Navratri Special : गुलगुले के भोग से खुश होकर माता ने छोड़ दी नर बलि लेना, आइये जानते है इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में

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By Pallavi SharmaPublished On: September 29, 2022

उज्जैन में क्षिप्रा नदी के घाट पर स्थित भूखी माता का मंन्दिर अपने आप में विशेष महत्त्व रखता है, यहां मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है, माता के इस मंदिर की कहानी सम्राट विक्रमादित्य के राजा बनने से जुड़ी है। कहते हैं कि भूखी माता को प्रतिदिन एक युवक की बलि दी जाती थी। राजवंश में जिस भी जवान लड़के को अवंतिका नगरी का राजा घोषित किया जाता था, भूखी माता उसे खा जाती थीं।

Navratri Special : गुलगुले के भोग से खुश होकर माता ने छोड़ दी नर बलि लेना, आइये जानते है इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में

उज्जैन के शिप्रा तट स्थित भूखी माता का मंदिर अति प्राचीन है। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पूर्णिमा के बीच भूखी माता को गुलगुले का नैवेद्य अर्पित करने की परंपरा है। इसका निर्वहन हर वर्ष किया जाता है। फलस्वरूप गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज के परिवार अपनी सुविधा के अनुसार मंदिर पहुँचते हैं और देवी को (गुड़ से बने भजिए) गुलगुले का भोग चढ़ाकर माता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसी स्थिति में मंदिर परिसर में मेला-सा दृश्य बन जाता है। गुलगुले के साथ नमकीन भी चढ़ाया जाता है। गुलगुले चढ़ाने की परंपरा राजा विक्रमादित्य के जमाने से चली आ रही है। न केवल गुर्जर गौड़ ब्राह्मण समाज बल्कि अन्य कई समाज भी इस अवधि में भूखी माता के दरबार में पहुँचकर देवी का आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। मंदिर जाने वाले श्रद्घालु पूजा-पाठ तो करते हैं, अपने साथ भोजन ले जाकर मंदिर परिसर में ही ग्रहण भी करते हैं।

Navratri Special : गुलगुले के भोग से खुश होकर माता ने छोड़ दी नर बलि लेना, आइये जानते है इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में

चमत्कारी देवी भूखी माता का उल्लेख शास्त्रों में भी है। गुलगुले या अन्य प्रसाद अर्पित करने से देवी प्रसन्न होकर मनोकामना पूरी करती है। देवी की आराधना शुद्घ तन और मन से की जानी चाहिए। इसका सिलसिला मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ हो यह क्रम पूर्णिमा तक सतत चलता।

ऐसे जुड़ा भूखी माता और राजा विक्रमादित्य का साथ

कथा के अनुसार उज्जैन में स्थित कई माताओं में से एक माता नरबलि की शौकिन थी। एक बार एक दुखी मां राजा विक्रमादित्य के पास गई। विक्रमादित्य ने उसकी बात सुनकर माता से नरबलि नहीं लेने की विनती करने की बात कही और उससे कहा कि यदि देवी ने उनकी बात नहीं मानी तो वे खुद उनका आहार बनेंगे। दुखी मां के जाने के बाद विक्रमादित्य ने आदेश दिया के कई तरह के पकवान बनवाए जाएं और इस पकवानों से पूरे शहर को सजा दिया जाए। इस आदेश के बाद जगह-जगह छप्पन भोग सजाए गए। इसके अलावा राजा ने इन पकवान में से कुछ मिठाइयों को एक तख़्त पर सजाकर रखवा दिया। साथ ही मिठाइयों से बना एक मानव पुतला यहां पर लिटा दिया और विक्रमादित्य खुद तखत के नीचे छिप गए। रात को सभी देवियां जब इन पकवानों को खाकर खुश होकर जाने लगीं तभी एक देवी ने ये जानना चाहा कि आखिर तख़्त पर क्या रखा है। देवी ने तख़्त पर रखे पुतले को तोड़कर खा लिया। देवी उसे खाकर खुश हो गई और ये जानना चाहा कि किसने ये पुतला यहां रखा है। इतने में विक्रमादित्य निकलकर आए हाथ जोड़कर बताया कि मैंने इसे यहां रखा था।

Navratri Special : गुलगुले के भोग से खुश होकर माता ने छोड़ दी नर बलि लेना, आइये जानते है इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में

पुतले को अपना आहार बनाकर खुश होकर देवी बोलीं, क्या मांगते हो। तब विक्रमादित्य ने कहा कि कृपा करके आप नदी के उस पार ही विराजमान रहें। और आज के बाद से आप कोई नरबलि नहीं ले, देवी ने राजा की चतुराई पर अचरज जाहिर किया और कहा कि ठीक है, तुम्हारे वचन का पालन होगा। सभी अन्य देवियों ने इस घटना पर उक्त देवी का नाम भूखी माता रख दिया। विक्रमादित्य ने उनके लिए नदी के उस पार मंदिर बनवाया। इसके बाद देवी ने कभी नरबलि नहीं ली और उज्जैन के लोग खुश रहने लगे।

Navratri Special : गुलगुले के भोग से खुश होकर माता ने छोड़ दी नर बलि लेना, आइये जानते है इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में

अब इंसान की नहीं, पशुओं की दी जाती है
मंदिर में अब इंसान की बलि नहीं, बल्कि पशुओं की बलि दी जाती है। ग्रामीण क्षेत्र के लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां आकर बलि प्रथा का निर्वाहन करते हैं। कई लोग पशु क्रूरता अधिनियम के तहत बलि नहीं देते हुए, पशुओं का अंग-भंग कर उन्हें मंदिर में ही छोड़ देते हैं।