत चुनाव रद्द कराकर सरकार ने अपनी इज्जत बचाई।

अब अन्य पिछड़ा वर्ग सड़क पर है। पिछड़ा वर्ग महासभा ने अचानक 27 फीसदी आरक्षण की मांग को लेकर 2 जनवरी को सीएम हाउस के घेराव की घोषणा कर डाली। इसमें हिस्सा लेने भीम आर्मी के चंद्रशेखर भोपाल पहुंचे, उन्हें एयरपोर्ट से ही गिरफ्तार कर लिया गया। जयस भी समर्थन में उतर गई। पिछड़े वर्ग के हजारों लोगों की पुलिस ने पकड़ा-धकड़ी की। जमकर हंगामा, नारेबाजी और झूमाझटकी हुई। कांग्रेस के पिछड़े नेता भी इसमें कूद गए हैं। लिहाजा, हालात कांग्रेस को कम, भाजपा को ज्यादा नुकसान के हैं। डैमेज कंट्रोल के लिए अब भाजपा को फूंक-फूंक कर कदम रखना होगा।

कालीचरण को लेकर धर्मसंकट में भाजपा….
– आरएसएस, भाजपा और मध्यप्रदेश की सरकार बाबा कालीचरण को लेकर धर्मसंकट में है। कालीचरण ने छत्तीसगढ़ की धर्मसंसद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए जैसे अपशब्द कहे और हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमा मंडन किया, इससे भाजपा धर्मसंकट में फंस गई है। दरअसल, भाजपा और संघ महात्मा गांधी का सम्मान तो करते हैं लेकिन एक बड़ा तबका गांधी का विरोधी और गोडसे का समर्थक भी है। यही वजह है कि भाजपा के अधिकांश नेताओं ने कालीचरण द्वारा गांधी के लिए कहे अपशब्दों का विरोध किया लेकिन दबे स्वर में, दमदारी से नहीं। छत्तीसगढ़ पुलिस ने मध्यप्रदेश में छिपे कालीचरण की जिस तरह गिरफ्तारी की, उसे लेकर भी विवाद हुआ।

प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने गिरफ्तारी के तरीके का विरोध किया। हालांकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस मसले पर अब तक कुछ नहीं बोले। गिरफ्तारी का विरोध मतलब कालीचरण द्वारा कही गई बात का समर्थन माना। शिवराज ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहते। सभी जानते हैं कि जब भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त कहा था तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैसी प्रतिक्रिया आई थी। मोदी महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते हैं, इसलिए भी भाजपा नेताओं की सांसें फूली हुई हैं।

यह सिंधिया का दुस्साहस, पश्चाताप या राजनीति….
– ज्योतिरादित्य चौंकाने वाले काम करने वाले नेता के तौर पर ख्याति अर्जित कर रहे हैं। इस बार उन्होंने वह कर सभी को अचंभित किया जो सिंधिया घराने में आज तक किसी ने नहीं किया था। ग्वालियर दौरे के दौरान अचानक वे महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर पहुंच गए। परिक्रमा की और माथा टेक कर उन्हें नमन किया। यह सिंधिया का दुस्साहस है जिसे दाद देनी चाहिए, पश्चाताप या भूल सुधार है जिसकी प्रशंसा की जाना चाहिए या महज राजनीति, जिसे सीढ़ी बनाकर वे राजनीति के शिखर तक पहुंचना चाहते हैं। वजह कोई भी हो लेकिन सिंधिया छा गए। महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत के मसले पर अब तक सिंधिया घराने को घेरा जाता रहा है।

