चलो भार्गव पुष्यमित्र हो जाएं : सुरेंद्र बंसल

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By Pinal PatidarPublished On: July 18, 2022

सुरेंद्र बंसल

पुष्यमित्र होने के क्या अर्थ है इसे भारत के इतिहास से समझिए। 185 ई पू मौर्य साम्राज्य का पतन कर शुंग साम्राज्य को स्थापित करने वाले एक राजा हुए पुष्यमित्र शुंग। मौर्य शासक बृहद्रथ के सेनापति थे पुष्यमित्र शुंग । वे बहुत पराक्रमी और धर्मनिष्ठ थे । जब ग्रीक सैनिक बौद्ध के भेष में बौद्ध मठों में घुस आए तो राजा बृहद्रथ की अनुमति की देर किए बगैर पुष्यमित्र ने ग्रीक सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया और उन्हें शरण देनेवाले बौद्ध भिक्षुओं को पकड़कर सम्राट बृहद्रथ के दरबार में ले आए। सम्राट को यह सेनापति की अनुशासनहीनता लगी उन्होंने आवेश में पुष्यमित्र पर हमला किया, यही पुष्यमित्र को नागवार गुजरा और देश ,साम्राज्य और धर्म की रक्षा में उन्होंने अपने ही सम्राट की हत्या कर शुंग राजतंत्र स्थापित कर लिया। शुंग साम्राज्य सुशासन के लिए जाना जाता है।

मतलब “पुष्यमित्र ” होने का अर्थ सनातन धर्म और वैदिक संस्कृति की स्थापना है।
पुष्यमित्र होने का अर्थ अशांति के माहौल को खत्म कर सुशासन की स्थापना है।
पुष्यमित्र होने का अर्थ मार्ग से भटके हुए लोगों को पुनः सनातन संस्कृति में लौट लाना है।
पुष्यमित्र होने का अर्थ बाहरी घुसपैठियों को मार भगाना है।
पुष्यमित्र होने का अर्थ शासन प्रबंध को संगठित और सुव्यवस्थित करना है।
पुष्यमित्र होने का अर्थ संस्कृति और विरासत को बचाना , उसका विस्तार करना और डर के माहौल खत्म करना है।

“पुष्यमित्र शुंग की ये उपलब्धियां” ही पुष्यमित्र होने के अर्थ हैं । सुनीति, संस्कृति ,सनातन और सुशासन इसी अभिलाषा और विश्वास में इंदौर की जनता ने अपने पुष्यमित्र भार्गव का चुनाव किया है । राजा शुंग भारद्वाज ब्राह्मण थे और नव महापौर भार्गव ब्राह्मण हैं जो ऋषि भृगु के वंशज है। उनका चयन आरएसएस के केडर पर इन्हीं बिंदुओं के आधार पर किया गया है। इन्हें बनाए रखना और कर दिखाना उनके लिए ज्यादा चुनौती नहीं है,इसलिए भी कि जब आपके सिद्धांत और संस्कार इस तरह से हों। फिर पुष्यमित्र भार्गव के लिए चुनौतियां क्या है? मुझे मालूम है अब पत्रकार सबसे पहले उनकी पांच प्राथमिकताओं के बारे में पूछेंगे जैसा हर बार होता है लेकिन मैं उन्हें सबसे पहले पांच चुनौतियों से तैयार रहने को कहूंगा। इंदौर नगर निगम चुनौतियों से भरा दरबार है सबसे बड़ी चुनौती यहां सुशासन की स्थापना है। करीब 35 साल पहले जनसत्ता में मेरी आधे पेज से अधिक एक रपट इंदौर नगर निगम पर प्रकाशित हुई थी, जिसका शीर्षक था “नेताओं और अफसरों की दुकान है इंदौर नगर निगम”।

