जनरेशन नेक्स्ट, मूल्य और कीमत…श्रीयुत से सिद्धार्थ तक

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By Deepak MeenaPublished On: October 21, 2023

‘खसम किया बुरा किया, करके छोड़ दिया और भी बुरा किया’ श्रीनिवास तिवारी ने यह कहावत उद्धृत की थी जब 1985 में टिकट कटने के बाद समर्थकों ने उन्हें दल बदलकर चुनाव लड़ने का दवाब बनाया।

ये स्वतंत्र भारत के बाद की राजनीति के फर्स्ट जनरेशन(1जी) का दौर था तब राजनीति मूल्यवान थी।

जनरेशन नेक्स्ट, मूल्य और कीमत...श्रीयुत से सिद्धार्थ तक

उनके पौत्र सिद्धार्थ तिवारी की टिकट भी कांग्रेस ने उसी तर्ज़ पर काट दी, और फिर.. न सिद्धार्थ ने दल बदलने में देर की और न ही भाजपा ने उन्हें टिकट देने में।

यह राजनीति के फोर्थ जेनरेशन (4जी) का दौर है। राजनीति के मूल्य पर कीमत बैठ गई।

हम कह सकते हैं कि विन्ध्य में कांग्रेस के सबसे पुराने स्थापित घराने में से एक ‘अमहिया घराने’ को जब कांग्रेस ही ध्वस्त करने में तुली हो तो इसके अलावा कोई विकल्प नहीं था।

इश्क, सियासत और जंग में सबकुछ जायज है, यह सही भी है। गाढ़े वक्त में सिद्धार्थ तिवारी को उसी भाजपा ने आश्रय दिया जो 2018 तक उनके दादा श्रीनिवास तिवारी,पिता सुंदरलाल तिवारी और को जेल भेजने में तुली थी।

शुक्रवार को सिद्धार्थ तिवारी का रीवा की भाजपा ने गर्मजोश स्वागत किया। और सिद्धार्थ ने प्रत्युत्तर में श्री मोदी और श्री चौहान की महानता का बखान किया और कहा उनके कार्यों से प्रभावित होकर इसमें शामिल हो रहे हैं।

सिद्धार्थ तिवारी का नाम यदि कांग्रेस की टिकट सूची में त्यौंथर (रीवा) से होता तो उनका बयान क्या होता, यह बताने की जरूरत नहीं।

बहरहाल वर्तमान तो इतिहास की पीठ पर ही लदकर चलता है।

• एक थे श्रीनिवास तिवारी जो टूटे
पर झुके नहीं..

बात 2016 की है। भोपाल की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में श्रीनिवास तिवारी जब ह्वील चेयर पर बैठकर ज़मानत के लिए पहुंचे थे तब उन्हें देखने लोगों का मेला सा लग गया। क्या ये वही शख्सियत हैं जिसके एक फोन पर बल्लभ भवन की घिग्घी बंध जाता करती थी?

दस साल स्पीकर रहे तिवारी ने खम ठोककर अपनी शर्तों पर राजनीति की। श्री तिवारी इकलौते थे जो स्पीकर रहते हुए पार्टी की गतिविधियों में न सिर्फ अगुवाई करते वरन् टिकट कमेटी समेत सभी महत्वपूर्ण पदों पर रहते भी थे।

2013-14 में जब व्यापंम का प्रेत निकला, भाजपा की सत्ता हिली तब सरकार ने उसकी काट में विधानसभा भर्ती घोटाला सामने लाया। सैकड़ों पर मुकदमें लगे उनमें से एक श्रीनिवास तिवारी थे और दूसरे दिग्विजय सिंह।

अपने शुरुआती दिनों में मशहूर वकील रह चुके तिवारी अपने समर्थकों से कहा करते थे- कुछू न होई, ऐमा कउनउ दम नहीं..!

इससे पहले बाबूलाल गौर के मुख्यमंत्रित्व काल में उनके खिलाफ जस्टिस शचीन्द्रनाथ आयोग भी बैठा था। यद्यपि उसकी जांच और निष्कर्ष विधिक तौरपर औंधे मुंह गिरे थे।

बाबूलाल गौर तिवारी जी को वैसे ही गुरुदेव कहते जैसे कि दिग्विजय सिंह। गौर जब मुख्यमंत्री थे तब वे भोपाल में मुंहअंधेरे तिवारी जी से मिलने जाते। और बाद में मंत्री रहते तो गुरुदेव के पैर पड़ते कई बार फोटो वायरल भी हुई।

भाजपा सरकार ने तिवारी जी पर तब मुकदमें पहनाए जब वे ठीक से चलने में समर्थ तक न थे। दिखने भी कम लगा था, लेकिन जब प्रतिरोध की राजनीति की बात होती तो सरकार के खिलाफ पूरे प्रदेश में सबसे गरजदार स्वर श्रीनिवास तिवारी का ही होता।

•खांटी सोशलिस्ट से बने थे कांग्रेसी

जेपी और लोहिया के चेले तिवारी जी 1952 में विन्ध्यप्रदेश की विधानसभा के लिए चुने गए तब उम्र को लेकर मुकदमा चला था। वे पच्चीस के पूरे नहीं हुए थे। 1952 के 20 साल बाद वे 72 में जीते।

चार चुनाव हारे पर राजनीति की ऐसी धार बनाए रखी कि जब 72 में सोशलिस्टों के एक धड़े ने कांग्रेस में खुद के विलय का फैसला लिया तो उस ऐतिहासिक चंदौली सम्मेलन की अध्यक्षता श्रीनिवास तिवारी ने ही की थी।

कांग्रेस में आने के बाद उन्हें मंत्री पद प्रस्तावित हुआ जिसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि जनता ने मुझे कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर नहीं चुना है। यह तो हम ही थे जिसने कांग्रेस चुनी।

तिवारी जी की धाक इंदिरा गांधी तक जम गई। वे जल्दी ही प्रदेश के अग्रिम पंक्ति के नेता गिने जाने लगे।

•खसम किया बुरा किया, करके छोड़ दिया और भी बुरा किया..