पहले भाजपा के नेता उन्हें गद्दार कहते थे, अब कांग्रेस के नेता यह उपाधि देते हैं। बड़ा वर्ग सिंधिया के इस कदम को राजनीति का ही हिस्सा मानता है। ऐसा कर उन्होंने अपने खानदान पर लगा कलंक मिटाने की कोशिश की है और प्रदेश भाजपा के शिखर में पहुंचने की एक और बाधा पार की है। संभव है, ऐसा उन्होंने भाजपा नेतृत्व के संकेत पर किया हो लेकिन है यह हिम्मत वाला काम। इससे भाजपा में उनके विरोधियों को झटका लगा है। अलबत्ता, कांग्रेस इस मसले पर अपने ढंग से सिंधिया को घेर रही है।

भाजपा में हर नेता पर भारी ‘ज्योतिरादित्य’….
– भाजपा में कई बड़े नेताओं के लिए कांग्रेस से आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया आंख की किरकिरी बन कर उभर रहे हैं। भाजपा में जो कभी नहीं होता था, वह हो रहा है, ठीक कांग्रेस की तर्ज पर। भाजपा की सरकार बनाने में जो भूमिका सिंधिया ने निभाई है, वह तो वे वसूल ही रहे हैं, भाजपा में अपनी जड़े भी मजबूत कर रहे हैं। संगठन और सरकार के हर फैसले में सिंधिया को लगभग 25 फीसदी हिस्सेदारी मिल रही है। पहले यह मंत्रिमंडल विस्तार में हुआ, इसके बाद विभागों के बंटवारे और संगठन की नियुक्तियों में और अब निगम-मंडलों की नियुक्तियों में भी सिंधिया बाजी मार ले गए।

वे जिसे चाहते थे, जगह दिलवा दी। मजेदार बात यह है कि सिंधिया का मप्र दौरा होने वाला था और अचानक रात में आदेश जारी कर दिए गए। इसे सिंधिया के दबाव और बढ़ते असर से जोड़ कर देखा जा रहा है। खास यह भी कि निगम-मंडलों में भाजपा के उन बड़े नेताओं के समर्थकों को एक भी जगह नहीं मिली जो अब तक भाजपा और सरकार के हर निर्णय में निर्णायक भूमिका निभाते थे। सिंधिया ग्वालियर-चंबल अंचल में लगातार दौरे कर भाजपा के अंदर खुद को मजबूत कर रहे हैं। इससे पार्टी के कई स्थापित नेताओं को अपनी जमीन खिसकती दिख रही है। वे सदमे में हैं।

घर संभालने में जुटे दिग्विजय, अजय, अरुण….
– कांग्रेस में बड़े नेताओं को समझ आ गया है कि यदि पार्टी में कमलनाथ का मुकाबला करना है तो पहले खुद को और अपने घर को मजबूत करना होगा। इसे ध्यान में रखकर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव ने अपनी सक्रियता बढ़ा रखी है। दिग्विजय जनजागरण यात्रा के जरिए प्रदेश में दौरे कर अपने लोगों को संगठित कर रहे हैं और चंबल-ग्वालियर अंचल में अपने घर का विस्तार कर रहे हैं। अजय-अरुण का कमलनाथ के साथ छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर हैं। लिहाजा, दोनों ने अपनी विरासत सहेजना शुरू कर दी है।

अजय विंध्य अंचल में घर वापसी अभियान चला रहे हैं। हर उसे नेता के घर पहुंच रहे हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुका है। उन्हें सफलता भी मिल रही है। बड़ी तादाद में नेता भाजपा छोड़ कर घर वापसी कर रहे हैं। अरुण यादव ने निमाड़ अंचल में अपनी सक्रियता बढ़ाई है। वे भी अपनों को लामबंद कर रहे हैं। खासतौर पर उन्होंने पिछड़ों में अपना फोकस बढ़ा दिया है। तीनों नेताओं को अहसास है कि कमलनाथ जब से प्रदेश की राजनीति में आए तब से प्रदेश कांग्रेस के सभी पदों पर काबिज है। खुद को मजबूत कर ही उनसे मुकाबला संभव है, वरना सब हाशिए पर ही बने रहेंगे।