MP Tourism : मध्यप्रदेश अपने खूबसूरत शहरों के साथ ही अपनी धरोहर के लिए भी पहचाना जाता है। यहां पर आपको कई ऐसे हिल स्टेशन और खूबसूरत स्थान देखने को मिलेंगे जहां पर हमेशा पर्यटकों का जमावड़ा देखने को मिलता है, दूर-दूर से लोग मध्यप्रदेश की खूबसूरती को देखने के लिए आते हैं। मध्यप्रदेश में आपको प्राचीन किले, मंदिर, मस्जिद के अलावा कई ऐतिहासिक जानकारियां भी मिल जाती है।
मध्य प्रदेश ऐसी विरासत से भरा है जिसके बारे में जानने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पर भ्रमण करने के लिए आते हैं आज हम आपको इंदौर के एक ऐसे ही शहर के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि अपने आप में काफी ज्यादा अलौकिक है जो विश्व धरोहर को अपने आप में समेटा हुआ है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के बुरहानपुर की जो कि कई ऐतिहासिक विरासत से भरा हुआ है।
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बुरहानपुर (Burhanpur) में आपको कला का बेजोड़ नमूना भी देखने को मिलता है। शहर ताप्ती नदी के किनारे मौजूद है। बताया जाता है कि शहर का नाम शेख बुरहानुद्दीन के नाम से पड़ा। बुरहानपुर में असीरगढ़ का किला भी मौजूद है जिसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं इसको लेकर कहा जाता है पुरातत्व विभाग का कहना है कि यह वह जेल है, जहां 1857 के क्रांतिकारियों को गुप्त रूप से बंदी बनाकर यहां पर फांसी दे दी गई थी।
जानें यहां की 5 धरोहर के बारे में
राजा की छतरी
यहां वैसे तो विश्व धरोहर की काफी जानकारियां आपको मिल जाती है। ऐसे में यहां मौजूद राजा की छतरी को लेकर कहा जाता है कि मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर राजा जयसिंह के सम्मान में इस छतरी का निर्माण हुआ था
कुंडी भंडारा
वहीं यहां पर आपको शुद्ध जल के भी कई स्त्रोत देखने को मिल जाते हैं। बताया जाता है कि मुगल शासकों ने 8 जल प्रदाय प्रणालियों का निर्माण करवाया था। आज भी यह जीवित है।
असीरगढ़ का किला
बुरहानपुर में मौजूद किले को दक्षिण का द्वार या दक्खन का दरवाजा भी कहा जाता है। जो यहां सबसे ज्यादा प्रचलित है। जिसका दीदार करने के लिए दूर दूर से आते हैं। मध्यकाल में इस दुर्गम एवं अभेद्य किले को जीते बिना दक्षिण भारत में कोई शक्ति प्रवेश नहीं कर सकती थी। बता दें कि तीन अलग अलग स्तर पर इस किले को बनाया गया था। किले के ऊपरी परकोटा असीरगढ़ और दूसरे परकोटे को कमरगढ़ और मलयगढ़ कहा जाता है।
शाही हमाम
किले के अंदर स्मारक फारूखी है इसे मुगल बादशाह शाहजहं ने बनवाया था। यहां स्मारक के बीचों-बीच अष्टकोणीय स्नान कुण्ड भी मौजूद है।
गुरुद्वारा
इतिहास कारकों के अनुसार इसे सिख धर्म का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल भी कहा जाता है। बताया जाता है कि प्रथम गुरु नानक देव जी और अंतिम गुरुवार गुरु गोविन्दसिंह जी का यहां आगमन हुआ था। जो कि 400 साल पुराना है।
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