मोबाइल फ़ोन की लत से घट रहा बच्चों का मानसिक विकास, पेरेंट्स रखें इन बातों का ध्यान

bhawna_ghamasan
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आजकल जब कभी भी बच्चा रोता हैं या खाना नहीं खाता हैं तो पेरेंट्स सोचते हैं की बच्चो को मोबाइल दे देतें हैं. जिससे वह खाना खा लेगा और शांत रहेगा ओर यह बिलकुल गलत माइंडसेट हैं क्योकि इससे बच्चो को गलत आदत लग जाती हैं और ऐसा करने से सिर्फ आदत ही ख़राब नहीं होती बल्कि ज्यादा स्क्रीन देखने से बच्चो का मानसिक विकास भी रुक जाता हैं। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबित बताया गया हैं की ज्यादा मोबाइल, गैजेट्स का इस्तेम्मल करने से बच्चो का भविष्य भी खतरे में रहता हैं .बच्चे मोबाइल के जरिये ऐसी कई चीजों तक पहुंच जाते हैं जो उनकी उम्र के हिसाब की नहीं रहती हैं.देखा जाए तो आजकल बच्चे बहार खेलना पसंद ही नहीं करते हैं। वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण खासतौर पर 5 से 6 साल के उम्र के बच्चो में दिखाई देते हैं. ऐसा अक्सर उनके मोबाइल, टीवी, गैजेट्स चलाने की लत से होता हैं.ज्यादा समय स्क्रीन पर समय बिताने से बच्चे दिन पर दिन इंट्रोवर्ट बनते जा रहे हैं। उन्हें बोलने में दिक्क्त होती हैं, साथ ही लोगों से बोल चाल में हिचकिचाने लगते हैं.

 

एक रिपोर्ट के मुताबिक पता चला है कि इस कंडीशन को वर्जुल ऑटिज्म बोलते हैं 1 से 3 साल के बच्चों को इसका ज्यादा खतरा होता है. आज के टाइम पर बच्चे जैसे ही चलना शुरू करते हैं वो फोन के आदी हो जाते हैं। ढाई साल से लेकर 3 साल की उम्र तक के बच्चो में ऐसा बहुत ज्यादा देखने को मिल रहा है. बच्चा रोया तो फोन, बच्चा खाना नहीं खा रहा तो फोन, हर समय वह बच्चों को मोबाइल पकड़ा देते हैं और आज कई पेरेंट्स बच्चों को पोयम और ABCD सिखाने के लिए मोबाइल पकड़ा देते हैं लेकिन ये कहीं ना कहीं गलत है क्योंकि मोबाइल स्क्रोल करना बहुत आसान होता है. कोई भी छोटा बच्चा मोबाइल को आराम से स्क्रोल कर पाता है। इसलिए वह कब एबीसीडी पढ़ते पढ़ते क्या स्क्रोल कर ले हम नहीं जानते इसलिए कोशिश करनी चाहिए की बच्चों को मोबाइल से दूर रखा जाए.

 

Is technology eroding our sense of community? - Debating Europe

 

क्या होता हैं वर्चुअल ऑटिज्म

इसका नकारात्मक प्रभाव यह होता है कि बच्चों में स्पीच डेवलपमेंट नहीं हो पाता वो मोबाइल में या गैजेट्स में इतना बिजी रहते हैं कि उनके व्यवहार में भी दिक्कतें आने लगती है.कई बार वह ज्यादा जिद्दी हो जाते हैं कई बार वह धमकी देने लगते हैं. कई मां-बाप बच्चों को रात में गैजेट्स पकड़ा देते हैं जिससे उनका स्लिप पैटर्न खराब हो जाता है. ऐसा पेरेंट्स को कभी नहीं करना चाहिए. कई बार पेरेंट्स को देखते हुए बच्चे टीवी देखने या मोबाइल चलाने की जिद्द करते हैं.इससे उनका कंसंट्रेशन भी खराब होता है अगर आपका बच्चा आपको देखकर ही मोबाइल चलाने की जिद कर रहा है तो आपको कोशिश करनी है कि आप अपने बच्चों के सामने कम से कम मोबाइल चलाए.

बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म से किस तरह बचाया जा सकता है सबसे पहले तो बच्चों को फोन और टीवी से दूर करना है उनका स्क्रीन टाइम कम करें.कोरोना की वजह से बच्चों के बीच आउटडोर एक्टिविटीज कम हो गई है और मोबाइल की लत बढ़ चुकी है। हालांकि बच्चों को रोकने से पहले पेरेंट्स को अपने लिए भी बदलाव करने होंगे. बच्चो के सामने मोबाइल फोन से दूरी बनाए, बच्चो के साथ खुद भी स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में भाग ले इसके अलावा अपना और अपने बच्चो का स्लिप पैटर्न ठीक करें.

वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण

वर्चुअल ऑटिज्म में से पीड़ित बच्चे दूसरे से बात करने में हिचकिचाते हैं,आई कांटेक्ट नहीं कर पाते, उनमें बोलने की क्षमता का विकास देरी से होता है और उन्हें लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं होता है वो हमेशा अकेले रहना और मोबाइल चलाना पसंद करते हैं.अगर आपको अपने बच्चों के अंदर इस तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं तो डरने की जरूरत नहीं है बस थोड़ा सा बदलाव करने की जरूरी है.