75 में इमरजेंसी लगी। जिन जयप्रकाश नारायण को वे कभी नेता मानते हुए उन्होंने राजनीति शुरू की थी, एक दिन विधानसभा में उन्हीं जेपी को राष्ट्रद्रोही कहते हुए उनके गिरफ्तारी की मांग कर दी। विधानसभा की कार्यवाही में उनका वह ऐतिहासिक वक्तव्य दर्ज है।

बाहर जब उनके समाजवादी मित्रों ने पूछा तो जवाब दिया कि ‘मैंने जब सोपा छोड़कर नया खसम कर ही लिया तो उसीका साथ निभाउंगा’।

77 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो की समाजवादी कांग्रेस से जनता पार्टी में लौट गए। उनमें से एक जगदीश चंद्र जोशी भी थे। जोशी जी बड़े नेता थे और सोपा से कांग्रेस आने के बाद इंदिरा जी के अत्यंत करीबी हो गए थे। श्रीमती गांधी ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा था।

जब जोशी जी ने श्रीनिवास तिवारी से कहा चलो वापस लौट चलें तब श्री निवास तिवारी ने यह जवाब दिया था- खसम किया बुरा किया करके छोड़ दिया और भी बुरा किया।

•सुंदरलाल तिवारी तो किसी और ही मिट्टी के बने थे..

श्रीनिवास तिवारी के बेटे सुंदरलाल तिवारी 1998 में रीवा लोकसभा से जीत कर संसद पहुंचे। तब केन्द्र में वाजपेई जी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार थी। सुंदरलाल पहली ही बार अपनी रौ में आ गए। वे कांग्रेस की ओर से हमलावर नेताओं में से एक थे।

अधीररंजन चौधुरी से सुंदरलाल तिवारी की गाढ़ी जमती थी। अधीररंजन भी पहली बार संसद पहुंचे थे, वे अब लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता हैं। दुर्योग कि सुंदरलाल तिवारी फिर दुबारा लोकसभा के लिए नहीं चुने जा सके।

अलबत्ता 2013 में वे रीवा की गुढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधानसभा जरूर पहुंचे।

विधानसभा में सुंदरलाल तिवारी एक सनसनी थे। हर मुद्दे को आक्रामक होकर उठाते थे। एक बार तो उन्होंने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को लक्ष्य करके इशारा करते हुए कहा कि आने दो कांग्रेस की सरकार आप सब को जेल भेजेंगे। यह बड़ा हमला था।

सुंदरलाल तिवारी से निपटने के लिए सदन में भाजपा को अपनी हुल्लड़ ब्रिगेड बनानी पड़ी, जिसका काम था कि जैसे ही सुंदरलाल खड़े हों वह नारा लगाए- सदन की एक बीमारी.. सुंदरलाल तिवारी।

सुंदरलाल तिवारी बस ऐसे हंगामे का मजा लेते और दूने जोर से ट्रेज़री बेंच से भिड़ जाते। खामियाजा उन्हें भोगना पड़ा, पुराने मुकदमें उखड़े लेकिन सुंदरलाल सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले आए।

सुंदरलाल तिवारी जीवट और मुंहफट दोनों थे। जब वे सांसद थे, कार्यकाल का आखिरी समय चल ही रहा था कि कई कांग्रेसी भाजपा ज्वाइन करने लगे। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भी उन्हीं में से एक थे। हवा उड़ी कि अजय सिंह राहुल और सुंदरलाल तिवारी भी भाजपा ज्वाइन कर सकते हैं।

एक बड़े टीवी पत्रकार साउथ एवेन्यू उन्हें सूंघते पहुंचे। सुंदरलाल तिवारी किसी हाल में हों हर सवाल का जवाब उनकी जुबां पर रहता। पत्रकार ने माइक लगाते हुए पूछा – तो आप कब भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं? सुंदरलाल ने जवाब दिया – जिस पार्टी को खुनचुसवा लोग चलाते हैं, ऐसी भारतीय जोंक पार्टी में तो मैं जीते जी जाने से रहा।

टीवी पत्रकार सन्न, सुंदरलाल उससे बोले दम हो तो अपने चैनल में दिखाओ।

2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद वे अवसाद में चले गए। इस बीच मध्यप्रदेश के कांग्रेस संगठन प्रभारी (तत्कालीन) दीपक बावरिया से लोकसभा की टिकट को लेकर हुई बहस चर्चाओं में रही। सुंदरलाल ने अपने समर्थकों को बताया था कि बाबरिया जी लोकसभा के चुनाव के रास्ते से हटने को कहते हैं.. क्या करें?
इस वाकयात के दूसरे दिन सुबह खबर लगी सुंदरलाल तिवारी नहीं रहे, उन्हें सीवियर हार्टअटैक हुआ। सुंदरलाल तिवारी ज़िन्दगी से हट गए पर जिद से कभी नहीं।