धामंदा गांव के उस विश्राम घाट में जब डेढ़ साल के चेतन ने अपने पिता की चिता को अग्नि दी तो हजारों लोगों की नम आंखों के बीच एक सुर में नारा गूंजा “शहीद जितेंद्र कुमार वर्मा अमर रहें “ “जब तक सूरज चांद रहेगा, जितेंद्र तेरा नाम रहेगा “ और थोडी देर बाद ही चिता की लपटें ऊंचाई को छूने लगीं। नारों की आवाज भी तेज होने लगी और अपने नाना की गोद में चेतन कौतूहलवश चारों और फैली इस भीड और उससे उठे शोर को सुनकर समझने की कोशिश करने लगा।
फिलहाल वो कुछ सालों तक इन नारों और शोर को समझ नहीं पायेगा।
समझ तो उसकी मां सुनीता और उससे तीन साल बडी बहन शृव्या और बुजुर्ग दादा दादी भी नहीं पाये हैं कि ये अचानक क्या हो गया। अभी पिछले महीने तो उसके पापा जितेंद्र गांव आये थे। टैक्टर खरीदा था। पूरे परिवार को सलकनपुर घुमाने ले गये थे और जल्दी ही वापस आने का वायदा कर अपने काम पर वापस चले गये थे। मगर वो लौट कर इतनी जल्दी और इस तरीके में आएंगे कोई नहीं जानता था।
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हैरानी इस बात की है कि उसके पापा क्या काम करते हैं, किसके साथ काम करते हैं, कितने खतरे वाला काम करते हैं ये भी तो कोई नहीं जानता था, सिवाय उसकी मां के जो समझती थी कि उसके पापा किसी बहुत बडे अफसर के साथ साये की तरह दिन रात रहते हैं। और वो सेना के बहुत बहादुर सिपाही हैं। इससे ज्यादा उसके पापा ने किसी को कुछ बताया ही नहीं था। शायद यही उनकी नौकरी का दस्तूर होगा मगर पिछले चार दिन में उसके घर और गांव में सब कुछ बदल गया। ढेर सारे लोग उसके गांव चले आ रहे हैं, छोटे बडा कैमरा लेकर मीडिया वाले, सफेद कुर्ते पायजामे वाले नेता, सब घर के बाहर आकर बैठ रहे हैं, नाना के साथ वो बाहर आता है तो उसके फोटो हर कोई खींचने लगता है।
उसके घर में भी हलचल बढ गयी है, घर पर पहरा बढ गया है, पुलिस और प्रशासन के अधिकारी उसके दादा शिवराज को जाने क्या समझाते रहते हैं। उसके चाचा धर्मेंद उसी दिन के बाद से दिल्ली चले गये हैं। उसकी दादी धापू बाई और मां सुनीता का बुरा हाल है सिर्फ रोती और सुबकती रहती हैं घर में रिश्तेदार आ गये हैं जो उनके लिए खाना पीना खिला रहे हैं मगर माँ और दादी कुछ भी नहीं खा रहीं दिन में चार बार डॉक्टर आकर उनके स्वास्थ्य का हालचाल जान रहे हैं। घर पर चार दिन से पापा जितेंद्र का इंतजार हो रहा है। मां और दादी को बताया है कि कहीं कोई हेलीकॉप्टर गिरा है जिसमें पापा भी घायल हो गये हैं और वो अस्पताल में हैं वो जल्दी ठीक होकर वापस आयेंगे।
मगर आज जब चार दिन बाद आये तो इस तरीके से आये कि कोई उनसे बात ही नहीं कर पाया। मुख्यमंत्री शिवराज सिहं चौहान भी उसके घर आये। मां और दादी के साथ नीचे बैठकर बातें की मुझे और मेरी बहन को गोदी में बैठाया प्यार से सर पर हाथ फेरा कहा घबराना नहीं अब मामा तुम सबका ध्यान रखेगा। मगर ध्यान रखने के लिये तो मेरे बहादुर पापा ही बहुत हैं किसी ने घर आकर बताया था कि मेरे पापा तीन पेरा कमांडो थे वो सब काम करना जानते थे तेजी फुर्ती ताकत में वो पक्के थे, निशानेबाज भी नंबर एक थे मगर उनको हुआ क्या ये कोई बताने को तैयार नहीं था। सब कह रहे थे कि सब ठीक होगा वो जल्दी घर आ जायेंगे। ये बात मेरी बहन शृव्या को भी समझ नहीं आ रही थी मगर वो भी घर आये मेहमानों के बच्चों के साथ खेलने में लगी रहती थी। खेलना तो मुझे भी अच्छा लगता था मगर अब खेलूं कहां। घर पर भीड घर के बाहर उससे ज्यादा भीड।
आज जैसी भीड तो मैंने कभी देखी ही नहीं। इतने सारे लोग आये कि घर के सामने लगे पंडाल में जगह कम पडने लगी। धक्का मुक्की हो रही थी। जिस गाडी में पापा को लाया गया उसे खूब सजाया गया था। ऐसी सजी गाडी मैंने तो पहली बार देखी। मगर वो गाडी सजी क्यों थी। गाड़ी जब घर के बाहर रुकी तो मुझसे बहन ने कहा देख चेतन पापा आये। मगर पापा कहां थे वो वो सब लोग एक बड़ा सा बॉक्स लाये। मेरी मां दादी उससे लिपट कर रोयीं मगर मैं समझ नहीं पाया कि वो रोयीं क्यों जब पापा आये तो उनको खुश होना चाहिये था मगर उस बाक्स को बहुत जल्दी ही बाहर ले गये सब। पापा को हम देख ही नहीं पाये। कोई ये नहीं बता पाया कि उस बाक्स में पापा थे तो वो उससे बाहर निकले क्यों नहीं। मेरी माँ भी रो रो कर बोल रहीं कि मेरे पापा का चेहरा तो दिखा दो मगर किसी ने सुनी नहीं।
फिर जब मैं अपने नाना की गोदी में गांव के बाहर मैदान में आया तो वहां चारो तरफ बहुत सारे लोग थे कोई घरों की छतों पर खडे थे तो कोई पेड पर चढे थे वहां मेरे पापा की फोटो के सामने फूल चढाये जा रहे थे मगर क्यों मेरी निगाहें तो उस भीड में मेरे लंबे खूबसूरत पापा को तलाश रहीं थीं जो वहां उस हजारों की भीड में दिख ही नहीं रहे थे। हां उनके फोटो कई जगह लगे हुये थे और ये क्या बाद में उस बाक्स को लकड़ियों पर रखकर आग लगा दी गयी।
लोग नारे लगा रहे थे “जब तक सूरज चांद रहेगा जितेंद्र तेरा नाम रहेगा। शहीद जितेंद्र अमर रहें।” ये अमर क्या होता है कोई मुझे बताये मेरे पापा कहां गये कोई मुझे उनके पास ले जाये। हो सकता है मेरे पापा कहां गये ये अभी नहीं जान पाउं मगर जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो क्या तब अपने पापा से मिल पाउंगा। क्या तब तक उनका नाम लोगों की जबान पर रहेगा। “ हां बेटा हाँ” ये मेरे दादा थे जिन्होंने मुझे अचानक रोते हुये सीने में दुबका लिया।
( ब्रजेश राजपूत, एबीपी नेटवर्क, भोपाल)











