नर्मदा मैया इंदौर चलो: 57 साल पुराने आंदोलन की कहानी अब किताब में..

Shivani Rathore
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अगर हम मानव सभ्यता के विकास के क्रम पर एक नजर डालें तो अधिकतर सभ्यताओं का जन्म किसी न किसी छोटी या बड़ी नदी के निकट ही हुआ है। नदियों ने सदा ही सभ्यताओं के विकास में अहम भूमिका निभाई है और हम मनुष्यों के लिए पोषण का कार्य किया है, ऐसी ही नदियों की फेहरिस्त में एक नाम नर्मदा का भी आता है।

नर्मदा नदी जो कि पश्चिम की ओर बहने वाली देश की सबसे लंबी नदी है, ये आज कोई शहरों की प्यास बुझाती उनके लिए संजीवनी का कार्य करती है, इंदौर भी उन्हीं शहरों में से एक है। इंदौर में नर्मदा का जल लाने के लिए 57 साल पहले छावनी के आमसभा में “नर्मदा मैया इंदौर चलो” का नारा दिया गया था, यह नारा उस समय प्रकाश चंद सेठी और महापौर रह चुके नारायण प्रसाद कांति लाल शुक्ला ने दिया था।

यह नारा उस समय पर्यावरण आंदोलनों की परिपक्वता के उदाहरण स्वरूप लोगों के समक्ष आया था, उसने पर्यावरण तथा विकास के संघर्ष को एक बड़े स्तर पर चर्चा का विषय बनाया जिसमें न केवल विस्थापित लोगों बल्कि वैज्ञानिकों, गैर सरकारी संगठनों तथा आम जनता की भी भागीदारी रही। और इंदौर जो कि आज देश का सबसे स्वच्छ शहर है उसकी नींव कहीं ना कहीं इस नारे के साथ ही रखी गई थी।

यह आंदोलन जल्द ही एक जन आंदोलन के रूप में लोगों के समक्ष उभरा, कई समाजसेवियों, पर्यावरणविदों, छात्रों, महिलाओं, आदिवासियों, किसानों तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का एक संगठित समूह बना जिन्होंने इसमें अपनी सहभागिता की। आखिरकार “एक ही हल-नर्मदा का जल” 23 दिनों तक चलने वाले इस सतत आंदोलन को सफलता मिली और नर्मदा के आगमन पर शहर के लोगों ने जीत का जश्न मनाया था।।

आदित्य का कहना है कि उनके दादाजी ने नर्मदा के लिए किया हुआ काम उन्हें बहुत प्रेरित करता है। उन्होंने कहा, “मेरे दादाजी की मेहनत और संघर्ष ने नर्मदा को स्वच्छता और विकास की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। मैं भी उनकी तरह ही डिजिटल विभाजन के मुद्दे पर काम कर रहा हूं, ताकि हम सभी को एक समृद्ध और एक समान भविष्य मिल सके।”

आदित्य शुक्ला, जो नारायण प्रसाद शुक्ला के पोते हैं, अपने दादाजी की याद में एक किताब लाने की तैयारी में हैं। अदित्य की किताब का लॉन्च बहुत जल्द होने वाला है, और वह अपने दादाजी की याद में इस महत्वपूर्ण कदम को आगे बढ़ाने का इंतजार कर रहे हैं।