19 फरवरी को नर्मदा जयंती मनाई जा रही हैं। ये दिन मां नर्मदा को समर्पित होता है। इस दिन मां नर्मदा की पूजा की जाती हैं। मान्यताओं के अनुसार, माघ महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तारीख को नर्मदा जयंती मनाई जाती हैं। कहा जाता है इस दिन मां नर्मदा के पावन जल से स्नान करने से, हर व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। नर्मदा नदी मध्यप्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा है। लेकिन इसका आधा से ज्यादा भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। नर्मदा नदी को भारत में सबसे प्राचीन नदियों में से एक और सात पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। आज हम आपको मां नर्मदा से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं।
आपको बता दे, देश की सभी नदियों की अपेक्षा में नर्मदा विपरित दिशा में बहती है। दरअसल, नर्मदा एक पहाड़ी नदी होने के कारण कई स्थानों पर इसकी धारा बहुत ऊंचाई से गिरती है। अनेक स्थानों पर यह प्राचीन और बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से सिंहनाद करती हुई गुजरती हैं। एक यही कारण है कि इस नदी की यात्रा में कई जलप्रपात देखने को मिलते हैं जिसमें अमरकंटक के बाद भेड़ाघाट का जल प्रपात बहुत ही प्रसिद्ध है।
मंडला और महेश्वर में नर्मदा की ‘सहस्रधारा’ देखने को मिलती है। नेमावर और ॐकारेश्वर के बीच धायड़ी कुंड नर्मदा का सबसे बड़ा जल-प्रपात है। नर्मदा के जल का राजा मगरमच्छ को कहा जाता है। कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं। नर्मदा नदी को पाताल की नदी माना जाता है। यह भी जनश्रुति प्रचलित है कि नर्मदा के जल को बांधने के प्रयास किया गया तो भविष्य में प्रलय होगी। इसका जल पाताल में समाकर धरती को भूकंपों से पाट देगा।
मां नर्मदा का उद्गम स्थल –
अमरकंटक में कोटितार्थ मां नर्मदा का उद्गम स्थल है। यहां नर्मदा उद्गम कुंड है, जहां से नर्मदा नदी का उद्गम है जहां से नर्मदा प्रवाहमान होती है। नेमावर नगर में इसका नाभि स्थल है। फिर ओंकारेश्वर होते हुए ये नदी गुजरात में प्रवेश करके खम्भात की खाड़ी में इसका विलय हो जाता है। नर्मदा जी की यह यात्रा लगभग 1,312 किलोमीटर की है। इस बीच नर्मदा विन्ध्य और सतपुड़ा के पहाड़ और जंगल सभी को पार करते हुए जाती है। बता दे, नर्मदा के तट के किनारे कई प्रचीन नगर तीर्थ और आश्रम बसे हुए हैं।
जैसे अमरकंटक, माई की बगिया से नर्मदा कुंड, मंडला, जबलपुर, भेड़ाघाट, बरमानघाट, पतईघाट, मगरोल, जोशीपुर, छपानेर, नेमावर, नर्मदासागर, पामाखेड़ा, धावड़ीकुंड, ओंकारेश्वर, बालकेश्वर, इंदौर, मंडलेश्वर, महेश्वर, खलघाट, चिखलरा, धर्मराय, कातरखेड़ा, शूलपाड़ी की झाड़ी, हस्तीसंगम, छापेश्वर, सरदार सरोवर, गरुड़ेश्वर, चंदोद, भरूच। इसके बाद लौटने पर पोंडी होते हुए बिमलेश्वर, कोटेश्वर, गोल्डन ब्रिज, बुलबुलकंड, रामकुंड, बड़वानी, ओंकारेश्वर, खंडवा, होशंगाबाद, साडिया, बरमान, बरगी, त्रिवेणी संगम, महाराजपुर, मंडला, डिंडोरी और फिर अमरकंटक। नर्मदा के तट पर कई ऋषि मुनियों के आश्रम और तिर्थंकरों की तपोभूमि विद्यमान है।
वहीं अगर नर्मदा घाटी के प्राचीन नगरों की बात करें तो महिष्मती यानी महेश्वर, नेमावर, हतोदक, त्रिपुरी, नंदीनगर, भीमबैठका आदि ऐसे कई प्राचीन नगर है जहां किए गए उत्खनन से उनके 2200 वर्ष पुराने होने के प्रमाण मिले हैं। जबलपुर से लेकर सीहोर, होशंगाबाद, बड़वानी, धार, खंडवा, खरगोन, हरसूद आदि तक किए गए और लगातार जारी उत्खनन कार्यों ने ऐसे अनेक पुराकालीन रहस्यों को उजागर किया है। संपादक एवं प्रकाशक डॉ. शशिकांत भट्ट की पुस्तक ‘नर्मदा वैली : कल्चर एंड सिविलाइजेशन’ नर्मदा घाटी की सभ्यता के बारे में विस्तार से उल्लेख मिलता है।