महिला को किशोरी बना देते हैं सावन के झूले

Author Picture
By Akanksha JainPublished On: July 27, 2020
sawan

 

निशिकांत मंडलोई

सावन में झूलों का चलन सदियों से चला आ रहा है। सावन मास की शुरुआत होते ही वर्षा की फुहारों के बीच बाग बगीचों में पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं। झूला सदियों से महिलाओं के साथ जुड़ा चला आया है। शायद यही कारण है कि महिलाओं को सावन का बेताबी से इंतजार रहता है। महिलाएं अपने जीवन के सभी विषादों को भूलकर पेड़ों पर पड़े झूले झूलती हैं। पेंगे भर गीत गाती हैं और आनंदित होती हैं। सावन में झूला झूलने के पीछे एक ओर जहां धार्मिक व पारम्परिक धारणाएं जुड़ी हैं वहीं दूसरी ओर इसके सामाजिक व मनोवैज्ञानिक आधार भी हैं। वैसे तो परम्परागत झूला झूलने का चलन पिछले कुछ वर्षों से कम ही नजर आता है लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण ने महिलाओं के उत्साह को और भी कम कर दिया है। फिर भी कुछ स्थानों पर सीमित संख्या में इस परंपरा का निर्वाह होता नजर आ रहा है।

हवा के शीतल झोंकों का लुत्फ

सावन में नवविवाहिता का मन झूम उठता है। वह सखी सहेलियों के साथ बागों में झूला झूलती और मौज मस्ती कर हवा के शीतल झोंकों का लुत्फ उठाती है। इसी कारण नवविवाहिताओं में मायके जाने की ललक सावन में रहती है। बचपन की दहलीज से निकलकर नवविवाहिता जब ससुराल आती है तब वह अनेक पारम्परिक जवाबदारियों से घिर जाती है।

उसकी चंचलता खो जाती है। फिर सावन में जब वह मायके आती है, तब उसकी मनः स्थिति मिश्रित भावों से ओतप्रोत होती है। एक तरफ उसे अपने पति के वियोग की पीड़ा सताती है तो दूसरी तरफ मातृ स्थल सुखद संयोग का अहसास कराता है। वह वैसे ही भावनाओं के झूले में झूलती रहती है। झूला झूलने से मानो उसके विषम भावों का जैसे शमन हो जाता है। प्रकृति की एकात्मकता में वह अपने को भुला देती है। सावन के गीतों के माध्यम से कभी वह सावन के नित्य आने का आव्हान करती है तो कभी अपने भाई भौजाई के प्रति उदासीनता न बरतने की चेतावनी देती है।

झूला झूलना विशेष आकर्षण

हिन्दू त्योहारों में सावन सुदी तीज का अपना अलग ही महत्व है। इस अवसर पर नव विवाहिताएं मायके जाती हैं और भाभियों व बहनों से मेहंदी रचवाती है। नए वस्त्र और आभूषणों से सज्जित हो सखी सहेलियों के साथ आम, जामुन, नीम ओर बड़ के पेड़ों पर पड़े झूलों पर खूब झूलती हैं । इनमें नन्ही बालाओं से लेकर अधेड़ महिलाएं भी शामिल होती हैं। घूंघट और लाज शर्म से परे महिलाएं इस वक्त अल्हड़ बालाओं सी हरकत करने से भी नहीं चूकतीं। इनके हास परिहास, चुहलबाजी, ठिठोली व सुरीले गीतों से माहौल गूंज उठता है।

राग मल्हार का महत्व

कृषि प्रधान हमारे देश में झूला झूलते समय महिलाएं कृषि के लिए मेघों से जल वर्षण की याचना करती हैं। झूले पर जो गीत गाये जाते हैं, वे राग मल्हार में होते हैं। संगीत शास्त्र की ऐसी मान्यता है कि मल्हार राग मेघों को आकर्षित करता है। राधा कृष्ण और गोपियों के झूला और रास एक सुंदर झांकी की याद दिलाता रहता है।

sawan

ससुराल के बंधनों से बहुत कुछ स्वतंत्र हैं

सावन के मदहोश करने वाले समय का समापन होता है रक्षाबन्धन के साथ। इस बीच का समय वह होता है जो एक महिला को किशोरी बना देता है। वह बागों में, बरामदों में, आंगन में सारी चिंताओं से परे हो, झूले पर बैठकर गीत गुनगुनाती रहती है। आज की बेटी फिर भी ससुराल के बंधनों से बहुत कुछ स्वतंत्र है, परन्तु पहले तो संयुक्त परिवार में घूंघट और अनेक बन्धनों से मुक्त हो मायके लौटी बेटी के लिए सावन में पड़े झूले न जाने कितनी उमंगों और उल्लास का संदेश लाते थे।

घर पर रहें, सुरक्षित रहे

इस वर्ष कोरोना महामारी के असर के कारण बेटियों का मायके आना सम्भव नही लग रहा ऐसे में जो जहां है वही रहकर कोविड 19 के नियमों की पालना करते हुए सावन की यादें संजोए रखें। घर में रहें, सुरक्षित रहें।