आज भी यही स्थिति है यह दुकान न तो कभी बंद हुई और न ही छोटी हुई हालांकि इस बीच दुकानदार बहुत बदल गए ,बड़े हो गए और ताकतवर भी हो गए। यहां भी मौर्य साम्राज्य की तरह शासन का पतन हुआ और नव साम्राज्य की स्थापना भी हुई लेकिन कोई ऐसा पुष्यमित्र नहीं हुआ जो बृहद्रथ से समझौता करने की जगह सुशासन की स्थापना करने के सिद्धांत पर अडिग रहा हो। पुष्यमित्र भार्गव के लिए भी यही चुनौती है अब जब वक्त ने पुष्यमित्र का राज इंदौर नगर निगम में स्थापित किया है तो पुष्यमित्र शुंग की तरह उन्हें सुशासन की स्थापना के हर संभव और सार्थक प्रयास करना होंगे। पुष्यमित्र को अपने ही कितने बृहद्रथ मिलेंगे जो उन्हें समझौतावादी ,चलने दो की राह पर ले जाने का प्रयास करेंगे, सच चुनौती है यह पुष्यमित्र ।

नगर निगम में बिना पैसा दिए जो काम होते हैं उनमें सड़क की सफाई, गटर की सफाई, मृत पशु, गंदा पानी,आदि आदि छोटे छोटे कार्य लेकिन जो भी अन्य जरूरी काम है जिससे जन जन को परेशानी, भय के साथ पैसा भी देना होता वो काम किए ही नहीं जाते लिहाजा निगम का एक सामान्य और इसके समकक्ष कर्मी भी करोड़ोंपति होता है। पहले और दूसरे दर्जे के तो सभी महाराजा होते हैं उनका सीधा लिंक नगरीय प्रशासन भोपाल से होता है। निगम का राज सिर्फ महापौर होने से ही नहीं चलता सीमेंट, रेती आदि से संगमरमरी ताजमहल बनाने वालों से भी चलता है, आश्चर्य इन महालोगों के नाम से सड़कों के नाम भी शहर में रख दिए जाते हैं और ये भी राजधानी तक पहुंचे होते हैं। मुझे याद है कुछ दशक पूर्व एक बड़ी इमारत को बचाने के लिए इंदौर से भोपाल तक समूचा तंत्र लग गया था ,समूचा यानी बड़े से बड़ा पद भी। भार्गव यह चुनौती आएगी आपके भी सामने निपट सको तो पुष्यमित्र हो जाना।मुश्किल काम है तब निपटने में सामने बहुत से जाने पहचाने चेहरे होंगे ,कठिन चुनौती है।

इसी तरह अपने दरबार को पुष्यमित्र के दरबार की तरह विश्वसनीय ,कर्मठ, बनाना होगा उन्हें आप किसी तरह अड्डा मत बनने देना। आपके दरबारी आपके पार्षद हैं जिनके चेहरों को जनता जानती या नहीं जानती लेकिन आपकी पार्टी को जानती है उसी आधार पर वोट करती है, उनके कार्यकाल पैसा केंद्र बैंक नहीं सेवा केंद्र कैसे बने यह चुनौती रहेगी। काम समयावधि में हो इसकी मॉनिटरिंग हो और 311ऐप की तरह सभी काम ऐप पर हो सके इसे करना भी एक चुनौती है। सबसे निकम्मा जनकार्य विभाग है जो आम जनता के नहीं ठेकेदारों, यंत्रियों और असरदार मंत्रियों (जो काम करवा सके वह मंत्री ही होता है) के ही काम करता है इसे कैसे जनकार्य के लिए प्रेरित करेंगे इसकी तैयारी करना भी एक चुनौती है।

लेकिन जाने दीजिए चुनौतियां लिखेंगे तो कभी खत्म नहीं होगी अपनी चुनौतियां स्वयं तय कीजिए और उसे अंजाम तक ले जाने का सामना कीजिए। क्योंकि सुशासन अपने सीमित दायरे में ही सही, कर सके तो यह आपको पुष्यमित्र से जनमित्र भार्गव बना सकेगा। राह लंबी है,कठिन है, लेकिन वक्त भी लंबा है लेकिन पुष्यमित्र हो जाने का सही अर्थ है यही संसद तक पहुंचने का मार्ग भी।